74 members
97 members
376 members
184 members
555 members
जनाब अहमद फराज़ साहब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल
221 1221 1221 122
बुझते हुए दीये को जलाने के लिए आ
आ फिर से मेरी नींद चुराने के लिए आ //१
दो पल तुझे देखे बिना है ज़िंदगी मुश्किल
मैं ग़ैर हूँ इतना ही बताने के लिए आ //२
तेरे बिना मैं दौलते दिल का करूँ भी क्या
हाथों से इसे अपने लुटाने के लिए आ //३
तेरा ये करम है जो तू आता…
Posted on May 1, 2019 at 12:00am — 9 Comments
प्याज भी बोलते हैं- एक लघुकथा
-------------------------------------
हर कोई सब्ज़ी वाले से बड़ा प्याज माँगता है। कल मैं भी ठेलेवाले भाई से प्याज ख़रीदते समय बड़े प्याज माँग बैठा। तभी, बड़े प्याजों के बीच बैठे एक छोटे प्याज ने मुझसे कहा,
"भाई साहब, हर कोई बड़ा प्याज माँगता है, तो हमारा क्या होगा? हम भी तो प्याज हैं!"
मैं सकपका गया, ये कौन बोल रहा है? प्याज? क्या प्याज भी बोलते हैं? तभी मैंने देखा वहीं पड़े कुछ बड़े प्याज आंनद…
Posted on April 27, 2019 at 1:00pm — 7 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
अपनी गरज़ से आप भी मिलते रहे मुझे
ग़म है कि फिर भी आशना कहते रहे मुझे //१
दिल की किताब आपने सच में पढ़ी कहाँ
पन्नों की तर्ह सिर्फ़ पलटते रहे मुझे //२
मिस्ले ग़ुबारे दूदे तमन्ना मैं मिट गया
बुझती हुई शमा' सा वो तकते रहे मुझे //३
सौते ग़ज़ल से मेरी निकलती थी यूँ फ़ुगाँ
महफ़िल में सब ख़मोशी से सुनते रहे मुझे…
Posted on February 4, 2019 at 10:13am — 6 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
मिलना नहीं जवाब तो करना सवाल क्यों
मेरी ख़मोशियों पे है इतना मलाल क्यों //१
दामाने इंतज़ार में कटनी है ज़िंदगी
मरने तलक है हिज्र तो होगा विसाल क्यों //२
यारों को कब पता नहीं कैसे हैं दिन मेरे
है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों //३
जब है ज़रीआ कस्ब का कोई नहीं मेरा
आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल…
Posted on February 3, 2019 at 12:09pm — 3 Comments
ओपन बुक्स परिवार की ओर से आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें.
जी आप कुछ कुछ ठीक कह रहे हैं त्रुटी वश ये न की जगह ना लिखा गया 'केवल दो किलोमीटर पीछे हुए एक्सीडेंट का वो बेचारा पेशेंट साइकिल वाला था न और ये कार वाला, क्या ये अंतर मैं नहीं समझती'----ये इस तरह लिखा था मेरी मूल लघु कथा में ----हम दैनिक बोलचाल में न शब्द का इस्तेमाल ? के साथ करते हैं इसमें न के बाद ? मार्क लगाना भूल गई बहुत बहुत आभार इस और ध्यान दिलाने के लिए
सादर आभार तहे दिल से शुक्रिया ग़ज़ल आपको पसंद आई राज़ जी
welcome sir
aapki rachnaen behatreen hain
मुझको तिरी बेजारियों का कुछ गिला नहीं
मेरी भी ज़िंदगी अना दिखला के रह गई
मैं भी न मिल सका उसे पिछले बरसके बाद
तनहा कली कहीं कोई मुरझा के रह गई
बहुत ही उम्दा गज़ल है राज़ भाई बहुत ख़ूब
राज़ साहब आपने मुझ नाचीज़ की भी रचना पढ़ी मैं धन्य हो गया, आपकी दाद मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा है और कुछ और अच्छा लिखने की प्रेरणा अब मुझे मिलती रहेगी.... आपका तलबगार प्रमेन्द्र डाबरे
राज भाई तहे दिल से मेरा शुकराना स्वीकार करे ,आपके स्नेहिल वचन मुझे और अच्छे काव्य की रचना की प्रेरणा देंगे ,सराहना के लिए बहुत -बहुत साधुवाद ......लोकेश सिंह
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |