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आयी है दीवाली

मधु गीति सं. १५०१ दि. ४ नवम्बर २०१०

आयी है दीवाली, घर घर में खुशहाली;
नाचें दे सब ताली, विघ्न हरें वन माली

जागा है मानव मन, साजा है शोधित तन;
सौन्दर्यित भाव भुवन, श्रद्धा से खिलत सुमन.
मम उर कितने दीपक, मम सुर खिलते सरगम;
नयनों में जो ज्योति, प्रभु से ही वह आती.

हर रश्मि रम मम उर, दीप्तित करती चेतन;
हर प्राणी ज्योतित कर, देता मम ज्योति सुर.
सब जग के उर दीपक, ज्योतित करते मम मन;
हर मन की दीवाली, मम मन की दीवाली.

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 1:02pm — 1 Comment

दिया प्रभु ने जलाया था

मधु गीति सं. १५०३ दि. ४ नवम्बर, २०१०





दिया प्रभु ने जलाया था, सृष्टि अपनी जब कभी भी;

आत्मा को तरंगित कर, उठाया था निज हृदय ही.



निराकारी भाव निर्गुण, बदलना वे जभी चाहे;

जला दीपक आत्मा में, सगुण का संकल्प लाये.

हुई सृष्टि प्रकृति की तब, तीन गुण अस्तित्व पाये;

संचरित हो बृाह्मी मन, पञ्च तत्व विकास पाये.



धरा के विक्षुब्ध मन में, बृाह्मी मन किया दीपन;

वनस्पति जन जन्तु हर मन, बृह्म ही तो किये चेतन.

वे जलाते दीप आत्मा, नित्य… Continue

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 12:59pm — 1 Comment

खयाल जिंदा रहे तेरा ::: ©

खयाल जिंदा रहे तेरा..

जिंदगी के पिघलने तक..

और मैं रहूँ आगोश में तेरे..

बन महकती साँसें तेरी..



तुझे पिघलाते हुए अब..

पिघल जाना मुकद्दर है..

बह गया देखो तरल बनकर..

अनजान अनदेखे नये..

ख्वाहिशों के सफर पर..



तुझे छोड़कर तुझे ढूँढने..

खामोश पथ का राही बन..

बेसाख्ता ही दूर तक..

निकल आया हूँ मैं..



सुनसान वीराने में तुझे पाना..

तेरी वीणा के तारों को..

नए सिरे से झंकृत..

कर पाना मुमकिन नहीं..

तुझसे दूर,… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 7, 2010 at 12:00am — 3 Comments

उस बापू की जरुरत हैं ,

उस बापू की जरुरत हैं ,
आज हिंदुस्तान की चाह हैं ,
हमारी सोच को आंदोलित कर ,
नई राह दिखने के लिए ,
उस बापू की जरुरत हैं ,
उस बाबु की नहीं ,
जो स्वघोषित हो ,
उस बापू का भी नहीं ,
जो चमचो द्वारा बिकसित हो ,
जो मन पे राज करे ,
उस बाबु की जरुरत हैं ,

Added by Rash Bihari Ravi on November 6, 2010 at 6:30pm — No Comments

पहुंचे हुए बड़े खिलाड़ी

आज का दौर बड़ा कठिन हो गया है। जब भी कोई भ्रष्टाचार करना हो या फिर कोई अपराध करना हो तो पहुंचे हुए होना बहुत जरूरी है। ऐसा काम कोई विशेष व्यक्ति ही कर सकता है, ऐसे महत्वपूर्ण काम करने की हम जैसे कायरों की हिम्मत कहां। बीते कुछ समय से पहुंच की महिमा बढ़ गई है, तभी तो जब भी किसी बड़े पदों पर किसी को काबिज होना होता है तो वहां उसकी योग्यता कम काम आती है, बल्कि पहुंच का पूरा जलवा होता है। पहुंच वाले का भला कोई बाल-बांका कैसे कर सकता है। हम तो अदने से और तुच्छ प्राणी हैं, जो पहुंच जैसी बात सोचकर खुश हो… Continue

Added by rajkumar sahu on November 6, 2010 at 3:08pm — No Comments

नवगीत: --- संजीव 'सलिल'

नव गीत



संजीव 'सलिल'



मौन देखकर

यह मत समझो,

मुंह में नहीं जुबान...



शांति-शिष्ट,

चिर नवीनता,

जीवन की पहचान.

शांत सतह के

नीचे हलचल

मचल रहे अरमान.

श्याम-श्वेत लख,

यह मत समझो

रंगों से अनजान...



ऊपर-नीचे

हैं हम लेकिन

ऊँच-नीच से दूर.

दूर गगन पर

नजर गड़ाये

आशा से भरपूर.

मुस्कानों से

कर न सकोगे

पीड़ा का अनुमान...



ले-दे बढ़ते,

ऊपर चढ़ते,

पा लेते हैं… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:38pm — 2 Comments

विश्वास

विश्वास
ढके शब्दों में नंगे हमाम पर लिखेंगे ,
समय थम कर पढ़ेगा इतना प्राणवान लिखेंगे,
हमने जब ठाना तो तस्वीर का रुख बदलकर माना,
हम सोच का एक स्रोत है, जब भी निकले अपनी जगह बना के माना
कुछ इतना खास कर गुजरेंगे ,
जब सचे-सच्चे अहसास शब्दों में ढालेंगे ,
हम वो जड़ है, जब चाहा तभी जड़ हुए ,जब चाहा जड़ कर दिया
बंद शब्दों में खुले आसमान पर लिखेंगे.
अलका तिवारी

Added by alka tiwari on November 4, 2010 at 2:01pm — 5 Comments

बोधकथा ''भाव ही भगवान है'' ---संजीव 'सलिल'

बोधकथा



''भाव ही भगवान है''.



संजीव 'सलिल'



*

एक वृद्ध के मन में अंतिम समय में नर्मदा-स्नान की चाह हुई. लोगों ने बता दिया की नर्मदा जी अमुक दिशा में कोसों दूर बहती हैं, तुम नहीं जा पाओगी. वृद्धा न मानी... भगवान् का नाम लेकर चल पड़ी...कई दिनों के बाद उसे एक नदी... उसने 'नरमदा तो ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गै मतारे औ' बाप रे' गाते हुए परम संतोष से डुबकी लगाई. कुछ दिन बाद साधुओं का एक दल आया... शिष्यों ने वृद्धा की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि यह तो नाला है. नर्मदा जी तो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:29am — 2 Comments

बाल्टी भर पसीने की अमर कहानी

बढ़ते तापमान और दिनों-दिन घटते जल स्तर से भले ही सरकार चिंतित न हो, मगर मुझ जैसे गरीब को जरूर चिंता में डाल दिया है। सरकार के बड़े-बड़े नुमाइंदें के लिए मिनरल वाटर है और कमरों में ठंडकता के लिए एयरकंडीषनर की सुविधा। ऐसे में उन जैसों के माथे पर पसीने की बूंद की क्या जरूरत है, इसके लिए गरीबों को कोटा जो मिला हुआ है। पसीने बहाने की जवाबदारी गरीबों के पास है, क्योंकि यही तो हैं, जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं होते या फिर उन जैसे नुमाइंदों को फिक्र नहीं होती कि खुद की तरह तो नहीं, पर इतना जरूर सुविधा दे दे,… Continue

Added by rajkumar sahu on November 3, 2010 at 8:21pm — 1 Comment

दस्तक

मेरे दरवाजे पे दस्तक हुई,

मैंने अन्दर से ही पूछा,

आप कौन हो,

उत्तर मिला,

सुख समृद्धि,

झट से दरवाजा खोला,

अन्दर आइये उनसे बोला,

उनका जबाब था,

मैं हमेशा से उनके साथ रहता हूँ,

जो प्यार से मिल कर रहते हैं,

जहा भी मेल मिलाप रहेगा,

वहाँ मैं दस्तक देता रहूँगा,



एक दिन घर में हो गया,

अपनों में झगड़ा,

बिना मतलब का,

बाते बढ़ी,

कोई भी किसी काम में,

विचार लेना देना छोड़ दिया,

घर को विपत्ति के रूप में,

कलह जकड़… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on November 3, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल :-आग नहीं कुछ पानी भी दो



ग़ज़ल



आग नहीं कुछ पानी भी दो

परियों की कहानी भी दो |



छोटे होते रिश्ते नाते

मुझको आजी नानी भी दो |



दूह रहे हो सांझ-सवेरे

गाय को भूसा सानी भी दो |



कंकड पत्थर से जलती है

धरा को चूनर धानी भी दो |



रोजी रोटी की दो शिक्षा

पर कबिरा की बानी भी दो |



हाट में बिकता प्रेम दिया है

एक मीरा दीवानी भी दो |



जाति धर्म का बंधन छोडो

कुछ रिश्ते इंसानी… Continue

Added by Abhinav Arun on November 3, 2010 at 10:00am — 8 Comments

भ्रमर -फूल संवाद

गुँजन करता एक भँवरा,जब फूल के पास आया

देख कली की सुन्दरता को मन ही मन मुस्काया ,,

खिली कली को देखकर ,मन ही मन शरमाया

रहा नहीं काबू जब मन पर ,तो एसा फ़रमाया ,,

अरे कली तू बहुत ही सुन्दर ,क्या करूँ तेरा गुणगान

तेरे लिए तो लोग मरते हैं , तू है बड़ी महान, ,

देख तरी सुन्दरता को मन पे रहा न काबू है

दुनिया का मन मोह ले तू ,तुझमे तो वो जादू है ,,

तेरी एक झलक पाने को मैं जीता और मरता हूँ

तेरे न मिलने पे तो मैं, दिन रात आहें भरता हूँ

महक से तेरी महके… Continue

Added by Ajay Singh on November 3, 2010 at 12:00am — 1 Comment

दीपावली की शुभकामनाए

दीपावली का पर्वोत्सव प्रारंभ हो गया है.....अंधकार पर प्रकाश की विजय....असत्य पर सत्य की विजय और मर्यादित जीवन की अमर्यादित जीवन पर विजय के इस पावन पर्व पर आप सभी का अभिनन्दन एवं शुभकामनाए.....सत्य कभी पराजित नही हो सकता और असत्य कभी सम्मानित नही हो सकता...मूल्यों का कभी अवमूल्यन नही हो सकता और नारी-शक्ति कभी अपमानित नही हो सकती......

Added by Priyanath Pathak on November 2, 2010 at 11:10pm — 1 Comment

वीरगति.....

सन्नाटे की साँय-साँय

झींगुर की झाँय-झाँय

सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट

दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट

हरेक मानो मौत की डगर पर...

चलने को अग्रसर...

पपडाए होंठ सूखा हलक

ज़िन्दगी नहीं दूर तलक

चाँद की रौशनी भी

हो चली मद्धम जहाँ..

ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,

हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर

ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..

ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..

एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..

जेब को अपनी… Continue

Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 11:00pm — 3 Comments

जब रूठ गये अपने

एक बार सब अपने रूठ गये मुझसे

पर क्यों थे रूठे यह पता नही

क़दमों में ला के रख दीं सब नैंमतें उनके

पर उनके दिलों में नफरत वही रही

कोशिश की उनके दिलों में वसने की

मगर उनकी सोच तो वही रही

कशिश की लाख मानाने क़ी मैंने उनको

पर उन पर इसका कोई असर नही

उनके लिए मांगी थीं लाखों दुआएं

पर उनको शायद यह खबर ही नही

दिल खोलकर भी रख देता सामने उनके

पर शायद वो पत्थर दिल पिघलते नही

न जाने वो सब क्यों शक करते हैं मुझपे

अब तक मुझे इस नाइंसाफी की खबर… Continue

Added by Ajay Singh on November 2, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

दो बैल...

कल मर गया

किशनु का बूढा बैल,

अब क्या होगा...

कैसे होगा...

चिंतातुर,सोचता-विचारता

मन ही मन बिसूरता

थाली में पड़ी रोटी

टुकड़ों में तोड़ता

सोचता,,,बस सोचता...

बोहनी है सिर पर,

हल पर

गडाए नज़र,

एक ही बैल बचा...

हे प्रभु,

ये कैसी सज़ा...!!!

स्वयं को बैल के

रिक्तस्थान पे देखता..

मन-ही-मन देता तसल्ली

खुद से ही कहता,

मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा...

बैल ही तो हूँ मै,

जीवन भर ढोया बोझ,

इस हल का भी… Continue

Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 2:00pm — 3 Comments

सरकार के सरकारी पुलाव

सरकार के काम करने के अपने तौर-तरीके होते हैं और वह जैसा चाहती है, वैसा काम कर सकती है। भला आम जनता की इतनी हिम्मत कहां कि उन्हें रोक सके। सरकारी कामकाज में सरकार और उनके मंत्रियों की मनमानी तो जनता वैसे भी एक अरसे से बर्दाष्त करती आ रही है। जनता तो बेचारी बनकर बैठी रहती है और सरकार भी हर तरह से उनकी आंखों में धूल झोंकने से बाज नहीं आती। विकास के नाम पर सरकार के सरकारी पुलाव तो जनता पचा जाती है, मगर जब सुुरक्षा की बात आती है तो फिर जनता के पास रास्ते नहीं बचते। वैसे तो सरकार का दायित्व बनता है… Continue

Added by rajkumar sahu on November 2, 2010 at 11:37am — 1 Comment

वक़्त.

पांच छत्तीस थे...घडी में जब...

शाम की धूप वेंटिलेटर से सरकी थी,

दूर तक साये चले आये थे... बीते मौसम को छोड़ने के लिए....

दर्द बहने लगा था पलकों से,

तुमने आँखों से उतारी थी...आंसुओं की नज़र..

ठंडी काफी में घुल गए थे जाने कितने पहर,

पांच छत्तीस हैं घडी में अब,

शाम की धूप वेंटिलेटर से सरकी है,

वक़्त गुज़रा है मगर,अब तलक नहीं बीता

Added by Sudhir Sharma on November 2, 2010 at 9:03am — 3 Comments

सहारा

मैंने स्वीकार तो कर ली है हार
किन्तु मैं कभी हारा नहीं हूँ
मेरी अपने ही दृष्टि में सही
मैं पूर्वाग्रहों में घिरा नहीं हूँ
मेरी हार में भी विजय हुई है
मैं इस मर्म को बिसरा नहीं हूँ
तुमसे तर्क वितर्क नहीं करता
किन्तु मैं कोई बेचारा नहीं हूँ
मैं हँसता भी संजीदा ही हूँ
किसी गम का मारा नहीं हूँ
मेरे जीवन में बहुत सुख है
दर्द का तलाशता सहारा नहीं हूँ

Added by Udaya Shankar Pant on November 1, 2010 at 9:57pm — 2 Comments


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ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के नये सदस्यों को दिक्कत हो रही है कि "OBO लाइव महा इवेंट" मे अपनी रचना कैसे पोस्ट करे ?

मैं कुछ स्क्रीन शाट के सहयोग से बताना चाहूँगा ...................

१- सबसे पहले मुख्य पृष्ठ से फोरम से "OBO लाइव महा इवेंट" को क्लिक करे ........

२- जो बॉक्स खुला उसमे अपनी रचना लिख पोस्ट करे

३- यदि किसी की रचना के ऊपर टिप्पणी देनी हो तो नीचे दिये स्क्रीन शाट को देखे ...…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2010 at 5:58pm — 1 Comment

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