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दोहा पंचक. . . . .सागर

दोहा पंचक. . . सागर

उठते हैं जब गर्भ से, सागर के तूफान ।

मिट जाते हैं रेत में, लहरों के अरमान ।।

लहर- लहर में  रेत पर, मचलें सौ अरमान ।

मौन तटों पर प्रेम की, रह जाती पहचान ।।

छलकी आँखें देख कर, सूना सागर तीर ।

किसके  अश्कों ने  किया, खारा सागर नीर ।।

कौन बनाता है भला, सागर तीर मकान ।

अरमानों को लीलता,  इसका हर तूफान ।।

देखा पीछे पर कहाँ, जाने गए निशान ।

हर वादे को दे गया, घाव एक तूफान ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on June 10, 2024 at 1:00pm — No Comments

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना

आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।

*

कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के

जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।

*

कब जाग जाये कौन  सा  बदज़ात जानवर

सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।

*

करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम

चाहे पड़े  भकोसना  या फिर कि चोलना।४।

*

चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं

जिस में…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2024 at 5:44am — No Comments

दोहा सप्तक ..रिश्ते

दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

रिश्ते नकली फूल से, देते नहीं सुगंध ।

अर्थ रार में खो  गए, आपस के संबंध ।।

रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।

मिलने की  ओझल हुई, संबंधों में प्यास ।।

गैरों से रिश्ते बने, अपनों से हैं दूर ।

खून खून से अब हुआ, मिलने से मजबूर ।।

झूठी हैं अनुभूतियाँ , कृत्रिम हुई मिठास ।

रिश्तों को आते नहीं, अब रिश्ते ही रास ।।

आँगन में खिंचने लगी, नफरत की दीवार ।

रिश्तों के प्रसून गए , …

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Added by Sushil Sarna on June 7, 2024 at 8:55pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .दम्भ

दोहा पंचक. . . . . दम्भ

हर दम्भी के दम्भ का, सूरज होता अस्त ।

रावण जैसे सूरमा, होते देखे पस्त । ।

दम्भी को मिलता नहीं, जीवन में सम्मान ।

दम्भ कुचलता जिंदगी, की असली पहचान ।।

हर दम्भी को दम्भ की, लगे सुहानी नाद ।

इसके मद में चूर वो, बन जाता सैयाद ।।

दम्भ शूल व्यक्तित्व का, इसका नहीं निदान ।

आडम्बर के खोल में, जीता वो इंसान ।।

दम्भी करता स्वयं का, सदा स्वयं अभिषेक ।

मैं- मैं को जीता सदा, अपना हरे…

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Added by Sushil Sarna on June 2, 2024 at 6:56pm — No Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।

कदम अना के हजार कुचले,

न आस रखते हैं आसमां की,

ज़मीन पे हैं कदम हमारे,

मगर खिसकने का डर सताए, पगों तले भी ज़मीन रखना।

उदास पल को उदास रखना,

छिपी तहों में खुशी दबी है,

न झूठी कोई तसल्ली लाना,

हो लाख कड़वी हकीकतें पर, न ख़्वाब कोई हसीन रखना।

दसों दिशाएं विलाप में हैं,

बिसात बातों की बिछ गई है,

बुनाई लफ्जों की हो रही है,

हमारे आधे में तय तुम्हारा रखा है आधा यकीन…

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Added by मिथिलेश वामनकर on May 29, 2024 at 11:52pm — 8 Comments

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।

त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।

बरस रहे अंगार, धरा ये तपती जाए।

जीव जगत पर मार, पड़ी जो सही न जाए।

पेड़ लगा 'कल्याण', तुझी से यह आस जगी।

हरी - हरी हो भूमि, बुझे जो यह आग लगी !

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 29, 2024 at 8:00pm — 2 Comments

दोहा सप्तक ..रिश्ते

दोहा सप्तक. . . . रिश्ते

आपस के माधुर्य को, हरते कड़वे बोल ।

मिटें जरा सी चूक से, रिश्ते सब  अनमोल ।।

शंका से रिश्ते सभी, हो जाते बीमार ।

संबंधों में बेवजह,  आती विकट दरार ।।

रिश्ता रेशम सूत सा, चटक चोट से जाय ।

कालान्तर में वेदना,  इसकी भुला न पाय ।।

बंधन रिश्तों के सभी,  आज हुए कमजोर ।

ओझल मिलने के हुए, आँखों से अब छोर ।।

रिश्तों में अब स्वार्थ का, जलता रहता दीप ।

दुर्गंधित से नीर में, खाली मुक्ता से सीप ।।

संबंधों को…

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Added by Sushil Sarna on May 8, 2024 at 1:42pm — 4 Comments

कुंडलिया. . .

कुंडलिया. . . 

झोला  लेकर  हाथ  में, चले  अनोखे  लाल ।
भाव  देख  बाजार  के, बिगड़े  उनके  हाल ।
बिगड़े  उनके हाल ,करें क्या  आखिर  भाई ।
महंगाई  का    काल , खा   गया   पाई- पाई ।
कठिन दौर से  त्रस्त , अनोखे दर- दर डोला ।
लौटा   लेकर  साथ , अंत  में  खाली  झोला ।

सुशील सरना /7-5-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on May 7, 2024 at 8:28pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूर

वक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ ।

गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।।

सभी दिवस मजदूर के, जाते एक समान ।

दिन बीते निर्माण में, शाम क्षुधा का गान ।।

याद किया मजदूर के, स्वेद बिंदु को आज ।

उसकी ही पहचान है, , विश्व धरोहर ताज ।।

स्वेद बूँद मजदूर की, श्रम का है अभिलेख ।

हाथों में उसके नहीं , सुख की कोई रेख ।।

रोज भोर मजदूर की, होती एक समान ।

उदर क्षुधा से नित्य ही, लड़ती उसकी जान…

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Added by Sushil Sarna on May 1, 2024 at 4:30pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि

गंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर ।

कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे डोर ।।

अलिकुल की गुंजार से, सुमन हुए भयभीत ।

गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।

आशिक भौंरे दिलजले, कलियों के शौकीन ।

क्षुधा मिटा कर दे गए, घाव  उन्हें संगीन ।।

पुष्प मधुप का सृष्टि में, रिश्ता बड़ा अजीब ।

दोनों के इस प्रेम को, लाती गंध करीब ।।

पुष्प दलों को भा गई, अलिकुल की गुंजार ।

मौन समर्पण कर…

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Added by Sushil Sarna on April 27, 2024 at 1:51pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .

( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )

टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।

कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।

मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।

दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।

प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।

निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।

महफिल में मदहोशियाँ, इश्क नशे में चूर ।

परवाने को देखकर , हुस्न हुआ मगरूर…

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Added by Sushil Sarna on April 24, 2024 at 5:37pm — 2 Comments

दोहा दशम. . . . रोटी

दोहा दशम . . . . . . रोटी

कैसे- कैसे रोटियाँ, दिखलाती हैं  रंग ।

रोटी से बढ़कर नहीं,इस जीवन में जंग ।।

रोटी के संघर्ष में, जीवन जाता बीत ।

अर्थ चक्र में गूँजता , रोटी का संगीत ।।

रोटी का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।

बिन रोटी के बीतता ,हर पल जैसे कल्प ।।

रोटी से बढ़कर नहीं, दुनिया में कुछ यार ।

इसके  आगे दौलतें , इस जग की बेकार ।।

दो रोटी ने दोस्तो , क्या - क्या दिये अजाब ।

मुफलिस की तकदीर का, रोटी…

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Added by Sushil Sarna on April 20, 2024 at 2:11pm — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करना

आऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।

मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरी

कह दूं मैं, बस रोक दे वो शोर करना।

पंक्तियों के बीच पढ़ना आ गया है

भूल बैठा हूं मैं अब इग्नोर करना।

ये नजर अब आपसे हटती नहीं है

बंद करिए तो नयन चितचोर करना।

याद बचपन की न जाती है जेहन से

अब अखरता खुद को ही मेच्योर करना।

आज को जैसे वो जीना भूल बैठे

बस उन्हें धुन अपना कल सेक्योर…

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 13, 2024 at 10:33pm — 5 Comments

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२

ग़मज़दा आँखों का पानी

बोलता है बे-ज़बानी

मार ही डालेगी हमको

आज उनकी सरगिरानी

आपकी हर बात वाजिब

और हमारी लंतरानी

जाने किसकी बद्दुआ है

वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी

दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं

बुझ रही है ज़िंदगानी

कौन जाने कब कहाँ से

आये मर्ग-ए-ना-गहानी

ले के फागुन आ गया फिर

फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी

कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…

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Added by Aazi Tamaam on April 1, 2024 at 5:30pm — 4 Comments

"ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"

"ओबीओ परिवार के सभी सदस्यों को ओबीओ की 14वीं सालगिरह मुबारक हो"

ग़ज़ल

212  212  212

इल्म की रौशनी ओबीओ

रूह की ताज़गी ओबीओ  (1)

तुझ से मंसूब करता हूँ मैं

अपनी ये शाइरी ओबीओ  (2)

तेरे बिन है अधूरी बहुत

ये मेरी ज़िंदगी ओबीओ  (3)

मेरा दिल मेरी चाहत है तू

जानते हैं सभी ओबीओ  (4)

चाहने वाले तेरे मिले

हर नगर हर गली ओबीओ …

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Added by Samar kabeer on April 1, 2024 at 1:51pm — 11 Comments

कैसे खैर मनाएँ

तारकोल से लगा चिपकने

चप्पल का तल्ला

 

बिगड़े हैं सुर मौसम के अब

कहे स्वेद की गंगा

फागुन में घर बाहर तड़पे

हर कोई सरनंगा

दोपहरी में जेठ न तपता

ऐसे सौर तपाए

अपनी पीड़ा किसे बताए

नया-नया कल्ला

 

पेड़ों को सिरहाना देती

खुद उसकी ही छाया

श्वानो जैसी उस पर पसरे 

आकर मानव काया

जो पेड़ों को काटे ठलुआ

बढ़कर धूप उगाए

अपनी गलती से वह भी तो

झाड़ रहा…

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Added by Ashok Kumar Raktale on March 28, 2024 at 10:41pm — 5 Comments

दोहा पंचक. . . . .प्रेम

दोहा पंचक. . . . प्रेम

अधरों पर विचरित करे, प्रथम प्रणय आनन्द ।

चिर जीवित अभिसार का, रहे मिलन मकरंद ।।

खूब हुआ अभिसार में, देह- देह का द्वन्द्व ।

जाने कितने प्रेम के, लिख डाले फिर छन्द ।।

मदन भाव झंकृत हुए, बढ़े प्रणय के वेग ।

अधरों के बैराग को, मिला अधर का नेग ।।

धीरे-धीरे रैन का , बढ़ने लगा प्रभाव ।

मौन चरम अभिसार के, मन में जले अलाव ।।

नैन समझते नैन के, अनबोले स्वीकार ।

स्पर्शों के दौर में, दम…

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Added by Sushil Sarna on March 23, 2024 at 2:45pm — 4 Comments

यह धर्म युद्ध है

रण भूमी में अस्त्र को त्यागे अर्जुन निःस्तब्ध सा खडा हुआ 

बेसुध सा निःसहाय सा केशव के चरणों मे पडा हुआ 

कहता था ना लड पायेगा, वार एक ना कर पायेगा 

शत्रु का है भेष भले पर वो अपना है जो अडा हुआ 

कैसे मैं उनपर प्रहार करूँ, जिनका मैं इतना सम्मान…

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Added by AMAN SINHA on March 23, 2024 at 5:57am — 1 Comment

कुंडलिया .... गौरैया

कुंडलिया - गौरैया

गौरैया  को   देखने, हम  आ  बैठे  द्वार ।
गौरैया के  झुंड  का, सुंदर   सा   संसार ।
सुंदर लगे संसार , धरा पर  दाना  खाती ।
लेकर तिनके साथ, घोंसला खूब बनाती ।
कह ' सरना ' कविराय, धूप में ढूँढे छैया ।
उसको  उड़ते  देख, कहें  री आ  गौरैया ।

सुशील सरना / 21-3-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on March 21, 2024 at 4:00pm — 4 Comments

बनो सब मीत होली में -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

निभाकर  रीत होली में

दिलों को जीत होली में।१।

*

भरें  जीवन  उमंगों से

चलो गा गीत होली में।२।

*

सभी सुख दुश्मनी छीने

बनो सब  मीत  होली में।३।

*

बहुत विरही तड़पता है

सफल हो प्रीत होली में।४।

*

किसी को याद मत आये

गयी  जो  बीत  होली  में।५।

*

लगे अब रोग कहते हैं

दुखों को पीत होली में।६।

*

गिरा दो  रंग  बरसाकर

खड़ी हर भीत होली में।७।

*

यही अरदास है पिघलें

दिलों की शीत होली…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2024 at 6:55am — No Comments

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मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
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सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
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Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
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मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
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