Added by rajesh kumari on May 16, 2012 at 10:30am — 38 Comments
Added by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 12:46am — 20 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 16, 2012 at 12:00am — 24 Comments
कर भला कर भला गर भला कर सके....
नफरतो को मिटा गर भला कर सके....
नाउम्मीदी भरा कोई जब भी मिले....
आस उसको बंधा गर भला कर सके....
जब कभी कोई अंधा दिखे राह में....
पार उसको लगा गर भला कर सके....
हाथ फैलाए जब कोई भूखा दिखे....
भूख उसकी मिटा गर भला कर सके....
तन किसी का खुला देख ले गर कभी....
पेरहन कर अता गर भला कर…
Added by Shayar Raj Bajpai on May 15, 2012 at 7:30pm — 19 Comments
उसकी पहली नज़र ही असर कर गयी
एक पल में ही दिल में वो घर कर गयी
हर गली कर गयी हर डगर कर गयी
मुझको रुसवा तेरी इक नज़र कर गयी
मैंने देखा उसे देखता रह गया
मुझको खुद से ही वो बेखबर कर गयी
साथ चलने का तो मुझसे वादा किया
वो तो तन्हा ही लेकिन सफ़र कर गयी
जिस घडी पड़ गयी इक नज़र यार की
एक ज़र्रे को शम्सो कमर कर गयी
हमने मांगी थी 'हसरत' जो रब से दुआ
वो दुआ अब यक़ीनन असर कर गयी
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 15, 2012 at 1:00pm — 15 Comments
हर दिन बन कर मलयज बयार
सब पर होती रहती निसार
माँ से मिलतीं खुशियाँ हजार l
वो बन कर ममता की बदरी
भरती रहती जीवन-गगरी
छाया बन कर धूप-शीत में
बन जाती संबल की छतरी
हर बुरी नजर देती उतार l
वो है बाती की स्वर्ण-कनी
हर दुख को सह लेती जननी
पलकों पर सदा बिठाती है
बच्चे होते कच्ची माटी से
ढाले वो उनको ज्यों कुम्हार l
वो हृदय में रहे चाशनी सम
स्नेह कभी ना होता…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on May 15, 2012 at 1:00pm — 9 Comments
जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई
यार दीवानगी से थोड़ी शरारत आ गई
ये नया दौर है इसमें जो लगा उनसे जिगर…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2012 at 10:30pm — 19 Comments
हरे भरे ये वृक्ष हमारे
देते ठंडी ठंडी छांव |
सबको जरूरत रहती इनकी
नगर हो या हो गाँव ||…
Added by Yogi Saraswat on May 14, 2012 at 3:31pm — 22 Comments
तेरे संग जीवन बीता था
बहुत दिनों तक !
कब सोचा था
तेरा जाना ऐसा होगा !
बिना प्रतीक्षा किए तुम्हारी
अब तो जल्दी सो जाता हूँ !
बुझा दिया करती थी जो तुम ,
दिया रात भर जलता है अब !
बतियाता है भोर भोर तक ,
कीटी-पतंगों से हँस-हँस कर !
खुश रहता हैं !
और पुराने चादर पर अब
नहीं उभरती ,
रोज–रोज की नई सिलवटें !
मैं भी सारी फिक्र भुला कर
सूरज चढ़ने तक सोता हूँ !
नही…
ContinueAdded by Arun Sri on May 14, 2012 at 12:00pm — 20 Comments
(1)
कई दिनों से
सफ़ेद चादर के फंदे ने
गला घोंट रखा था
आज धूप से गले मिलकर
खुल के रोये चिनार
(2)
हाथी दांत की चूड़ियाँ
बाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में
(3)
तेरी इस ग़ज़ल के कुछ शब्दों से
लहू रिस रहा है
लगता है कहीं से बहुत बड़ी
चोट खाकर आये हैं
तभी तो दर्द से बरखे
यूँ फडफडा रहे…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 14, 2012 at 10:49am — 23 Comments
कितना कठिन हो जाता है
लिखना
कई बार
'फैशन' के अनुरूप
कैसे साध रखा है हमने
अपने मन को
की वह सोचता है
बिलकुल किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह
किस तरह रख पाते हैं हम
अपने मन के भावों को
अनुशासन में
और
वे प्रकट होते हैं
केवल
एक दिवस-विशेष पर...
एक विशेष दिन ही जागता है जज़्बा देश-प्रेम का
या
मातृ-पितृ भक्ति का..
किसी एक दिन ही
आती है
भूली-बिसरी
बहन की याद..
ऐसे ही कई लोग हैं…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:30pm — 13 Comments
मेरी बात को सुन लड़की,
कुछ सपने मत बुन लड़की
सपनो को लगेगा घुन लड़की
मेरी बात को सुन लड़की...
मेरी बात मान लड़की
कुचल अपने अरमान लड़की
राक्षशों को पहचान लड़की
मेरी बात मान लड़की...
मत कर तू प्यार लड़की
ऐतराज़ करेगी 'तलवार' लड़की
बहुत तेज़ है धार लड़की
मत कर तू प्यार लड़की...
चीरती है सब जहां की ख़ामोशी
कौन समझ रहा माँ की ख़ामोशी
ठन्डे पड़े जिस्मोजां की ख़ामोशी
चीरती है सब जहां की ख़ामोशी
मेरी बात को सुन…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:09pm — 5 Comments
होठों से छुआ भी…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:07pm — 11 Comments
असीमित विस्तार
ममता अपार
माँ का प्यार !
----------------
सुख की मेह
करुना सागर
माँ का नेह !
---------------
त्याग वलिदान
सुख की खान
"माँ" एक नाम !
-------------------…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 1:00pm — 13 Comments
=========== माँ ===========
मेरे आते ही तेरा मुश्कुराना याद है
वो रोते रोते तुझसे लिपट जाना याद है
तेरे हाथों में माँ जादू रहा मीठा कोई
वो अपने हाथों से मुझको खिलाना याद है
तेरा दर छोड़ा मैंने जब पढ़ाई के लिये
मैं खुद भी रोया माँ तुझको रुलाना याद है
मेरे गम अपने आँचल में छुपा तुमने रखे
मेरी खुशियों में तेरा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 13, 2012 at 10:19am — 13 Comments
प्रकृति का संगीत है पर्यावरण ,
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण |
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक ,
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण |
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण |
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,
टूटें तार ,सुना है पर्यावरण |
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,
नये स्वर बनाएं रंगीं पर्यावरण |
Added by Rekha Joshi on May 12, 2012 at 10:00pm — 24 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 8:00pm — 10 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 7:44pm — 8 Comments
Added by MAHIMA SHREE on May 12, 2012 at 6:30pm — 26 Comments
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