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मुझको तो गुज़रा ज़माना चाहिए।

फिर वही बचपन सुहाना चाहिए।

 

जिस जगह उनसे मिली पहली दफा,

उस गली का वो मुहाना चाहिए।

 

तैरती हों दुम हिलातीं मछलियाँ,

वो पुनः पोखर पुराना चाहिए।

 

चुभ रही आबोहवा शहरी बहुत,

गाँव में इक आशियाना चाहिए।

 

भीड़ कोलाहल भरा ये कारवाँ,

छोड़ जाने का बहाना चाहिए।

 

सागरों की रेत से अब जी भरा,

घाट-पनघट, खिलखिलाना चाहिए।

 

घुट रहा दम बंद पिंजड़ों में खुदा,

व्योम में उड़ता तराना चाहिए।

 

थम न जाए लेखनी यह ‘कल्पना’

गीत गज़लों का खज़ाना चाहिए।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by gumnaam pithoragarhi on July 1, 2014 at 4:01pm

भीड़ कोलाहल भरा ये कारवाँ,

छोड़ जाने का बहाना चाहिए।

 

सागरों की रेत से अब जी भरा,

घाट-पनघट, खिलखिलाना चाहिए।

 

वाह वाह वाह,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:42pm

आदरणीया कल्पना जी , शुरू से आखिर तक सभी अश आर बहुत सुन्दर कहे हैं , लाजवाब !! आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 3:34pm

आ० कल्पना जी,
"बहुत खूब कहा आपने-जिस जगह उनसे मिली पहली दफा, उस गली का वो मुहाना चाहिए"
दरअसल उस मुहाने से गुजरते हुए हमेशा प्रेम की उस गंध का एहसास होता ही है. बधाई के शब्द कम पड़ रहे हैं.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 10:53pm

बहुत सुंदर सादगीपूर्ण गजल, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:20pm

मतले से शुरू किया तो बस मक्ते के साथ रुका बेहद खूबसूरत रवाँ ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई इस बेमिसाल ग़ज़ल के लिये।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 9:05pm

वाह वाह वाह, एक एक शेर बेशकीमती नगीने हैं, उम्दा कहन और शिल्प की कसावट, बहुत बढ़िया, बधाई आदरणीया कल्पना रमानी जी। 

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 9:01pm
वाह। लाजवाब ग़ज़ल। आपको हार्दिक बधाई दीदी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 6:59pm
बहुत सुन्दर रचना है आदरणीय सुश्री कल्पना रामानी जी , बधाई .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 6:40pm

अतीव सुन्दर  i खासकर ये पंक्तियाँ --

                                         घुट रहा दम बंद पिजड़ों में खुदा,

                                         व्योम में उड़ता तराना चाहिए।

                                         थम न जाए लेखनी यह ‘कल्पना’

                                         गीत गज़लों का खज़ाना चाहिए।   सादर , महनीया i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:56pm

जहाँ एक और अतीत की  ,बचपन की मासूमियत भारी यादों का दर्पण है ये ग़ज़ल दूसरी और आज के जीवन की कलई खोलती है 

बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर |हार्दिक बधाई आपको आ० कल्पना दी |

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