For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझको तो गुज़रा ज़माना चाहिए।

फिर वही बचपन सुहाना चाहिए।

 

जिस जगह उनसे मिली पहली दफा,

उस गली का वो मुहाना चाहिए।

 

तैरती हों दुम हिलातीं मछलियाँ,

वो पुनः पोखर पुराना चाहिए।

 

चुभ रही आबोहवा शहरी बहुत,

गाँव में इक आशियाना चाहिए।

 

भीड़ कोलाहल भरा ये कारवाँ,

छोड़ जाने का बहाना चाहिए।

 

सागरों की रेत से अब जी भरा,

घाट-पनघट, खिलखिलाना चाहिए।

 

घुट रहा दम बंद पिंजड़ों में खुदा,

व्योम में उड़ता तराना चाहिए।

 

थम न जाए लेखनी यह ‘कल्पना’

गीत गज़लों का खज़ाना चाहिए।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 757

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 1, 2014 at 4:01pm

भीड़ कोलाहल भरा ये कारवाँ,

छोड़ जाने का बहाना चाहिए।

 

सागरों की रेत से अब जी भरा,

घाट-पनघट, खिलखिलाना चाहिए।

 

वाह वाह वाह,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बहुत खूब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 3:42pm

आदरणीया कल्पना जी , शुरू से आखिर तक सभी अश आर बहुत सुन्दर कहे हैं , लाजवाब !! आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 1, 2014 at 3:34pm

आ० कल्पना जी,
"बहुत खूब कहा आपने-जिस जगह उनसे मिली पहली दफा, उस गली का वो मुहाना चाहिए"
दरअसल उस मुहाने से गुजरते हुए हमेशा प्रेम की उस गंध का एहसास होता ही है. बधाई के शब्द कम पड़ रहे हैं.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 10:53pm

बहुत सुंदर सादगीपूर्ण गजल, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:20pm

मतले से शुरू किया तो बस मक्ते के साथ रुका बेहद खूबसूरत रवाँ ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई इस बेमिसाल ग़ज़ल के लिये।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 9:05pm

वाह वाह वाह, एक एक शेर बेशकीमती नगीने हैं, उम्दा कहन और शिल्प की कसावट, बहुत बढ़िया, बधाई आदरणीया कल्पना रमानी जी। 

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 9:01pm
वाह। लाजवाब ग़ज़ल। आपको हार्दिक बधाई दीदी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 6:59pm
बहुत सुन्दर रचना है आदरणीय सुश्री कल्पना रामानी जी , बधाई .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 6:40pm

अतीव सुन्दर  i खासकर ये पंक्तियाँ --

                                         घुट रहा दम बंद पिजड़ों में खुदा,

                                         व्योम में उड़ता तराना चाहिए।

                                         थम न जाए लेखनी यह ‘कल्पना’

                                         गीत गज़लों का खज़ाना चाहिए।   सादर , महनीया i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:56pm

जहाँ एक और अतीत की  ,बचपन की मासूमियत भारी यादों का दर्पण है ये ग़ज़ल दूसरी और आज के जीवन की कलई खोलती है 

बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर |हार्दिक बधाई आपको आ० कल्पना दी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार। मतले पर आपका…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, आपकी टिप्पणी एवं मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार। सुधार का प्रयास करुंगा।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. भाई तिलकराज जी के सुझाव से यह और निखर गयी है।…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service