(मफऊल -फाइलात -मफाईल -फाइलुन )
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शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें |
वादा वफ़ा का हम न निभाएँ तो क्या करें |
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मजबूर हो के हो गया दीवाना जिनका दिल
अब जान भी न उनपे लुटाएँ तो क्या करें |
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गैरों की बात हो तो उसे कर दें दर गुज़र
पर हम पे ज़ुल्म अपने ही ढाएँ तो क्या करें|
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उम्मीद जिसके आने की न ज़िंदगी में हो
उसको न अपने दिल से भुलाएँ तो क्या करें |
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बैठे हुए हैं सामने महफ़िल में गीब्ती
उन से नज़र न अपनी बचाएँ तो क्या करें |
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पोशीदा रख सकें न जो राज़ो नियाज़ को
राज़े वफ़ा न उनसे छुपाएँ तो क्या करें |
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जिनकी वजह से बदगुमाँ तस्दीक़ वो हुए
उनका न मक्र सबको बताएँ तो क्या करें |
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गीब्ती -दूसरों की बुराई करने वाला
पोशीदा - छुपा हुुुआ , राज़ो नियाज़ - प्यार की बातें
मक्र --धोका , फरेब
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आद0 तस्दीक अहमद साहब सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। हरेक शैर उम्दा। वाह क्या कहने। शेर दर शैर दाद और बधाई स्वीकार कीजिये।
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, आपकी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया । टाइप त्रुटि को ध्यान दिलाने का शुक्रिया।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
छटे शैर के ऊला मिसरे में टंकण त्रुटि के कारण 'पोशीद:' की जगह "पोशिदा" हो गया है,देखियेग़ा ।
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