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सुनता खुदा न यार सदाएँ तो क्या करें
करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।
इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम
हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।
इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान से
देता न कोई आज सदाएँ तो क्या करें।३।
शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम
तूफान बन के टूटें हवाएँ तो क्या करें।४।
हमको वफा ही रास है यारो उसूल से
उनको नहीं पसंद वफ़ाएँ तो क्या करें ।५।
बच्चे तो पढ़ने रोज ही आते हैं घर से पर
शिक्षक न उनको यार पढ़ाएँ तो क्या करें।६।
जनधन हाे या कि मान लुटेरे हैं लूटते
नेता भी उनका साथ निभाएँ तो क्या करें।७।
हर सिम्त हो रही है जो घुसपैठ देश में
गद्दार उस को ठीक बताएँ तो क्या करें।८।
कुर्सी की उनको फ़िक्र है कहते हैं साफ़ वो
नाज़िल वतन पे हों ये बलाएँ तो क्या करेें।९।
ताले लगाएँ दोस्तों अब हम कहाँ कहाँ
रक्षक ही घर का माल चुराएँ तो क्या करें।१०।
जीता चुनाव जिसने भी लूटा उसी ने है
हिरफिर यही फ़रेब न खाएँ तो क्या करें।११।
हमने मुबाहिसे में हर इक पोल खोल दी
मुंसिफ अगर न देते सज़ाएँ तो क्या करें।१२।
अच्छे दिनों की बात को रोया किए बहुत
"अब मुस्कुरा के भूल न जाएँ तो क्या करें "।१३।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ.भाई तेजवीर जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई समर जी, मार्गदर्शन के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।बेहतरीन गज़ल।
इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान से
देता न कोई आज सदाएँ तो क्या करें।३।
अब गिरह बहुत उम्दा है,बधाई ।
आ. भाई समर जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, स्नेह और अनमोल मार्गदर्शन के लिए कोटिकोटि धन्यवाद । गिरह पर पुनः राय दे ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,दूसरी तरही ग़ज़ल भी आपकी अच्छी हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
'इक वक़्त था कि ख़ूब बुलाते थे लोग सब'
शिल्प की दृष्टि से ये मिसरा कमज़ोर है, इसे यूँ कर सकते हैं:-
'इक वक़्त था कि लोग बुलाते थे शान से'
'दलों लचकना सीख लो पूछो न और ये'
इस मिसरे का भी शिल्प कमज़ोर है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'शाख़ों लचकना सीख लो पूछे बग़ैर तुम'
5वें शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'अपनी वफ़ा की देंगे कहाँ तक दुहाइयाँ'
8वें शैर का ऊला मिसरा बेबह्र हो रहा है, उसमें से 'यार' शब्द निकल दें ।
9वें शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-
'कुर्सी की उनको फ़िक्र है, कहते हैं साफ़ वो
नाज़िल वतन पे हों ये बलाएँ तो क्या करें'
12वें शैर के ऊला मिसरे में सही शब्द है "बह्स",आपकी पिछली ग़ज़ल में ये जानकारी दे चुका हूँ,आप भूल गए,बहरहाल ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
'हमने मुबाहिसे में हरिक पोल खोल दी'
गिरह सही नहीं लगी,और यहाँ गिरह लगाना जरूरी भी नहीं है ।
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