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हवलदार -" नये थानेदार साहब आज दौरे पर निकले थे । तुम्हारी दुकान पर भी निगाह गई थी । तुमने सामान बाहर सड़क तक जमा रखा है । इससे यातायात में लोगों को दिक्कत आती है ।" हवलदार का इतना कहना ही था कि
घबराकर दुकान संचालक अनिल बोला -"जी...जी...जी... आज के बाद सामान बाहर नज़र नहीं आएगा ।"
"नहीं , नहीं थानेदार साहब का इशारा किसी दूसरी चीज़ की ओर है ।" हवलदार कहते हुए चला गया मगर अनिल को इशारा बहुत देर बाद समझ में आया ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Mohammed Arif on August 22, 2017 at 10:23pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी । लेखन साकार हुआ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 22, 2017 at 6:23pm
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by Mohammed Arif on August 22, 2017 at 11:00am
लघुकथा के मर्म को समझने और उस पर अपनी सटीक प्रतिक्रिया देने का बहुत-बहुत आभार ।
Comment by pratibha pande on August 22, 2017 at 8:43am

सरकारें बदलती रहती हैं पर आम आदमी के सरोकार वाली संस्थाएं पुलिस शिक्षा स्वास्थ्य ,सब वहीँ की वहीँ  हैं ..सटीक कथा कही है आपने ...बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय  

Comment by Mohammed Arif on August 22, 2017 at 8:00am
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब,आपकी टिप्पणी पाकर अभिभूत हो गया । आपने सही कहा कि थोड़े शब्दों में बड़ी बात कह देना ही लघुकथा का कमाल होता है । बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 10:29pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,कम शब्दों में बड़ी बात कहना ही लघुकथा का सही कमाल होता है,और आप इसमें पूरी तरह कामयाब हैं,दिल से बधाई स्वीकार करें इस बढ़िया प्रस्तुति पर ।
Comment by Mohammed Arif on August 21, 2017 at 10:07am
बहुत-बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी ।
Comment by vijay nikore on August 21, 2017 at 9:57am

कम शब्दों में बहुत कुछ कहती इस उत्तम लघु कथा के लिए बधाई, भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 11:01pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2017 at 9:02pm
तीखा प्रहार किया बंधु भ्रष्टाचार पर । हार्दिक बधाई ।

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