भुजंग प्रयात छन्द (122 -122-122-122)
बड़ा तंग करता वो करके बहाने,
बड़ी मुश्किलों से बुलाया नहाने।
किया वारि ने दूर तंद्रा जम्हाँई,
तुम्ही मेरे लल्ला तुम्ही हो कन्हाई।
कभी डाँटके तो कभी मुस्कुरा के,
करे प्यार माता निगाहेँ चुराके।
बड़े कौशलों से किया मातु राजी,
पढ़ो लाल जीतोगे जीवन की बाजी।
सुना जी हिया-उर्मि के नाद को…
Posted on February 25, 2018 at 12:37pm — 3 Comments
11-02-2018 "मधुर" जी के स्मृति में भावभीनी श्रद्धाञ्जलि
छन्द विधा : शक्ति छंद
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कहां प्यार ऐसा मिलेगा कहीं,
हमारे सखा सा जहां में नहीं।
दिया प्यार इतना कि कर्जित हुए,
हुई आंख नम जो थे गर्वित हुए।
हमारा सभी का बड़ा भाग था,
अकल्पित उन्हीं पे झुका राग था।
"मधुर" जी में किंचित नहीं द्वेष था,
अकिंचन हुआ आज जो शेष था।
कहीं राग बिखरे कहीं…
ContinuePosted on February 19, 2018 at 3:30pm — 5 Comments
हो न कभी राग रति से, यही लिया व्रत ठान |
कर लूँ कुछ सत्कर्म सृजित , हो मेरा यश गान |
बेधा उर रति-बान ने, दीक्षा पे आघात |
छंदरूप मृदु गात लखि, व्रत है टूटा जात ||
अपलक भए नेत्र मोरे, देखि अनुप रूप को |
वक्ष गिरि, कटि गह्वर, रसद मधुर गात है |
मचलै ना माने हिय लोचन निहार हार |
कबरी पे आँचल फसाए चाली जात है |
कर्ण-कुण्डल कपोल छुए, अधर सोहे मूँगे सा |
नयना कमल हो मानो मुखड़ा प्रभात है |
पाँव से शीश लाइ, समांग…
ContinuePosted on June 4, 2015 at 7:30pm — 8 Comments
-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :- (संसोधित)
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
है परम कांति अरु चरम शांति जो,
और किसी ना शरणों में |
सजा हुआ मद की बेड़ी मे,
जड़ा हुआ हूँ कहीं सिखा पर,
तोड़ एकांकी अहं का आसन,
मिला लें पद रज-कणों में |
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
यह राह नहीं है सीधा-सादा ;
मैं निकल पड़ा जिसपर |
रसहीन…
ContinuePosted on May 25, 2015 at 8:00pm — 12 Comments
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