चंद क्षणिकाएँ :जीवन
बदल गया
जीवन
अवशेषों में
सुलझाते सुलझाते
गुत्थियाँ
जीवन की
आदि द्वार पर
अंत की दस्तक
अनचाहे शून्य का
अबोला गुंजन
अवसान
आदि पल की
अंतिम पायदान
प्रेम
अंतःकरण की
अव्याखित
अनिमेष
सुषमा रशिम
ज़माने को
लग गई
नई नेम प्लेट
बदल गई
घर की पहचान
शायद चली गई
थककर
दीवार पर टंगे टंगे
पुरानी
नेम प्लेट में
लिपटी
घर की जान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया सुरेन्द्र नाथ जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है ।
आदरणीया ऊषा जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है ।
आदरणीया डॉ गीता चौधरी जी सृजन पर आपकी हृदयग्राही प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... बन्दे के सृजन पर बेशकीमती तारीफ़ का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब, आदाब .... बन्दे के सृजन पर आपकी हृदयग्राही प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हर बार की तरह पुनः एक बेहतरीन रचना,, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये। सादर
आदरणीय श्री सुशील सरना जी, दो अकाट्य सत्यों 'जीवन और मृत्यु' जिनसे हम भली-प्रकार अवगत होते हुए भी सुलझने से ज़्यादा उलझते हुए हम इस सफ़र पर को निभाते हैं। आपने बड़ी ही खूबसूरती से इनके महत्व को व्यक्त किया। हार्दिक बधाई। सादर।
आदरणीय सुशील सरना जी नमस्कार, फिर आपकी सुंदर क्षणिकाएं आ गई मंच पर नहीं दिल पर दस्तक देने.. हर क्षणिका अपने में पूरा जीवन दर्शन समेटे हुएI सुंदर भावों को सुंदर शब्दों में ढालने के लिए बहुत बधाई!
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदाब। बेहतरीन भाषा-शिल्पमय बेहतरीन क्षणिकायें। दार्शनिकता, मनौवैज्ञानिकता, व्यावहारिकता.. सब कुछ शाब्दिक होता है आपकी रचनाओं/क्षणिकाओं में। हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय सुशील सरना साहिब।
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