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नये साल की ये सुबह, सुन कोयल का गान ।

मन में ऊर्जा भर गई, तन में आई जान ।।

 

सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।

भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।

 

समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो उम्र की चाल।

जीवन जो है हाथ में, गड्ढे में ना डाल।।

 

बीत गया जो वर्ष तो, देखें ना लाचार।

अपने सपनों को मिले, एक नया आधार।।

 

मोहक आँखों को लगे, एक सुहाना दृश्य।

पीछे क्या सौंदर्य के, हो मालूम अवश्य।।

 

-मौलिक व अप्रकाशित*

*संशोधित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 12, 2015 at 3:10pm

आदरणीय खुर्शीद जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 12, 2015 at 3:09pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार, अभी संशोधित करता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 12, 2015 at 3:08pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका हार्दिक आभार आपका स्नेह मिलता रहे बस यही अनुरोध है
सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 12, 2015 at 3:03pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपका आभार "दृश्य" और "अवश्य" की तुकांतता सही है पर "साथ" और "यथार्थ" जी हाँ यहाँ मैं गलत हूँ।

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 11:30am

सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।

भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।

आदरणीय शिज्जू शकूर सर सुन्दर दोहावली है |सादर अभिनन्दन |


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 5, 2015 at 10:51am

आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत सुन्दर दोहों की रचना की है , हार्दिक  बधाइयाँ । आ. गोपाल भाई की बात का संज्ञान लीजियेगा ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2015 at 7:45pm

शिज्जू  भाई

बहुत बढ़िया दोहे रचे  आपने i हिन्दीमे उर्ध्व का विलोम अधो  है अतः -समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो  उम्र की चाल।--शायद अधिक उपयुक्त होगा i आपको सुन्दर रचना के लिए पुनः बधाई i  सादर i


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 7:31pm
आदरणीय शिज्जु भाई जी इन सुन्दर दोहो के लिए हार्दिक बधाई। साथ और यथार्थ तथा दृश्य और अवश्य का तुकांत समझ नहीं आया शिज्जु भाई जी

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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 5:00pm

आदरणीय सौरभ सर छंदबद्ध रचनाओं पर जब तक आपकी टिप्पणी नहीं आ जाती दिल को सुकून नहीं मिलता आपका बहुत बहुत शुक्रिया सर आपकी सलाह पर अवश्य  अमल करूँगा।


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 4:58pm

आदरणीय गणेशजी रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ

कृपया ध्यान दे...

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