मन तो करता है के सलाम करूँ | लहरा के तिरंगे को गुमान करूँ ||
चोर हैं देश का भेष है सिपाही का| इन सफ़ेदपोशों का काम तमाम करूँ || घर बना कैद ये कैसी है आज़ादी | जश्न तो तब जो सर-ए-आम करूँ || गान है राष्ट्र का साज हैं विदेशी | सुनूँ कैसे क्या खुद को गुलाम करूँ || कहीं छपा के खबर अभी मत छापो | क्या मज़ाक है देश को नीलाम करूँ || देश का हूँ तो क्यों ना लिखूँ ये आखिर | कहते है भरत ना बोले तो आराम करूँ || १५ अगस्त २०१० ५:३३ सुबह |
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