मैं और मेरी शायरी
मुझे अपनी खता मालूम नहीं
पर तेरी खता पर हैराँ हूँ
तकदीर के हाथों बेबस हूँ
अफ़सोस है फिर भी तेरा हूँ
दीपक शर्मा कुल्लुवी
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 4:21pm —
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قتل حین
कातिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म
मेरी तकदीर में शामिल है
कभी तो करते हमपे यकीं
के हम भी तेरे काबिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
लाख जुदाई हो तो क्या
यादों में कभी हो ना कमीं
बचा लेंगे मंझधार से भी
हम ही तेरे साहिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
क़त्ल भी कर दो उफ़ ना करें
हँसते हँसते मर जाएंगे
ना ज़िक्र करेंगे दुनियां से
कि आप ही मेरे कातिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
हम 'दीपक' थे जल जाते…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 2:10pm —
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प्राकृति से खिलवाड़
प्राकृति से खिलवाड़ होगा तो प्राकृतिक आपदा आएगी ही I
कहीं बाढ़ कहीं आग कहीं सूखे की मार कहीं बादल फटने की घटनाएँ कहीं भूकंप आज एक आम सी बात हो गई है I कारण केवल एक ही है प्राकृति से खिलवाड़ I पहाड़ों जंगलों खेत खलिहानों को काट काटकर बड़े बड़े भवन,होटल बन गए I भूमाफिया जंगल माफिया राज कर रहे हैं I गरीब लोग परेशान हैं I वृक्ष कटते जा रहे हैं I धीरे धीरे हम प्रलय की और जाते जा रहे हैं I समय रहते हम लोगों में जागरूकता नहीं आई तो वो दिन दूर नहीं जब इस धरा का…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 12:10pm —
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आपकी यादों का खज़ाना लिए
इक रोज़ चले जाएँगे हम
याद तो करोगे ज़रूर
पर कहाँ आ पाएँगे हम
दीपक कुलुवी
दो कतरा-ए-शराब पास न होती
तो क़यामत होती
तमाम रात बीत जाती
तेरी याद ही न जाती
DEEAP SHARMA KULUVI
09136211486
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 16, 2010 at 12:08pm —
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चल रही हो संग हरदम विडंबना बन सहचरी तो क्यों न देखें ज़िन्दग़ी को एक नया आयाम दे कर ।
स्वप्न बन कर रह गई हो नव उषा की लालिमा जो क्यों न अपने रक्त ही से देख लें अंजाम दे कर ॥
देख कर हँसता रहा है द्वेष औ’ गुमान से
इस जमाने की कहें क्या बाँधता व्यवधान से
बढ़ते कदम का हर फिसलना हो अगर संज्ञान से
दृष्टि हँसती तोड़ती-सी कह उठेगी देख कर फिर - थे सधे कितने कदम वो बढ़ते रहे मुकाम दे कर ॥
खेत की हरियालियों में बारुदों के बीज क्यों
शांति खातिर हैं जगह जो बौखलाती…
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Added by Saurabh Pandey on August 15, 2010 at 9:03pm —
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हमसफर हूँ उम्मीद जगा दी उसने,
खुदा से तामील भी करा दी उसने...
मेरे एक शेर को भी ना दाद दी उसने,
मालूम हो के गजल बना दी उसने...
इतना गहरा आगोश मेरे यार तेरा,
ख्वाबों से मुलाकात करा दी उसने...
दामन है या के मैखाना-ए-जन्नत,
रूह को भी शराब पिला दी उसने...
अब तो मीरा बनी नाचती है रूह,
इश्क की वो धुन लगा दी उसने...
सर्द तासीर दिखाती वो मुलाकातें,
आग सी जहन में लगा दी उसने...
रखी मखमल में रूह उसने…
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Added by भरत तिवारी (Bharat Tiwari) on August 15, 2010 at 8:58pm —
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इनकार तू करता नहीं...
मांगता मैं भी नहीं...|
हर बात तू समझ के...
कुछ बताता भी नहीं |
खुद को तनहा क्यों करूँ...
फ़िक्र करके बेवजह |
है रोम रोम में तू बसा ...
करूँ ख्वाहिशें किस के लिए |
मैं आया हूँ...
दो घड़ी के तेरे साथ के लिए ... |
भीड़ में भी मिलते...
तेरे अहसास के लिए... |
गुफ्तगू करता रहा...
शोर से कहीं बेखबर... |
बस तू ही काफी है,
इस रूह-ए-परेशां के…
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Added by भरत तिवारी (Bharat Tiwari) on August 15, 2010 at 8:50pm —
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मन तो करता है के सलाम करूँ | लहरा के तिरंगे को गुमान करूँ || चोर हैं देश का भेष है सिपाही का|
इन सफ़ेदपोशों का काम तमाम करूँ ||
घर बना कैद ये कैसी है आज़ादी |
जश्न तो तब जो सर-ए-आम करूँ ||
गान है राष्ट्र का साज हैं विदेशी |
सुनूँ कैसे क्या खुद को गुलाम करूँ ||
कहीं छपा के खबर अभी मत छापो |
क्या मज़ाक है देश को नीलाम करूँ ||
देश का हूँ तो क्यों ना लिखूँ ये आखिर |
कहते है भरत ना बोले तो आराम करूँ… |
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Added by भरत तिवारी (Bharat Tiwari) on August 15, 2010 at 12:30pm —
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माना की तुम भूल गए हो ,
दिलों दिमाग से खुल गए हो |
वो भी कुछ कम नहीं थे ,
पर दिमाग में उनके बल नहीं थे
तीन रंग उनकी कमजोरी थी ,
खेली खून की होली थी |
वो कहते ये चिर है माँ का ,
शहीद हुए जो धीर थे माँ का ,
जिसके लिए वो जान गवां दी
अपनी माँ की वस्त्र बचा दी
इसको थोड़ी पहचान दो ,बेटे
तीन रंग को सम्मान दो ,बेटे !!
.....रीतेश सिंह
Added by ritesh singh on August 15, 2010 at 8:39am —
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स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:
गीत
भारत माँ को नमन करें....
संजीव 'सलिल'
*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें.....
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर
राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
अंतर में अब रहे न…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 14, 2010 at 11:39pm —
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तुम कब जानोगे?
तुम पीछे छोड गये थे
मेरे बिलखते,मासूम पिता को
घुटनों-घुटनों खून में लथपथ
अधजली लाशों और धधकते घरों के बीच
दमघोटूं धुऐं से भरी उन गलियों में
जिसे दौड कर पार करने में वह समर्थ न था.
नफ़रत और हैवानियत के घने कुहासे में
मेरे पिता ने अपने भाईयों,परिजनों के
डरे सहमे चेहरे विलुप्त होते देखे थे.
दूषित नारों के व्यापारियों ने
विखण्डन के ज्वार पर बैठा कर
जो…
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Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on August 14, 2010 at 11:30pm —
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कल पंद्रह अगस्त है. मैंने सोचा की कुछ लिखूं इस स्वतंत्रता दिवस पर. लिखने बैठा तो कुछ या पंक्तियाँ बनी मेरे मस्तिस्क और ह्रदय में. मई उनको आपके सामने रख रहा हूँ|
वर्षों से थी पराधीनता से भारत माता ग्रस्त|
समय सुहाना सैंतालिस का, आया पंद्रह अगस्त||
आया पंद्रह अगस्त हुआ था नया सवेरा|
देश हुआ आज़ाद, फिरंगियों ने भारत छोड़ा||
गैरों की मर्ज़ी से था, जो चलता जीवन|
अपने बस में हुआ, खिल गए वन औ' उपवन||
खिंजा हटी बागों से, आया था बहार का…
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Added by आशीष यादव on August 14, 2010 at 5:40pm —
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व्याख्या
गूढ़ जीवन को सरल बोल दिए,
परिचय मिला जटिलता से,
सबको जीवन का सार बताया,
स्वयं बन गयी सारांश ताल,
स्वामिनी का रूप भी धर लिया,
पर मन बंदिनी से नहीं उबरा,
अंकुर ही मैंने अब तक रोपा है,
वाट वृक्ष बन नहीं किसी कोघोंटा है.
Added by alka tiwari on August 14, 2010 at 4:41pm —
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उष्ण आगोश था
मैं मदहोश था
ना मुझे होश था
ना मुझमे जोश था
मैं शीतस्वापन में था
ना ही मैं जगा
ना मुझे उठाया गया
ना ही मैं जला
न मुझे सुलगाया गया
मुझे तो बुझाया गया
अब राख ही राख है
और हैं एक चिंगारी
आपका :- आनंद वत्स
Added by Anand Vats on August 14, 2010 at 11:24am —
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बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना
तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना
बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के
मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना
चुभी थी फांस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी
न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना
कोई भूखा तुम्हारे दर से देखो लौट ना जाये
तुम अपने खाने में से रोज़ दो रोटी बचा लेना
लगा पाओ वतन पर मरने वालो का कोई बुत भी
कोई नुक्कड़ तुम अपने बुत से भी खाली बचा लेना
(बहरे हज़ज़ मुसम्मन…
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Added by Rana Pratap Singh on August 14, 2010 at 10:00am —
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लूटो ..
कितना लूटोगे ???
अब तक कितनो ने लूटा ,
मगर
दुःख नहीं हुआ ,
कारण ???
मुग़ल बाहर से आये थे ,
अंग्रेज भी बाहर वाले थे ,
वो लूटते रहे ,
और मेरे अपनों को,
लूट में सहयोगी बनाते रहे ,
और मैं कराहती रही !!,
मगर तब भी उतना दुःख नहीं हुआ ,
जो अब होता हैं ,
मगर
तुम तो मुगलों और अंग्रेजो से भी ,
दो कदम आगे निकले ,
लूटो !!!
मगर तुम्हे धिक्कार हैं ,
अपनी माँ को भी नहीं छोड़ा,
अब कभी पैदा नहीं करुँगी…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 13, 2010 at 8:00pm —
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क्या समझते हो ,
मैं थक के हार के ,
बैठ जाऊंगा ,
ये सोच जो हैं आपकी ,
इसे गलत साबित कर दूंगा ,
मैं हूँ भोजपुरी पुत्र ,
भोजपुरिया ,
और मैं दहाड़ता रहूँगा ,
चाहे आप मानो या ना मानो
मुझे भाषा ,
मैं आपके सीने पे चिंघाड़ता रहूँगा ,
कब तक मिटाते रहोगे मुझको ,
अपने सदन पटल से ,
अरे बेशर्मो ,
मुझे चाहने वाले....
हिंदुस्तान में हिंदी के बाद ,
सबसे ज्यादा हैं ,
मैंने ही दिया था राजेंद्र बाबु को ,
जिसका तुम गुणगान…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 13, 2010 at 7:00pm —
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(15 अगस्त पर विशेष)
हर प्राचीर पर लहराता तिरंगा भारत की स्वतंत्रता की गाथा को दोहरा रहा है। स्वतंत्र्ाता सबको मिले। हमें बहुत कुछ मिला है। लेकिन क्या यह बहुत कुछ हम सभी भारतवासियों ने पाया है? मिलने और पाने में बहुत अंतर है।
देश में दो बार परमाणु परीक्षण किए गए तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद देश भर में फैली हिंसा ने भी हमें यह सोचने पर विवश किया कि क्या साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के विभाजन के बाद भी हमने इससे कोई सबक लिया? गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा देश झेल…
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Added by Jaya Sharma on August 13, 2010 at 5:02pm —
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आदिकाल से रक्षा कर रहे हैं: नाग देवता
;समृद्धि का प्रतीक नागपंचमीद्ध
- जया केतकी
श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि नागपंचमी का त्यौहार सर्पाे को समर्पित है। इस त्योहार पर व्रत पूर्वक नागों की पूजा होती है। नागों का मूलस्थान पाताल लोक है। वेद-पुराणों में नागों का अस्तित्व महर्षि कश्यप और कद्रू से माना जाता है। पुराणों में ही नागलोक की राजधानी भोगवती पुरी है। विष्णु की शय्या की शोभा शेषनाग बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेशजी के अलंकरण में भी नागों की मह्त्त्वपूर्ण भूमिका है।…
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Added by Jaya Sharma on August 13, 2010 at 4:18pm —
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तू हमारा दिल जिगर है तू हमारी जान है
तू भरत है तू ही भारत तू ही हिन्दुस्तान है
अय तिरंगे शान तेरी कम ना होने देंगे हम
तू हमारी आत्मा है तू हमारी जान है |
तेरी खुशबू से महकती देश की माटी हवा
हर लहर गंगा की तेरे गीत गाती है सदा
तू हिमालय के शिखर पर कर रहा अठखेलियां
तेरी छांव में थिरकती प्यार की सौ बोलियां
तू हमारा धर्म है मजहब है तू ईमान है |
जागरण है रंग केसरिया तेरे अध्यात्म का
चक्र सीने पर है तेरे स्फुरित विश्वास का
भारती की… Continue
Added by jagdishtapish on August 13, 2010 at 9:47am —
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