For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,999)

सब्र की इन्तहा

इन्तहा है, हमारे सब्र की,
न जाने कब ये खत्म होगी,
जाने कब जागेंगे, और कसेंगे पीठ अपनी,
कब सचेत होंगे,
कब रोकेंगे हम विध्वंस को|
क्यों हम कहते हैं की मान जाओ,
जबकि हम जानते है,
वो कहने से नहीं मानेंगे,
वो नहीं समझेंगे मानवता को|
हम अपने सामर्थ्य से रोक सकते हैं उन्हें,
फिर भी सब्र किये बैठे हैं|
बहुत बड़ी इन्तहा है हमारे सब्र की,
अनंत तो नहीं, पर उसकी ही ओर|

Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 9:30am — 14 Comments

मुक्तिका... क्यों है? ------- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका...



क्यों है?



संजीव 'सलिल'

*

रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?

रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??



थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.

और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??



गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.

आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??



नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.

काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??



उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.

आज… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 9:00am — 3 Comments

मुक्तिका: वह रच रहा... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



वह रच रहा...



संजीव 'सलिल'

*

वह रच रहा है दुनिया, रखता रहा नजर है.

कहता है बाखबर पर इंसान बेखबर है..



बरसात बिना प्यासा, बरसात हो तो डूबे.

सूखे न नेह नदिया, दिल ही दिलों का घर है..



झगड़े की तीन वज़हें, काफी न हमको लगतीं.

अनगिन खुए, लड़े बिन होती नहीं गुजर है..



कुछ पल की ज़िंदगी में सपने हजार देखे-

अपने न रहे अपने, हर गैर हमसफर है..



महलों ने चुप समेटा, कुटियों ने चुप लुटाया.

आखिर में सबका… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 8:57am — 2 Comments

वो कौन है जिसकी याद सताती है हमें||

वो कौन है जिसकी याद सताती है हमें|

न जाने किस तरफ ये रोज बुलाती है हमें||



खोजता हूँ मै उसे मिलती नहीं वो मुझको|

रात को लेकिन चुपके से जगाती है हमें||



कहीं मिले जो कभी मुझसे साफ़ कह दूँ मैं|

की कौन है और ऐसे सताती है हमें||



देर तक तन्हा बैठ कर के यूँ ही सोचते हैं|

फिर याद उसकी जमीं महफ़िल में लाती है हमें||



फूल के जैसे खिल के वो मेरे सिने में|

साथ हूँ इसका एहसास कराती है हमें||



एक अनजान सहारा सी बन गयी है वो|

अश्क… Continue

Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 8:52am — 18 Comments

गज़ल:कोल्हू चाक..

कोल्हू चाक रहट मोट की आवाज़ें,

शहरों से आयातित चोट की आवाज़ें.



मान मनोव्वल कुशलक्षेम पाउच और नोट ,

सबके पीछे छिपी वोट की आवाज़ें.



लूडो कैरम विडियो गेम के पुरखे हुए ,

बच्चों के हांथों रिमोट की आवाज़ें.



ध्यान रहे इस ताम झाम में दबें नहीं ,

आयोजन में हुए खोट की आवाज़ें .



मजबूरी में बार गर्ल बन बैठी वो ,

सिसकी पर भारी है नोट की आवाज़ें.



बेटा नहीं नियम से आता मनी-ऑर्डर,

कौन सुनेगा दिल के चोट की आवाज़ें.



मेरी… Continue

Added by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 8:30am — 7 Comments

बहुत सफल और सार्थक आराधना "जय माता की"

शक्ति की आराधना का पर्व आरंभ हो चुका है. नव दिन तक हम माँ की पूजा अर्चना करेंगे. हमारे यहाँ कन्या को भी देवी के रूप में माना जाता है और इसी लिए हम नवरात्रा के अंतिम दिन कन्या पूजन करने के बाद ही पर्व समाप्त करते हैं, किंतु यह आश्चर्य और दुख की बात है कि जो समाज कन्याओं को देवियों के रूप में पूजता है वही समाज कन्या भ्रूण हत्या का भी अपराधी बनता जा रहा है.



आइए इस पर्व पर हम सब माँ दुर्गा की सौगंध खा कर यह संकल्प लें कि हम ना तो अपने परिवार में कन्या भ्रूण हत्या के दोषी बनेगे और ना ही… Continue

Added by Pooja Singh on October 9, 2010 at 12:30am — 4 Comments

आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना





संजीव वर्मा 'सलिल'



*



आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.



रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....



*



पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.



चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....



*



अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.



कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..







परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 8, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल : "खामोशियों से लब को बचाता हूँ मैं"

अश्क आँखों में लेकर मुस्कुराता हूँ मैं.

गीत बहारों का पतझड़ में गाता हूँ मैं.



उठ गया है यकीं अब किनारों से मेरा,

मझधार में अपनी कश्ती लगाता हूँ मैं.



राहों से गुम होने लगे है दरख्तों के साए,

धुप को ही सेहरा सर का बनाता हूँ मैं.



नहीं छोड़ा शराफत ने मुझको कही का,

रस्म उल्फत का फिर भी निभाता हूँ मैं.



दूर तलक नहीं दिखते है खुशिओं के बादल,

गम से ही अपने दिल को बहलाता हूँ मैं.



"नूरैन" आबो हवा है ज़माने का…
Continue

Added by Noorain Ansari on October 8, 2010 at 12:30pm — 2 Comments

जय माँ दुर्गे -जय महाकाली (नवरात्रि पर विशेष)

जय माँ दुर्गे -जय महाकाली, जय माँ -जय माँ जय शेरावाली.

तू दानी माता महारानी, बाकी सब ही सवाली.

जय माँ दुर्गे --------------------------------------------------

तुम्हरी शरण में जो भी आते , जो भी तुमसे नेह लगाते.

तुम्हरी महिमा को नहीं जाने, मईया सब तुम्हरे गुण गाते.

हाथ पसारे सब ही आते - जाते ना पर खाली.

जय माँ दुर्गे ---------------------------------------------

शेर सवारी- भुजा कटारी, मुंडमालिनी-खप्परधारी.

ऐसा कौन जो तुमसे बचा हो , सब दुष्टन पर तुम हो… Continue

Added by satish mapatpuri on October 8, 2010 at 12:07pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
OBO लाईव तरही मुशायरा-४ में पेश की गई ग़ज़लें

जनाब नवीन चतुर्वेदी जी



खारों के पास ही नाज़ुक गुलों का घर क्यूँ है|

मुद्दतों से वही मसला, वही उत्तर क्यूँ है|१|



पेट भरता चला आया युगों से जो सब का|

भाग्य में उस अभागे के, फकत ठोकर क्यूँ है|२|



सालहासाल जिसके वोट खींच रहे - संसद|

'थेगरों' से पटी उसकी शफ़क चद्दर क्यूँ है|३|



और कितनी बढ़ाएगा बता कीमत इसकी|

दृष्‍टि में तेरी, मेरे भाग की शक्कर क्यूँ है|४|



जो कि अल्लाह औ भगवान दोनो हैं इक ही|

फिर जमीँ पे कहीं… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 8, 2010 at 10:30am — 1 Comment

ग़ज़ल : दराज़ पलकें, हसीन चेहरा...





दराज़ पलकें, हसीन चेहरा, वो दिलकशी और वो जो नजाकत |

कोई अगर लाजवाब हो तो, वो आवे देखे जवाब अपना ||



न मयकदा कोई रहना बाकी, न मयकशी न कहीं हो साकी |

अगर पलट दे मेरा ये दिलबर, जरा रुखों से नकाब अपना ||



खनकती आवाज़ शीशे जैसी, लचकती सी चाल हाय रब्बा |

वो माथे पे झूले नाग बच्ची, समझ के जुल्फों को नाग अपना ||



किसी मुस्स्विर का ख्वाब वो है, किसी तस्सवुर की है हकीकत ||

अगर कभी उसको देख ले तो,… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 8, 2010 at 7:00am — 3 Comments

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

आंसुओं को सुखाया बहुत है



मै समझता था जिसको शनासा

आज वो ही पराया बहुत है



मैंने जिसको हसाया बहुत था

उसने मुझको रुलाया बहुत है



अब कोई और खेले न दिल से

ये किसी ने सताया बहुत है



कर चला है वो नाराज़ मुझको

मैंने जिसको मनाया बहुत है



उसके लफ्जों में हूँ आज भी मै

वैसे उसने भुलाया बहुत है



तेरी संजीदगी कह रही है

तू कभी मुस्कुराया बहुत है



क्या हुआ जो समर अब नहीं… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 7, 2010 at 11:05pm — 8 Comments

सब के रब !दूर हर इक मन का धुंधलका करदे

सब के रब !दूर हर इक मन का धुंधलका करदे

आईने पर है जमी धुल जो सफा कर दे

नफस में कीना है ; सीने में है जलन नफरत ;

इन आफतों को क्रीम मौला तू दफा कर दे ..

नफस बीमार है चंगा तो बशर दीखता है ;

तू नफस और बशर दोनों को चंगा कर दे

अपने ही हाथों से कर डालें ना खुद को घायल ;

तू भले और बुरे से हमें आगाह कर दे

बन के मजनूं न फिरे कोई जख्म न खाए ;

सब कि आगोश में तौफीक की लैला कर दे

खुद से बेगाना हुआ फिरता है जो ,तू खुद ही ;

उन को खुद से मिला कर के तू… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 10:43pm — No Comments

हाँ मै ने भी किया है प्रेम

हाँ मै ने भी किया है प्रेम, मै ने भी पिया है प्रेम रस ;

मेरी प्रेयसी नित नूतन सद सनातन ;किन्तु पुरातन

कोमल भाव की सरस सरिता ,निज चेतना निज प्रेयसी .

मंथर कभी तीर्व कभी ,होती है चंचल सी गति .

निज प्रेयसी निज चेतना ;

प्रथम प्रेम का प्रथम पल्लव ,पल्लवित कुसमित प्रेम अविलम्बित .

निज धारणा निज चेतना ,प्रखर गुंजन से गुंजित ,

वल्लरी प्रेम कुसुम सुरभित ,अमर प्रेम की सी थाती .

प्रेम दीप की वो बाती;निज चेतना प्रिय… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:09pm — No Comments

भ्रमर

भ्रमर
मेरा मन
पतंगे सा कोमल
भ्रमर सा चंचल
अस्थिर
पारे सम
कोशिश करे
कैद करने की
इस मन को तेरा मन
पर
पारे सम
मेरा मन
न हो सके गा स्थिर
न ही
बंदी बन पाए गा कभी
जैसे कि भ्रमर
किसी उपवन का
----
यह भ्रमर नहीं है उपवन का
भ्रमर है ये मेरे मन का
स्वछन्द
हवा सम
स्व्त्न्त्त्र रहेगा यह
---
दीप जीर्वी

Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:06pm — 1 Comment

मैं तुझे ओढ़ता बिछाता रहू

मैं तुझे ओढ़ता बिछाता रहू
तुम से तुम को सनम चुराता रहू .
तू मेरी ज़िन्दगी है जान.ए.गज़ल
ज़िन्दगी भर तुझे ही गाता रहू.
तुम यूँही मेरे साथ साथ चलो ,
मैं जमाने के नभ पे छाता रहू .
गुल जो पूछे कि महक कैसी कहो?
तेरी खुशबु से मैं मिलाता रहू .
ऐ मुहब्बत नगर की देवी सुनो ,
तेरे दर पर दीप इक जलाता रहू
दीप जीर्वी

Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:05pm — 1 Comment

कविता: घास

घास कहीं भी उग आती है

जहाँ भी उसे काम चलाऊ पोषक तत्व मिल जाँय,

इसीलिए उसे बेशर्म कहा जाता है,

इतनी बेइज्जती की जाती है;



घास का कसूर ये है

कि उसे जानवरों को खिलाया जाता है

इसीलिए उसकी बेइज्जती करने के लिए

मुहावरे तक बना दिये गए हैं

कोई निकम्मा हो तो उसे कहते हैं

वो घास छील रहा है;



जिस दिन घास असहयोग आन्दोलन करेगी

उगना बन्द कर देगी

और लोगों को अपने हिस्से का खाना

जानवरों को देना पड़ेगा

अपने बच्चों को दूध पिलाने के… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 7, 2010 at 8:00pm — 2 Comments

फुलेनवा ,

फुलेनवा ,

आज मेरा मन द्वन्द में भटक रहा था ,

करे या ना करे इसी पे अटक रहा था ,

कारन फुलेनवा के घर में था ,

और सामने पानी और मिठाई पड़ा था ,

आज कोल्कता में मैं हु ये भी हैं ,

आज से पैतीस साल पहले की घटना ,

मेरे मानस पटल में चमक रहा था ,

फुलेना खेतो में हल चलते थे ,

और हम भी बाबु जी के साथ ,

उन्हें खाना खिलने जाते थे ,

उनके साथ बैठ कर मैं खाने लगता ,

और ओ कहते बाबु हम अछुत हैं ,

मैं हसता और बस खाया करता ,

और आज उनके ही हाथ के… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 7, 2010 at 6:30pm — No Comments

दीया

एक दिन बिजली के जाने पर

ढूंढ रहा था

प्रकाश का साधन

करने को

तमस निस्तारण

तभी हाथों से

कोई चीज टकराई

देखा

पुराना दीया

जिस पर हरा काला

मैल बैठा हुआ

झंकृत कर गया मुझे

याद मेरे बचपन का

इसी दीये तले

पाया ज्ञान का प्रकाश

मैं क्या

मुझसे भी पहले

औरों ने भी इसी दीये

के आँचल तले

आँखों को काले धुँए में

झोंकते हुए

पाया अपने लक्ष्य को

वही दीया न… Continue

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 7, 2010 at 4:35pm — 7 Comments

सब भर जाएगा



सब भर जाएगा !





रॉबिन तुम एकदम रॉबिन चिड़िया जैसे हो



छल्लेदार बाल , अकसर लाल रहने वाली दो गोल बड़ी आँखें



कभी उंघते नहीं देखा तुम्हे



माँ को कभी उठाना नहीं पड़ता



मुर्गे की एक सरल बांग पर उमड़ जाती है सुबह



और तुम नंगे पैर ही दौड़ जाते हो सागर के अंचल पर



अंतहीन बढ़ते कदम



रेत पर छापती चलती हैं नन्ही इच्छाओं के पैर



तुम चलते कहाँ… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on October 7, 2010 at 7:00am — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
16 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service