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गज़ल
221 2121 1221 212
उम्मीद अब नहीं कोई वो दीदावर मिले
बहतर खुुदा कसम वही चारागर मिले ( मतला )
लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले
अब लौट आ कि हम सनम सारी उमर मिले
अनजान तुम नहीं हो कि मिलते नहीं कभी
कुछ कर सको तो तुम करो मुझको दर मिले
उलझन भरी हैं रातें बड़ी बेहिसी वो दिन
हो दोस्त कोई अपना सही रहगुज़र मिले
दिन- रात हो गये बड़े मुश्किल भी बढ़…
ContinuePosted on August 9, 2022 at 11:30am — 1 Comment
गज़ल
221 2121 1221 212
अख़लाक पर मुहब्बत भरोसा रहा नहीं
हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं
दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ
जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं
लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती
गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं
गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी
क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं
औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है
मत खेल तू ज़मीर से…
Posted on June 30, 2022 at 10:00am — 1 Comment
घटा - घोप अन्धेर है, कहीं न पहरेदार ।
तक्षक बनता काल है, क्या होगा घर-बार ।। ( 1 )
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नागफनी वन हो गये, जंगल ...नम्बरदार ।
बना कैक्टस मुँहलगा, फुदकता - बार बार ।। ( 2 )
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रोशन जो दिखती नहीं, गाँव सखा तक़दीर ।
बुझा- बुझा सा मन हुआ, सोच रहा ताबीर ।। ( 3…
ContinuePosted on March 27, 2022 at 12:30am — 2 Comments
स्वागत करो बसंत का, अब.. अनंग दरवेश।
बदन..सुलगने ..हैं लगे, खिल उठा परिवेश ।।
रथ सवार सूरज हुआ, बढ़ती ..आँगन ..धूप।
मकरंद बसा प्राण में, प्रतिपल प्रिया अनूप ।।
अलसाया सी डाल पर, उतर ..पड़ी है.. धूप।
कलियाँ मुस्काने लगीं, जगमग गाँव अनूप ।।
गंधायी ..अब है ..हवा, खिलने.. लगे.. प्रसून।
गश्त बढ़ गई भ्रमर की, कली लाल सी खून ।।
मौलिक व अप्रकाशित
प्रोफ. चेतन प्रकाश…
ContinuePosted on February 8, 2022 at 9:22am
भाई चेतन जी
नमन -
इस्लाह का
सलीका आ जायेगा
मैंने आज तलक
मुकम्मल तो कोई देखा नहीं
गलतियां निकालोगे-
तो सीखूंगा ही ।।
मैं तो अधूरा था
अधूरा रहा
और हूँ अब तलक
आज आया हूँ आपकी बज्म में
कुछ सिखा दोगे -
तो सीखूंगा भी ।।
जनाब चेतन प्रकाश जी,ये टिप्पणी आप मुशाइर: में दें,तो मुझे जवाब देने में आसानी होगी ।
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