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छत्तीसगढ़ के जांजगीर में ०९ अक्टूबर १९६४ को जन्म.
तीन कथा संग्रह : कुंजड-कसाई, ग्यारह सितम्बर के बाद, चहल्लुम
दो कविता संग्रह : और थोड़ी सी शर्म दे मौला, संतो काहे की बेचैनी
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के वेबसाईट में उपन्यास पहचान
अनवर सुहैल : उपन्यास: पहचान : हिन्दी-समय डॉट काम
स्व. अम्मी जाहिदा इस्माइल की स्मृति को अर्पित
अक्ल वालों को अक्ल दे मौला
इल्म वालों को इल्म दे मौला
धर्म वालों को धर्म दे मौला
और थोड़ी- सी शर्म दे मौला
-----------अनवर सुहैल
हर कोई लालायित कितना, कैसे भी हों कालजयी
इस चक्कर में ठेला-ठाली, धक्का-मुक्की मची रही
नदी वही है, लहर वही है, और खिवईया रहे वही
लेकिन अपनी नाव अकेली बीच भंवर में फंसी रही
बार-बार समझाते उनको हम भी हैं तुम जैसे ही
बार-बार उनके भेजे में बात हमारी नहीं घुसी
छोडो तंज़-मिजाज़ी बातें, आओ बैठो गीत बुनें
खींचा-तानी करते-करते बात वहीं पे रुकी रही
(अप्रकाशित मौलिक)
Posted on February 22, 2016 at 8:30pm
कोयला खदान की
काली अँधेरी सुरंगों में
निचुड़े तन-मन वाले खनिकर्मी के
कैप लैम्प की पीली रौशनी के घेरे से
कभी नहीं झांकेगा कोई सूरज
नहीं दीखेगा नीला आकाश
एक अँधेरे कोने से निकलकर
दूसरे अँधेरे कोने में दुबका रहेगा ता-उम्र वह
पता नहीं किसने, कब बताया ये इलाज
कि फेफड़ों में जमते जाते कोयला धूल की परत को
काट सकती है सिर्फ दारु
और ये दारू ही है जो एक-दिन नागा…
Posted on January 1, 2016 at 3:30pm — 3 Comments
अइसई नहीं मिलता
सेवादारी का ओहदा
बड़ी कठिन परीक्षा है
निभा ले जाना ड्यूटी सेवादारी की
हाकिम-हुक्काम तो
कोई भी बन सकता है
सेवादार बनना बहुत कठिन है
सेवादार को होना चाहिए
भाव-निरपेक्ष...संवेदनहीन
अपने ड्यूटी-काल में
और उसके अलावा भी
जाने कौन सा राज़
कब किस हालत में फूट जाए
और लेने के देने पड़ जाएँ
हाकिम बना रहे
हाकिम बचा रहे
हुकुम सलामत रहे
तो रोज़ी-रोटी की है गारंटी
इतनी…
Posted on December 15, 2015 at 5:53pm — 2 Comments
बाज़ार रहें आबाद
बढ़ता रहे निवेश
इसलिए वे नहीं हो सकते दुश्मन
भले से वे रहे हों
आतताई, साम्राज्यवादी, विशुद्ध विदेशी...
अपने मुल्क की रौनक बढाने के लिए
भले से किया हो शोषण, उत्पीड़न
वे तब भी नहीं थे वैसे दुश्मन
जैसे कि ये सारे हैं
कोढ़ में खाज से
दल रहे छाती पे मूंग
और जाने कब तक सहना है इन्हें
जाते भी नहीं छोड़कर
जबकि आधे से ज्यादा जा चुके
अपने बनाये स्वप्न-देश में
और अब तक बने…
ContinuePosted on November 14, 2015 at 9:00pm — 3 Comments
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Comment Wall (8 comments)
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सुहैल जी
आपकी मित्रता का तहेदिल से स्वागत है
वैसे ओपन बुक्स ऑन लाइन के सभी सदस्य एक ही परिवार के हैं सभी मेरे लिए मित्र जैसे ही हैं
आपकी रचनाये अच्छी होती हैं
जब भी ब्लॉग पर दिखेगी मैं अवश्य सराहुंगा
मैं नया सदस्य हूँ अभी तौर तरीके सीख रहा हूँ इसीलिये उत्तर में बिलम्ब हुआ कृपया छमा करे I
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाए " परवरदिगार आपको दायित्व की ताकत दे | आपका हामार स्नेह
बना रहे |-लक्ष्मण लडीवाला,जयपुर
बहुत बहुत बहुत स्वागत आप का आदरणीय
आदरणीय अनवर सुहैल जी ,आपका हमारी मित्र मंडली मे स्वागत है ।
Apne mitr banaya, ham abhari hain.
सदस्य टीम प्रबंधनDr.Prachi Singh said…
मेरे प्रोफाइल से इंस्पिरेशन... मैं क्या कहूँ आपने यह कह मुझे निःशब्द कर दिया है....इस सद्भाव के लिए और मान के लिए आपकी हृदय से आभारी हूँ आदरणीय अनवर जी.
आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया
आपकी दोनों बेटियों को ढेर सारा स्नेहाशीष और सद्कामनाएं.
सादर.
आदरणीय श्री अनवर सुहैल जी आपकी रचना "मांगना"को "महीने की सर्वश्रेष्ट रचना पुरस्कार" प्रदान किये जाने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय अनवर सुहैल जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की रचना "मांगना" को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना पुरस्कार के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको पुरस्कार राशि रु 1100 /- और प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस नामित कृपया आप अपना नाम (चेक / ड्राफ्ट निर्गत हेतु), तथा पत्राचार का पता व् फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
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