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हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम (इस्लाही)

221 2121 1221 212

...

हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,

कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।

माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,

पर अपनी ज़िन्दगी के सुलेमान हैं सनम ।

ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,

आँसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।

हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,

ऐसा लगे समझना परेशान हैं सनम ।

अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की

इस ज़िन्दगी में अपने भी अरमान हैं सनम ।

---------------

मौलिक व अप्रकाशित

हर्ष महाजन

Views: 798

Comment

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Comment by Harash Mahajan on March 2, 2018 at 1:27pm

आदरनीय धामी जी ग़ज़ल में शिर्कत और हौंसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 8:28pm

बहुत खूब...

Comment by Harash Mahajan on February 27, 2018 at 11:41pm

आदरणीय राम अवध जी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Harash Mahajan on February 27, 2018 at 11:40pm

आदरणीय सुरेंद्र जी आदाब । मेरी इस कृति पर आए बहुत बहुत शुक्रिया ।जी सही कहा आपने । देखने को तो ये एक छोटी दी ग़ज़ल रही ।लेकिन जिन बारीकियों को आदरणीय समर सर ने हलके में आसानी से मगर गहराई से समझा दिया । दिल से आभार ।

सादर

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 27, 2018 at 9:26pm

ऐसी चर्चा से हम.सबका ज्ञान वर्धन हुआ। आदरणीय समर कबीर साहब के हम सब आभारी हैं। 

Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2018 at 8:07pm

आद0 हर्ष महाजन जी सादर अभिवादन। आपकी ग़ज़ल के हवाले से बढिया चर्चा हुई। इस प्रयास के लिए बधाई।

Comment by Harash Mahajan on February 27, 2018 at 3:52pm

आदरणीय समर जी आपका

बहुत बहुत शुक्रिया सर ।

यूँ ही अपनी सरपरस्ती बनाये रखियेगा सर ।

सादर

Comment by Harash Mahajan on February 27, 2018 at 3:46pm

तीसरे शेर में एक त्रुटि सर 'ये" मिस हो गया ।

तीसरा शेर के सानी में  यूँ पढ़िए सर.....

"आंसू न इनको समझो ये तूफान हैं सनम ।'

Comment by Samar kabeer on February 27, 2018 at 3:38pm

तीसरे शैर के सानी मिसरे में एक शब्द लिखना भूल गए:-

'आँसू न इनको समझो ये तूफ़ान हैं सनम'

4थे का सानी यूँ करें :-

'ऐसा लगे समझना,परेशान हैं सनम'

बाक़ी ठीक है ।

Comment by Harash Mahajan on February 27, 2018 at 3:24pm

आदरणीय समर सर आपके मार्गदर्शन से ग़ज़ल को अंजाम तक पहुचाने की और कोशिश की है । ज़र देखिए सर

...

हम भी तो अपने दौर के सुल्तान हैं सनम,

कुछ भी कहो युँ पहले तो इंसान हैं सनम ।

माना मरीज़ आज मुहब्बत के हो गए,

पर अपनी ज़िंदगी के सुलेमान हैं सनम ।

ये जो हमारी आंखों में हैं अश्क़ देखिए,

आँसू न इनको समझो तूफान हैं सनम ।

हम भूल जाएँगे तुम्हें मुमकिन नहीं मगर,

फिर भी लगे समझना परेशान हैं सनम ।

अब छोड़ दर्द-ए-इश्क़ कभी दर्द-ए-आश्की,

इस ज़िन्दगी में अपने भी अरमान हैं सनम ।

XXX

सादर ।

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