१९७१ के बंगला देश समर पर बेनजीर :
==''...मैं नहीं देख पाई कि लोकतान्त्रिक जनादेश की…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 17, 2013 at 6:54pm — 3 Comments
आजकल हास्य के लिए ,
अश्लीलता का सहारा लिया जाता है !
जनता खूब हंसती भी है ,
उन्हें भी आनंद आता है !!
जब प्रतिदिन नवीन आविष्कार हो रहे ,
अश्लीलता और नग्नता पर !
आत्मा कह रही मेरी ,
तू भी कुछ नया कर !!
इस अधखुली दुनियां की ,
बात बहोत ही निराली है !
चमक तो दिखता है ,
पर दिन भी होती काली है !
टिप्पणी करने से डरता हूँ ,
क्या कहूँ ?कैसे कहूँ ?
उलझता जा रहा हूँ ,
इस अधखुली दुनियां में !!
राम शिरोमणि पाठक…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 17, 2013 at 6:07pm — 2 Comments
हर किसी को ग़म यहां पर
और तो ना दीजिए
हो सके तो मुस्कुराते
कारवां रच दीजिए
आ गई जो रात काली
तो नया है क्या हुआ
ये तो है किस्सा पुराना
राख इसपर दीजिए
लिख रहा जो लाल केंचुल
चीखते मज़हब नए
पोखराजी लेखनी ले
आप भी चल दीजिए
देखना क्या ये तमाशे
चार दिन का जब सफ़र
हर लहर को बस किनारे
का पता दे दीजिए
द़श्त सहरा खून पानी
लिख चुके कमसिन गज़ल
कुछ तराने अब ख़ुदा के
नाम भी कर दीजिए
दर्द के…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 17, 2013 at 2:30pm — 3 Comments
(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:23am — 16 Comments
ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना जायेंगे
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के
भर रही हुंकार सरहद लहू का टीका सजा के
बारूद के ज्वाला मुखी को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम
भाई कहकर छल से…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 17, 2013 at 11:12am — 16 Comments
जिन्दगी तुझसे क्या
सवाल करूँ , क्या शिकायत करूँ
तुझसे जैसा चाहा
वैसा ही पाया ........
फूल चाहे तो फूल ही मिले
फूलों में काँटों की शिकायत
तुझसे क्यूँ करूँ ,
मेरी तकदीर के काँटों की
शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ ..........
सितारों भरा आसमान
चाहा तो भरपूर सितारे मिले
कुछ टूटे बिखरे सितारों की शिकायत
तुझसे क्यूँ करूँ ,
मेरी तकदीर के टूटे सितारों
की शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ…
ContinueAdded by upasna siag on January 17, 2013 at 9:46am — 4 Comments
दुर्मिल सवैया
===============
कवि-कॊबिद हार गयॆ सबहीं, नहिं भाँष सकॆ महिमा हर की ॥
प्रभु आशिष दॆहु बहै कविता, सरिता सम कंठ चराचर की ॥
नित नैन खुलॆ दिन-रैन मिलॆ,समुहैं छवि शैल-सुता वर की ॥
कवि राज गुहार करॆं तु्म सॆ, त्रिपुरारि सुनॊ विनती नर की ॥
===========================================
दुर्मिल सवैया
===============
हरि नाम रटा कर री रसना,हरि नाम बिना जग ऊसर है !!
सब ज्ञान - बखान परॆ धर दॆ,बिन नॆह हरी मन मूसर है !!
जिय चाह रहा…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2013 at 11:03pm — 11 Comments
किसने रंग डाला है ऐसा
मारी किसने पिचकारी
ऐसे ही रंग मोहे रंग दे
हे मुरलीधर बनवारी
बह गए मेरे रेत घरौंदे
टूट गए आशा के हौदे
चाहे जितनी जुगत लगा लूं
कमती ना है दुश्वारी
कैसे बिखरे तान सहेजूं
किस जल से ये प्राण पखेजूं
सांझ के अनुपद धूनी रमाए
कह जाओ मुरलीधारी
शेष पहर छाया है पीली
भीत भरी अंखियां हैं नीली
धिमिद धिमिद नव नाद जगाते
आओ हे…
Added by राजेश 'मृदु' on January 16, 2013 at 5:05pm — 8 Comments
======ग़ज़ल========
बहरे हजज मुसद्दस् महजूफ
वजन-1222/1222/122
दियों में तेल हम भरने लगे हैं
अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं
नहीं रूकती हमारी हिचकियाँ भी
हमें वो याद यूँ करने लगे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 16, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
सुना है ,
अब,एम बी बी एस करने पर
पशु चिकित्सक की डिग्री
दी जा रही है,
क्योंकि,
मनुष्य की कोख से,
जानवर कि,
नस्ल आ आ रही है .
Added by Dr Dilip Mittal on January 16, 2013 at 3:00pm — 5 Comments
व्यसन बना जी का जंजाल ,
असमय ही खाए जा रहा काल !
इतनी सुन्दर ज़िन्दगी को ,
क्यूँ व्यर्थ में गवांते हो !
जानते हो की बुरी है ,
फिर भी पीते या खाते हो !!
व्यसन के अतिरिक्त कोई ,
कार्य नहीं है शेष !
अल्प दिनों बाद केवल
रह जाओगे अवशेष !!
फटे कपड़ों में जब इनके बच्चे ,
घर से बाहर निकलते है ,
लोग दया दिखाते बच्चों पर ,
व्यसनी को गाली देते है !!
सोचो ऐसे व्यसनी को ,
उनके अपने कैसे सहते है,
नशा करने के बाद ,…
Added by ram shiromani pathak on January 16, 2013 at 12:30pm — 3 Comments
Added by SURINDER RATTI on January 16, 2013 at 11:51am — 7 Comments
पथराया सा आसमां
इंतज़ार कर रहा है.....
तूफानी हवाओं में
सफेद बर्फ के फूल
नंगी निर्जीव टहनियों पर
कफ़न से रहे हैं झूल l
तूफान के रुकने पर
सूरज के निकलते ही
ये मोम से पिघलकर
बन जायेंगे धूल l
पथराया सा आसमां
इंतज़ार कर रहा है.....
-शन्नो अग्रवाल
Added by Shanno Aggarwal on January 16, 2013 at 6:30am — 9 Comments
==========ग़ज़ल========== …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments
हर रोज़ एक शब्द
सोचती हूँ
उसे बुन लेती हूँ
बुन कर सोचती हूँ
फिर उधेड़ देती हूँ ..
उधड़े हुए शब्द
ह्रदय में
एक लकीर सी बनते
तीखी धार की तरह
निकल जाते हैं ....
सोचती हूँ यह शब्दों
का बुनना फिर
उधेड़ देना
यह उधेड़-बुन न जाने
कब तक चलेगी ..
शायद यह जिन्दगी ही
एक तरह से उधेड़ - बुन ही है
Added by upasna siag on January 15, 2013 at 6:44pm — 12 Comments
एक फसली जमीन को
तीन फसली करने का हुनर.....
धर्म के अंकुश तले
आकुल उड़ान की कला......
अभिशप्त़ कामनाओं को
ममी बनाने का शिल्प.......
कहां जानता है
एक अदना सा आदमी ?
वह जानता है
ताप, पसीना, थकान
विषाद, उत्पीड़न
और उससे उपजी
तटस्थता
जिसको उसने नहीं चुना,
वह जानता है
टीस, चुभन, दर्द, मरण
और इन्हें समेटकर
हो जाता है एकदिन…
Added by राजेश 'मृदु' on January 15, 2013 at 6:00pm — 14 Comments
कोई हद नहीं थी ,
उसके ऐतबार की !
एक अंतहीन अंधविश्वास ,
शायद !अतिशयोक्ति थी प्यार की !!
कोई प्रतिरोध नहीं किया ,
सोचा न क्या होगा अंजाम ,
घुटन भरी ज़िन्दगी ,
जीती रही गुमनाम !!
जब कोई अपना ही ,
दिन रात प्रताड़ित करता है !
एक नहीं सैकड़ों बार ,
जी जी कर फिर वो मरता है !
मानसिक बीमार कर दिया इतना ,
इसलिए उसने आत्मदाह किया ,
घुटन भरी ज़िन्दगी ने ,
ऐसा करने पर मजबूर किया !!
इतना भयंकर निर्णय ,
कोई ऐसे ही…
Added by ram shiromani pathak on January 15, 2013 at 3:30pm — 7 Comments
==========दोहे===========…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 3:30pm — 14 Comments
धन्य धरा भारत की जहाँ पग पग लगते मेले
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 14, 2013 at 1:08pm — 16 Comments
धीर धरे चुप गहन कूप
होतीं हैं बेटियाँ ../
गंगा की जलधार सीं ,
अर्घ्य की पावनधार सीं ,
जीवन के आधार सीं .
भोर सजीली भक्ति रूप
होतीं हैं बेटियाँ ..!!
सुभग अल्पना द्वार कीं,
सजतीं वंदनवार सीं/
महकें हरसिंगार सीं ,
जीवन भर की छाँह -धूप
होतीं हैं बेटियाँ ..!!
बाबा के सत्कार सीं ,
मर्यादा परिवार कीं ,
बेमन हैं स्वीकार सीं ,
धीर धरे चुप गहन कूप
होतीं हैं बेटियाँ ...!!!
Added by भावना तिवारी on January 14, 2013 at 1:00pm — 11 Comments
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