हम चुप हैं के कहने से कुछ नहीं होता
बस ग़म निकलता है पर कम नहीं होता,
कल फिर हम दिल को संभालेंगे देखो
ये ग़म का मौसम कभी कल नहीं होता,
अच्छा है ये के प्यास क्या है हम नहीं जानते
साकी की मेहरबानी मेरा पैमाना कम नहीं होता,
हम बे घर तो नहीं फुटपाथ है अपना घर
हम घर बनाते हैं हमारा घर नहीं होता ,
अपने पराये का फ़र्क़ अब ख़त्म हो गया है
सब दर्द दे रहे हैं अब दर्द नहीं होता.
Posted on September 20, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
अब कोई भी मेरे आस पास नहीं होता
तुम चले गये हादसा अब हर वक्त नहीं होता,
सौ जुगनु चमकते थे मेरे दिल में कभी
अब इस टूटे ताजमहल में परिंदा भी नहीं आता,
बे वफाई कर के भी वफ़ा ही महसूस हो
मै जानता हूँ तुझे ये फन नहीं आता,
सदियाँ गुजर गयीं शोलों पे चलता रहता हूँ
खुदा बे खबर पड़ा है हमें रोना नहीं आता,
अपने घर को जलते हुए देखकर सोचता हूँ
आग खुद बुझे तो बुझ जाये हमें तो बुझाना नहीं आता.
Posted on September 19, 2012 at 8:30pm — 2 Comments
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Comment Wall (4 comments)
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बहुत बहुत शुक्रिया आपका सादर आभार स्नेह यूँ ही सदैव बनाये रखिये
प्रमेन्द्र जी, वाकई में आपने अच्छा लिखा है, बधाई स्वीकार करें.
प्रमेन्द्र जी प्रेरणा तो आपकी ही है ,आप जैसे हुनरमंद दोस्त किस्मत वालो को मिलते है ,बहुत बहुत धन्यवाद ....लोकेश
pramendra ji apaka hardik swagat hai.