For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितना कठिन हो जाता है
लिखना
कई बार
'फैशन' के अनुरूप
कैसे साध रखा है हमने
अपने मन को
की वह सोचता है
बिलकुल किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह
किस तरह रख पाते हैं हम
अपने मन के भावों को
अनुशासन में
और
वे प्रकट होते हैं
केवल
एक दिवस-विशेष पर...
एक विशेष दिन ही जागता है जज़्बा देश-प्रेम का
या
मातृ-पितृ भक्ति का..
किसी एक दिन ही
आती है
भूली-बिसरी
बहन की याद..
ऐसे ही कई लोग हैं
जिनका ऋणी है
यह तुच्छ सा जीवन
लेकिन विडम्बना है
अभी याद भी नहीं आ पा रहे हैं
वे तमाम लोग
किन्तु
एक दिवस-विशेष पर
बज उठेगा
मन-मस्तिष्क में अलार्म
तब लिखूंगा शायद
उनके बारे में भी
जब देगा अनुमति
मेरा अनुशाषित मन
और पूरे वर्ष
जिसको याद नहीं कर पता हूँ
वह
मैं स्वयं हूँ
क्यूंकि
मेरा तो कोई " डे " नहीं है...

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 15, 2012 at 2:29pm

Bahut Bahut Shukriya Dr.Prachi Singh ji, Mahima ji evam Shri Kushwaha sahab...

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2012 at 4:39pm

और पूरे वर्ष
जिसको याद नहीं कर पता हूँ
वह
मैं स्वयं हूँ
क्यूंकि
मेरा तो कोई " डे " नहीं है...

आदरणीय अजय जी, सादर 
इसी बहाने याद कर  लेते हैं 
बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on May 14, 2012 at 4:11pm
एक दिवस-विशेष पर
बज उठेगा
मन-मस्तिष्क में अलार्म
तब लिखूंगा शायद
उनके बारे में भी
जब देगा अनुमति
मेरा अनुशाषित मन....बहुत बढ़िया .. बधाई आपको

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 14, 2012 at 12:14pm

बहुत खूब कटाक्ष किया है इन विशिष्ट दिवसों पर... 

हार्दिक बधाई 
 
 किन्तु
एक दिवस-विशेष पर
बज उठेगा
मन-मस्तिष्क में अलार्म
तब लिखूंगा शायद
उनके बारे में भी
जब देगा अनुमति
मेरा अनुशाषित मन......... waah
Comment by AjAy Kumar Bohat on May 14, 2012 at 11:24am

परम  आदरणीय भवेश जी और अरुण जी, आपका  बहुत बहुत शुक्रिया, आप जैसे ज्ञानी-जन जब हौसला अफजाही करते हैं, तो मन के ऊपर एक बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी का सा अहसास होता है की कभी कहीं कोई हलकी बात न लिख जाऊं , ईश्वर से प्रार्थना   है की कविताओ का मयार  बना  रहे  ...

सादर~
Comment by Abhinav Arun on May 14, 2012 at 11:07am

कितना कठिन हो जाता है
लिखना
कई बार
'फैशन' के अनुरूप
कैसे साध रखा है हमने
अपने मन को
की वह सोचता है
बिलकुल किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह
एक कवि की मन वाणी को प्रतिबिंबित किया है आपने ,  वह भी बहुत सफलता के साथ , विषय के सन्दर्भ में ताजगी स्फूर्तिदायक है बधाई अजय जी !!

Comment by Bhawesh Rajpal on May 14, 2012 at 11:03am

कैसा समय आ गया है ,  अब हम  माँ - पिता ,  रिश्तों , को  वर्ष का एक-एक दिन  देने लगे हैं , वही  माता-पिता  जिन्होंने हमें जीवन दिया  !  हम एक दिन दे कर अहसान कर रहे हैं ?

ये कैसा विकास है ?     क्या हमारी संवेदनाएं  कंप्यूटर -इन्टरनेट - टी वी ,  और आमदनी  तक सिमट कर नहीं रह गयी हैं ?  और इसी आपा -धापी  में  हम भूल जाते हैं  की  माँ हमारा  कुछ समय

पाने के लिए रो रही है ! पिता हमें गले लगाने को बेचैन है  !     क्यों न  हम  अन्य सभी की सीमाएं  बाँध दें , और  असीमित कर दें  उन खुशियों को जो माता-पिता के साहचर्य  में मिलती हैं  !

अजय कुमार बोहट  जी ,   खुबसूरत  रचना के लिए  बहुत-बहुत  बधाई  ! - भवेश  राजपाल  !

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 14, 2012 at 10:57am

Shukriya Dubey ji...

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 14, 2012 at 10:44am

Aadarniye Rajesh ji, aapne sahi kaha ham sab tukdon mein bati hui zindagi hi to ji rahe hain...

Comment by Ajay Kumar Dubey on May 14, 2012 at 10:44am

सुन्दर भाव-पूर्ण रचना . बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service