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अचंभित हूँ ....

अचंभित हूँ ....

अचंभित हूँ
इस गहन तिमिर में भी
तुमने श्वासों के
आरोह-अवरोह को
महसूस कर लिया

अचंभित हूँ
तुमने कैसे मेरे
अबोले तिमित स्वरों को
पहचान लिया
और चुपके से
मेरे अंतर्भावों का
अपने नयन स्वरों से
शृंगार कर दिया

अचंभित हूँ
तुम कैसे मुझसे मिलने
हृदय की गहन कंदराओं में
मेरे अस्तित्व की प्रेमानुभूतियों से
अभिसार करने आ गए
मैं तो कब से
अस्तित्वहीन हो गयी थी
जाने कब तुम वहां भी
अपने अस्तित्व को
मेरे अस्तित्व में
समाहित करने आ गए

सच
जाने कितनी सांसें बीत गयी
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अब आये हो
मेरी
बंद होती पलकों के किनारों पर
रुके नमक के सागर को
अपनी पोरों से पोंछने के लिए

मेरे
पीले होते
रक्ताभ अधरों को
अपने अधरों की मेहंदी से
शृंगारित करने के लिए

मेरी
अल्हर चूड़ियों की खनखनाहट को
अपने स्पर्शों से
पुनर्जीवित करने के लिए

भला
कैसे अचंभित न होऊं
मेरे निस्सीम प्रेम को
आज तुमने
अपने स्नेही स्पर्शों से
सदा सदा के लिए
कालजयी कर दिया
मेरी चिर प्रतीक्षा का
अंत कर
मेरे अस्तित्व को 
अनंत्य कर दिया

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on December 12, 2017 at 7:28pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी सृजन को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2017 at 7:28pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by रामबली गुप्ता on December 11, 2017 at 8:17pm

वाह बहुत ही शानदार प्रयास हुआ है आदरणीय।हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर

Comment by नाथ सोनांचली on December 11, 2017 at 4:57am

आद0 सुशील जी आपने बेहतरीन कविता लिखी, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर सादर।

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2017 at 5:30pm

आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सृजन के भावों को अपने स्नेह से पोषित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2017 at 5:30pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ..... प्रस्तुति आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया की आभारी है। हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2017 at 5:29pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 6, 2017 at 7:48pm

आदरणीय  सुशिल सरना जी , बहुत गहन चिंतन  के साथ लिखी गई यह कविता बहुत सुन्दर बन पडी  है | बधाई स्वीकार करें 

 

Comment by Samar kabeer on December 6, 2017 at 6:50pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on December 6, 2017 at 2:06pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                            प्यार में अचंभित  होना तो कभी शिकायतों की गठरी खोलना यह सिलसिला तो चलता ही रहता है । वह प्यार ही क्या जिसमें अचंभा और तकरार न हो । शायद प्यार इसी पर टिका होता है । मधुर स्मृतियों की रेशमी लड़ियों में बँधा रहता है  प्यार । बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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