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कल हुआ जो वाक़या, अच्छा लगा।

हाथ तेरा थामना अच्छा लगा।

जिस्म तो काँपा जो तूने प्यार से,

कुछ हथेली पर लिखा, अच्छा लगा।

देखकर मशगूल हमको इस कदर,

चाँद  का  मुँह फेरना अच्छा लगा।

घाट रेतीले जलधि के नम हुए,

मछलियों का तैरना अच्छा लगा।

 

आसमाँ में बिजलियों की कौंध में,

बादलों का काफिला अच्छा लगा।

 

नाम ले तूने पुकारा जब मुझे,

वादियों में गूँजना अच्छा लगा।

 

बर्फ में लिपटे पहाड़ों का बहुत,

दूर तक वो सिलसिला अच्छा लगा।   

 

“कल्पना” फिर वो तेरा वादा प्रियम!

उम्र भर के साथ का अच्छा लगा।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on July 10, 2014 at 6:44pm

आदरणीय सौरभ जी, मंथन तो चलता ही रहता है, आपकी बात ध्यान में रखूँगी, आपका मन से धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2014 at 5:50pm

शेर प्रति शेर मन रमता गया. वैसे इस ग़ज़ल को यहीं मत छोड़ियेगा.. समय देते रहियेगा..  अभी जब इतने प्रखर हैं तो यही शेर और प्रभावी हो कर निखरेंगे.

नमन आदरणीया कल्पना जी..

Comment by कल्पना रामानी on July 5, 2014 at 8:44am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2014 at 7:45am
आदरणीया , बहुत बढ़िया लगी आपकी ग़ज़ल , दिली बधाइयाँ ॥
Comment by कल्पना रामानी on July 4, 2014 at 10:59pm

प्रिय गीतिका जी, मंजरी जी,वंदना जी सराहना भरे शब्दों के लिए आप सबका मन से धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on July 4, 2014 at 10:58pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह जी, बहुत धन्यवाद आपका

Comment by कल्पना रामानी on July 4, 2014 at 10:57pm

आदरणीय तिलक राज जी, गजल पर आपकी उपस्थिति से बहुत हर्ष हुआ।  प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by कल्पना रामानी on July 4, 2014 at 10:55pm

आदरणीय ब्रह्मचारी  जी, सादर धन्यवाद  

Comment by कल्पना रामानी on July 4, 2014 at 10:54pm

प्रिय राजेश कुमारी जी, अपनत्व भरी टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on July 4, 2014 at 10:52pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी, आपसे गजल की इतनी तारीफ पाकर उत्साह कई गुना बढ़ गया है। आपका हार्दिक आभार

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