For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे

कब सुख से सूखे लोचन पर करुणा  के घन लाओगे

 

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

कब तक आलंबन पाओगे

व्योम प्रवृत्त विमानों का

कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे

 

नश्वर देह सुरक्षित कितना

रक्षक के समुदायों से

दंभ भरा अस्तित्व बचेगा

कब तक कठिन उपायों से

मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे

 

झूठा नाटक कब तक मरने

वालों पर सविनय  होगा

कब तक अधरों के फूलों से

मातम का अभिनय होगा

कब तक शव –पर्वत पर चढ़कर तुम परचम  लहराओगे

 

बंद कर सकोगे कब तक तुम

मुख निर्मम सच्चाई का

छिपा सकेगा छद्म आचरण

कब तक कृत्य कसाई का

भारत के माथे पर कब तक काला तिलक लगाओगे

 

वमन करेगा कब अंतर्मन

युग-युग की संचित हाला

कब प्रकाश का पुंज धंसेगा

अंतस में बनकर ज्वाला

कब अपने अन्तर्यामी को जयमाला पहनाओगे 

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

Views: 1043

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 5, 2017 at 5:06pm
बहुत ही सुन्दर सरस ओजमयी सृजन नमन है लेखनी को..सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 8:34pm

वाह | बहुत सुंदर रचना|

नश्वर देह सुरक्षित कितना

रक्षक के समुदायों से

दंभ भरा अस्तित्व बचेगा

कब तक कठिन उपायों से

मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे

 

झूठा नाटक कब तक मरने

वालों पर सविनय  होगा

कब तक अधरों के फूलों से

मातम का अभिनय होगा

कब तक शव –पर्वत पर चढ़कर तुम परचम  लहराओगे | बहुत खूब | हार्दिक बधाई सर |

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 3, 2016 at 8:59pm

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

कब तक आलंबन पाओगे

व्योम प्रवृत्त विमानों का

कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे..............वाह ! वाह ! खूब फटकार लगायी है साहब.

आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब सादर, एक सधे अंदाज में बहुत सुंदर ओज पूर्ण गीत रचना हुई है. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by रामबली गुप्ता on October 3, 2016 at 5:33pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी, मन्त्रमुग्ध और अभिभूत कर दिया आपकी इस छंद आधारित गीत रचना ने। कालजयी रचना हुई है आदरणीय। आकाशभर बधाई लीजिये। नमन है आपको और आपकी लेखनी को।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2016 at 7:27pm
आ गोपाल नारायणजी बहुत ही ओज पूर्ण रचना को शत शत नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 12:42pm

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत सुन्दर ओजपूर्ण गीत रचना हुई है , हृदय से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 4:07pm

बंद कर सकोगे कब तक तुम
मुख निर्मम सच्चाई का
छिपा सकेगा छद्म आचरण
कब तक कृत्य कसाई का
भारत के माथे पर कब तक काला तिलक लगाओगे

वमन करेगा कब अंतर्मन
युग-युग की संचित हाला
कब प्रकाश का पुंज धंसेगा
अंतस में बनकर ज्वाला
कब अपने अन्तर्यामी को जयमाला पहनाओगे

नमन नमन नमन सदर नमन सर आपकी इस ओजपूर्ण प्रस्तुति को ... अलंकृत शब्दों ने प्रस्तुति में जोश भर दिया है .... देश प्रेम से ओत-प्रोत इस प्रस्तुति के लिए पंक्ति दर पंक्ति ... शब्द दर शब्द दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 1, 2016 at 3:14pm
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी बहुत ही सुन्दर छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2016 at 1:06pm

आ, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर बहुत सुंदर रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2016 at 11:51am

आ. डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , बहुत सुन्दर सामयिक एवं सार्थक कुकुभ छंद के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service