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उनकी यादों की ....

उनकी यादों की ....

ये
कैसे उजाले हैं

रात
कब की गुजर चुकी
दूर तलक
आँखों की
स्याही बिखेरते
तूफ़ां से भरे
आरिज़ों पर ठहरे
ये
कैसे नाले हैं

शब् के समर
आँखों में ठहरे हैं

लबों की कफ़स में
कसमसाते
संग तुम्हारे जज़्बातों के
लिपटे
कुछ अल्फ़ाज़
हमारे हैं

हर शिकन
चादर की
करवटों की ज़ुबानी है

जुदा होकर भी
अब तलक
ज़िंदा हैं हम
ख़ुदा कसम
ये
ज़हन में
उनकी यादों की
हम पर
मेहरबानी है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on November 14, 2017 at 2:30pm

आदरणीय  लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 8, 2017 at 4:10pm

सुंदर रचना प्रस्तुति के लिए बधाई श्री सुशील सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 9:13pm

आदरणीय बृजेश जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 9:13pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब , आदाब ... सृजन को मन मुदित करती प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 9:13pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने एवं अनमोल सुझाव का दिल से आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 6, 2017 at 8:57pm
वाह आदरणीय वाह क्या शानदार कविता हुई बधाई..
Comment by Mohammed Arif on November 6, 2017 at 8:14am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बेहतरीन ख़्यालातों की फुलवारी । हर शब्द रूपी फूल अपनी महक बिखेर रहा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on November 5, 2017 at 9:55pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,उम्दा कविता लिखी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'लबों की क़फ़स में'-"लबों के क़फ़स में"
'मेहरबानी'-"मह्रबानी"
Comment by Sushil Sarna on November 5, 2017 at 5:00pm

आदरणीय   SALIM RAZA REWA    साहिब सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार। 

Comment by SALIM RAZA REWA on November 5, 2017 at 4:23pm
आ. ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई.

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