2112 1212 2112 1212
आइना सामने रखा तुमने कमाल कर दिया
हो गए ला-जवाब वो ऐसा सवाल कर दिया
उनको गुरूर था बहुत जीत पे अपनी कल तलक
ख़ौफ़-ए-शिकस्त ने उन्हें आज निढाल कर दिया
तेज़ हवा ने यक-ब-यक जिस्म से खींच ली कबा
खुल गए ज़ख्म दुनिया को वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया
ज़ोर चला है वक़्त पर कब किसी का बताइए
शम्स को भी तो वक्त ने पल में हिलाल कर दिया
जड़ दिए एक एक कर मेरे हुरूफ़ में गुहर
सागर-ए-इश्क़ ने मुझे…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2023 at 9:21am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी गर मुझको तेरी आरज़ू होती नहीं
अपनी सांसों से मेरी फिर गुफ़्तगू होती नहीं
गर तड़प होती न मेरे दिल में तुझको पाने की
मेरी आँखों में, मेरे ख्वाबों में तू होती नहीं
उम्र गुज़री है यहाँ तक के सफ़र में, दोस्तो!
पर ये वो मंज़िल है, जिसकी जुस्तजू होती नहीं
ये जहाँ गिनता है बस कुर्बानियों की दास्ताँ
जाँ लुटाये बिन मुहब्बत सुर्ख-रू होती नहीं
दोस्तों के दिल मुनव्वर जो नहीं होते 'शकूर'
रौशनी भी…
Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2020 at 1:09pm — 9 Comments
221 2121 1221 212
बे-ख़्वाब आँखों में दबे लम्हात से अलग
गुज़री है ज़िन्दगानी अलामात से अलग
दस्तार रह गई है रवाजों के दरमियाँ
पर इश्क़ खो गया है रिवायात से अलग
जीने की चाह में हुआ बंजारा आदमी
बस घूमता दिखे है मक़ामात से अलग
किस रिश्ते की दुहाई दूँ अहल ए जहाँ को मैं
है क्या यहाँ पे कहिये फ़सादात से अलग
वो वक़्त और ही था कि मौसम बदलते थे
मौसम रहा न अब कोई बरसात से अलग
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2018 at 1:26pm — 13 Comments
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जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है
आवाज़ के पीछे चुपके से, रस्ते से यूँ भी भटकाता है
तुम बाँच रहे हो जो इतना, अज्दाद के किस्से मंचों से
उन किस्सों को सुनने वाला अब, पत्थर पे जबीं टकराता है
इंसान फ़कत है इक ज़र्रा, मिट जाएगा खुद इक झटके में
आकाश को छूती मीनारें, बेकार ही तू बनवाता है
है रंग बदलने में माहिर, हर शख़्स सियासत के अंदर
कुछ भी कहे वो लेकिन मतलब, कुछ और…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 25, 2018 at 8:13am — 19 Comments
1222 1222 1222 1222
ज़मीन-ओ-आसमाँ के दरमियाँ रस्ता बनाता हूँ
इसी दुनिया में अपनी मुख़्तसर दुनिया बनाता हूँ
चढ़ाकर चाक पर मिट्टी कहा कुम्हार ने मुझसे
जहाँ जैसी ज़रूरत है इसे वैसा बनाता हूँ
बना लेता है अपने आप ही ये मुख़्तलिफ़ शक्लें
मेरा फ़न सिर्फ़ इतना है कि आईना बनाता हूँ
गुज़श्ता ज़िंदगी के तज़्रबों से वाकिए चुनकर
अकेला होता हूँ जब भी, कोई किस्सा…
Added by शिज्जु "शकूर" on February 22, 2018 at 11:24am — 5 Comments
2122 1212 22/112
ख़्वाब तूने कोई बुना होगा
तब तेरा रतजगा हुआ होगा
सर यक़ीनन मेरा झुकेगा जनाब
आपसे जब भी सामना होगा
मुद्दतों बाद मेरी याद आई
मुश्किलों से कहीं घिरा होगा
मुझको मेहनत लगी थी लिखने में
उसको एहसास इसका क्या होगा
शहर में होना आरज़ी है मगर
तज़्किरा मेरा बारहा होगा
आरज़ी – थोड़े समय के लिए, तज़्किरा – जिक्र
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2017 at 11:24am — 6 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 28, 2017 at 4:46pm — 7 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2017 at 5:26pm — 22 Comments
2122 1122 1122 22/112
कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले
वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले
वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा
साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले
मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी
पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले
अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको
कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले
खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ
रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले
एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर
आके बैठे…
Added by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 11:30am — 19 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2017 at 7:44pm — 8 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 30, 2017 at 1:30pm — 13 Comments
221 2121 1221 212
पत्ता था, सब्ज़, टूटके खिड़की में आ गया
हस्ती शजर की बाकी है मुझको बता गया
माना हवाएँ तेज़ हैं मेरे खिलाफ़ भी
लेकिन जुनून लड़ने का इस दिल पे छा गया
खोने को पास कुछ भी नहीं था हयात में
किसकी तलाफ़ी हो अभी तक मेरा क्या गया
शायद ये दुनिया मेरे लिए थी नहीं कभी
फिर शिकवा क्यों करुँ कि खुदा फ़ैज़ उठा गया
ख़्वाबों को ज़िन्दा करके भी क्या होता, दोस्तो!
मेरा जो वक्त था…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 17, 2017 at 2:30pm — 9 Comments
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जो अपने ख्वाब के लिए जाँ से गुज़र गए
खुद ख़्वाब बनके सबके दिलों में उतर गए
थोड़ा असर था वक्त का थोड़ी मेरी शिकस्त
जो ज़ीस्त से जु़ड़े थे वो अहसास मर गए
रिश्तों पे चढ़ गया है मुलम्मा फ़रेब का
अब जाने रंग कुदरती सारे किधर गए
ये सोच ही रहा था कि मैं क्या नया लिखूँ
फिर से वही चराग़ वरक़ पर उभर गए
बिखरे हुए थे दर्द तुम्हारी किताब में
दिल से गुज़र के वो मेरी आँखों…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 10:30am — 8 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:11pm — 12 Comments
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वक्त मेरे हाथों से, यूँ फिसल गया चुपचाप
मेरी हर तमन्ना को, वो कुचल गया चुपचाप
चाक दिल, शिकस्ता पा, बेचराग़ गलियों से
भूल अपने ख्वाबों को, मैं निकल गया चुपचाप
एक आइना था…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 19, 2017 at 6:16pm — 7 Comments
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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं
अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से
खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं
आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब
शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं
बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया
धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं
फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप
कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:40am — 12 Comments
2122 2122 2122 212
रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा
बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा
वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये
नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा
एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन
मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा
जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का
तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा
अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को
इसलिए पाक़ीज़गी को ही…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments
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किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले
फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले
दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं
हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले
नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 11:00am — 17 Comments
2122 2122 2122 212
मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है
वो लड़कपन खूब था अब ये जवानी और है
आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया
तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है
मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर
हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है
वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर
मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है
आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर
कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 5:54pm — 16 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 11, 2016 at 12:30pm — 4 Comments
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