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ग़ज़ल- कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये

2122- 1212- 1212- 22 /112

कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये

क्या पता दिलफ़रेब बन के ग़मग़ुसार आये

 

मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन

पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये

 

ज़ीस्त गुज़री ख़मोशियों के दरमियान मगर

ये हुआ वक़्ते मर्ग लोग बेशुमार आये

 

दिल नज़ारा ए रंगो गुल को कब से तरसे है

ऐ खुशी काश तू मिसाले नौबहार आये

 

कौन सा दह्र है ये कौन सी जगह है जहाँ

दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार आये

 

(दिलफ़रेब- धोखा देने वाला, ग़मग़ुसार- हमदर्द, वक़्ते मर्ग- मौत के समय

मिसाले नौबहार- बहार की तरह, दह्र- काल)

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2015 at 3:55pm

आदरणीय शिज्जू जी. .आपकी ग़ज़लों से कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है ..और हमेशा की तरह सुंदर भावों से सजी संवरी , लुभाती , सिखाती , लवों पे गुनगुनाहट बन के आती , दिल को खुशनुमा बनाती इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारे बधाई स्वीकार करें . सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 15, 2015 at 11:10am
क्या लाजवाब गजल कही आदरणीय मजा आ गया कई शे'र मे तो बधाई स्वीकार करें!
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 15, 2015 at 9:55am
मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन
पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये।
अच्छा है, बहुत अच्छा , बधाई, आदरणीय शिज्जु शकूर जी, सादर।
Comment by दिनेश कुमार on January 14, 2015 at 9:49pm
Gazal bahut badhiya hai...shabdon mein kaphii dum hai...waaaah....
Kya ess bahr mein koi famous filmi Geet bhi hai..?
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 14, 2015 at 6:36pm

मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन

पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये

वाह सर जी खूब क्या खूब ग़ज़ल हुई है बधाई ,,,,


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2015 at 2:17pm

शिज्जू जी, सभी अशआर अच्छे लगें, बहुत बहुत बधाई.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 12:49pm

मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन

पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये……….आदरणीय  शिज्जु "शकूर" जी, सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आपको   !

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 12:25pm

कौन सा दह्र है ये कौन सी जगह है जहाँ

दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार आये

आदरणीय शिज्जु शकूर सर उम्दा ग़ज़ल हुई है ,ढेरों दाद कबूल फरमावें | ये क्या जगह है दोस्तों ये कौनसा  दयार है \ हदे निगाह तक जहाँ गुबार ही गुबार है '  की  याद ताज़ा कर दी आपने |  यह शेर काफ़ी पसंद आया |ढेरों  दाद वाह  

ज़ीस्त गुज़री ख़मोशियों के दरमियान मगर

ये हुआ वक़्ते मर्ग लोग बेशुमार आये

सादर अभिनन्दन 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:23pm

आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें ।

दिल नज़ारा ए रंगो गुल को कब से तरसे है

ऐ खुशी काश तू मिसाले नौबहार आये              ---------- बहुत सुन्दर !! आमीन

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:58am

शिज्जू भाई

बेहतरीन i सभी अशआर उम्दा i  बधाई  स्वीकार करें i

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