For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं"

======ग़ज़ल========
बहरे हजज मुसद्दस् महजूफ
वजन-1222/1222/122

दियों में तेल हम भरने लगे हैं
अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं

नहीं रूकती हमारी हिचकियाँ भी
हमें वो याद यूँ करने लगे हैं

हुईं बेचैन हाथों की उंगलियाँ
पुराने जख्म जो भरने लगे हैं

नहीं समझे हमारी चाहतों को
बिछड़ के हाथ वो मलने लगे हैं

चरागों को बुझाने अब अँधेरे
हवा के कान फिर भरने लगे हैं

जवानों ने भरी हुंकार जबसे
सियासी चाल फिर चलने लगे हैं

शरारत कर रहे जो तीन बन्दर
मदारी को बड़े खलने लगे हैं

पुरानी दोस्ती का वास्ता दे
मेरे अपने मुझे छलने लगे हैं

रदीफो काफिया बेबह्र लेकर
अनाडी शायरी करने लगे हैं

मिटाने गर्दिशों को नौजवाँ खुद
मशालों की तरह जलने लगे हैं

हमारे हाँथ चन्दन हो गए क्या
अफई ऐसे यहाँ पलने लगे हैं

नहीं मालूम था अपने ठगेंगे
समय ये देख सब डरने लगे हैं

गधों को आपने घोड़ा बनाया
हरी फसलें वही चरने लगे हैं

चढ़े थे दीप कुछ खुर्शीद बनके
समय के साथ वो ढलने लगे हैं

संदीप पटेल "दीप"

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 18, 2013 at 3:32pm

दियों में तेल हम भरने लगे हैं 
अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं...वाह बहुत कुछ शामिल करता शेर 

रदीफो काफिया बेबह्र लेकर 
अनाडी शायरी करने लगे हैं .....क्या बात कही है, वाह 

छोटी बह्र पर सुन्दर ग़ज़ल आ. संदीप जी , हार्दिक बधाई 

Comment by लतीफ़ ख़ान on January 17, 2013 at 9:34pm

जनाब संदीप पटेल जी ,, खूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे-दिल से मुबारकबाद ,,,कुछ शेर बेहद उम्दा बन पड़े हैं ,,जैसे,,१, नहीं रुकतीं हमारी हिचकियाँ भी ,, हमें याद वो यूं करने लगे हैं | २, चिरागों को बुझाने अब अँधेरे , हवा के कान फिर भरने लगे हैं | वाह  वा क्या बात है ,,,बेहद उम्दा 

Comment by Shanno Aggarwal on January 17, 2013 at 8:19pm

संदीप जी, वाह ! क्या खूबसूरत ग़ज़ल....

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 17, 2013 at 7:39pm

हुईं बेचैन हाथों की उंगलियाँ
पुराने जख्म जो भरने लगे हैं... Waaah !!! Bahut Khoob Mitr !!!

Comment by upasna siag on January 17, 2013 at 4:58pm

नहीं समझे हमारी चाहतों को 
बिछड़ के हाथ वो मलने लगे हैं ........बहुत सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई .........

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 17, 2013 at 3:52pm

आदरणीय राजेश झा जी सादर प्रणाम
आपको मेरी ग़ज़लों की कहन भाई और आपसे बधाई मिली
सच कहूँ तो जब मित्रों अग्रजों की प्रतिक्रिया आती है तो मनोबल बढ़ जाता है
मुझ पर ये स्नेह यूँ ही बनाय रखिये
बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 17, 2013 at 3:50pm

आदरणीय अनंत भाई जी सादर
इस हौसलाफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया
आपकी सारी  दाद सादर क़ुबूल की
बहुत बहुत आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 17, 2013 at 3:49pm

आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस प्रकार प्रतिक्रया पाकर मन उछल रहा है
मनोबल बढ़ गया है ............................
किस तरह धन्यवाद प्रेषित करूँ
अपना ये स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाए  सर जी
आपका बहुत बहुत आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on January 17, 2013 at 2:38pm

चरागों को बुझाने अब अँधेरे
हवा के कान फिर भरने लगे हैं----- वाह । क्‍या चित्र उपस्थित किया है

शरारत कर रहे जो तीन बन्दर
मदारी को बड़े खलने लगे हैं----- इशारा कुछ-कुछ समझ में आया पर लेखक ही अधिक स्‍पष्‍ट कर सकते हैं

आप बेहतरीन गजलें लिखते रहें और इसी प्रकार हमें पढ़ाते रहें, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2013 at 11:07am

वाह मित्रवर वाह ग़ज़ल में ऐसा गया ढल की बस आनंद आ गया, सुन्दरता से ओतप्रोत बेहद शानदार ग़ज़ल सभी के सभी अशआर माशाल्लाह गज़ब के हैं हार्दिक बधाई के साथ - साथ ढेरों दाद भी कुबूलें. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
2 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service