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तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

हर एक लम्हा, तुम्हारी बातें,

हैं साथ मेरे, हर एक पल में

तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें I



मेरी निगाहों में तेरा चेहरा,

ये दिल और धड़कन हैं संग जैसे,

तू संग चलता है ऐसे मेरे,

है चलता ये आसमाँ संग जैसे I



हूँ भीगा मैं ऐसे तेरी खुश्बुओं से,

हो बादल कोई डूबा बूँदों में जैसे,

यूँ छाया तेरा इश्क़ है मेरे दिल पे,

हो सिमटी कोई झील धुन्धों में जैसे I



तुझ ही में पाया मैंने ख़ुदा को,

ख़ुदा…

Added by Veerendra Jain on November 12, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .





सर फिरोशी की तमन्ना है तो सर पैदा करो



वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .



गर मुल्क से इश्क है तो दिल जिगर शैदा करो



वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .



सब यहाँ का खा रहे पर न यहाँ का गा रहे ;



उस शजर को काटते हैं ,छाया जिस से पा रहे.



छाया से जो इश्क है तो पेड़ से पैदा करो



वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .



जो हुए हैं नाम चीन गुलचीं गुलिस्तान के… Continue

Added by DEEP ZIRVI on November 12, 2010 at 6:00am — 4 Comments

गीत: कौन हो तुम? ----- संजीव 'सलिल'

गीत:



कौन हो तुम?



संजीव 'सलिल'

*

कौन हो तुम?

मौन हो तुम?...

*

समय के अश्वों की वल्गा

निरंतर थामे हुए हो.

किसी को अपना किया ना

किसी के नामे हुए हो.



अनवरत दौड़ा रहे रथ

दिशा, गति, मंजिल कहाँ है?

डूबते ना तैरते, मझधार

या साहिल कहाँ है?



क्यों कभी रुकते नहीं हो?

क्यों कभी झुकते नहीं हो?

क्यों कभी चुकते नहीं हो?

क्यों कभी थकते नहीं हो?



लुभाते मुझको बहुत हो

जहाँ भी हो जौन हो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:32pm — 2 Comments

मिलना-बिछडना ::: ©







मिलना-बिछडना ::: ©



स्वप्न लोक से तू निकल आ ऐ रूपसी...

माना है जिंदगी चाहत का एक सिलसिला..

मिलना-बिछडना भी है लगा रहता यहाँ...

क्यूँ मांगती है आ सीख ले तू छीन लेना..

बिन मांगे न मिला है न तुझे मिलेगा कभी.. ©



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 11-11-2010… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 11, 2010 at 5:34pm — 6 Comments

हिन्दी कविता का अन्तर्जाल युग और ओबीओ लाइव महाइवेंट - १

हिन्दी कविता एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। इस युग में हिन्दी कविता वैश्विक मंच पर अन्तर्जाल के माध्यम से अपनी पहचान बना रही है । इसलिए इस युग को “अन्तर्जाल युग” ही कहा जाय तो ठीक रहेगा। आज के समय में अन्तर्जाल का प्रयोग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इसमें हिन्दीभाषी लोगों की संख्या भी कम नहीं है। धीरे धीरे ही सही अन्तर्जाल के माध्यम से हिन्दी कविता विश्व के कोने कोने तक पहुँच रही है। आज अधिकांश हिन्दी कविताएँ अन्तर्जाल पर उपलब्ध हैं। अब उभरते हुए कवियों को प्रकाशित होने के लिए… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 11, 2010 at 3:43pm — 3 Comments

बनकर साकी आया हूँ

बनकर साकी आया हूँ मै आज जमाने रंग|

ऐसी आज पिलाऊंगा, सब रह जायेंगे दंग||



अभी मुफिलिसी सर पर मेरे, खोल न पाऊं मधुशाला|

फिर भी आज पिलाऊंगा मै हो वो भले आधा प्याला|

ऐ मेरे पीने वालों तुम, अभी से यूँ नाराज न हो|

मस्त इसी में हो जावोगे, बड़ी नशीली है हाला|



एक-एक पाई देकर मै जो अंगूर लाया हूँ|

इमानदारी की भट्ठी पे रख जतन से इसे बनाया हूँ|

तनु करने को ये न समझना, किसी गरीब का लहू लिया|

राजनीति से किसी तरह मै अब तक इसे बचाया हूँ|



हर बार… Continue

Added by आशीष यादव on November 11, 2010 at 2:30pm — 11 Comments

नवगीत :: शेष धर संजीव 'सलिल'

नवगीत ::



शेष धर



संजीव 'सलिल'

*

किया देना-पावना बहुत,

अब तो कुछ शेष धर...

*

आया हूँ जाने को,

जाऊँगा आने को.

अपने स्वर में अपनी-

खुशी-पीर गाने को.



पिया अमिय-गरल एक संग

चिंता मत लेश धर.

किया देना-पावना बहुत,

अब तो कुछ शेष धर...

*

कोशिश का साथी हूँ.

आलस-आराती हूँ.

मंजिल है दूल्हा तो-

मैं भी बाराती हूँ..



शिल्प, कथ्य, भाव, बिम्ब, रस.

सर पर कर केश धर.

किया देना-पावना… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:55am — 3 Comments

गज़ल

दुनिया को मेरा जुर्म बता क्यूं नहीं देते?

मुजरिम हूँ तो फिर मुझको सज़ा क्यूं नहीं देते..?



बतला नहीं सकते अगर दुनिया को मेरा जुर्म?

इल्जाम नया मुझपे लगा क्यूं नहीं देते...!



मुश्किल मेरी आसान बना क्यूं नहीं देते ?

थोड़ी सी जहर मुझको पिला क्यूं नहीं देते ?



दिल में जनूं की आग जला क्यूं नहीं लेते ?

इन शोअलों को कुछ और हवा क्यूं नहीं देते ?



यूं तो बहुत कुछ अपने इजाद किया है,

इंसान को इन्सान बना क्यूं नहीं देते ?



दुनिया को… Continue

Added by Rector Kathuria on November 10, 2010 at 10:00pm — 5 Comments

गज़ल

सब से पत्थर खाता है वो दीवाना.

फिर भी सच सुनाता है वो दीवाना.



क्यूं सपनों में आता है वो दीवाना,

दिल को क्यूं तड़पाता है वो दीवाना.



दीवाली तो साल बाद ही आती है,

पर हर रोज़ मनाता है वो दीवाना.



लड़ता है हर रोज़ वो जंग अंधेरों से,

हर पल दीप जलाता है वो दीवाना.



तूफां में चिराग जलाता हो जैसे,

प्यार के गीत सुनाता है वो दीवाना.



यादों की खुद आग लगाता है हर रोज़,

फिर उसमें जल जाता है वो दीवाना.



धोखा मुझको… Continue

Added by Rector Kathuria on November 10, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

मुल्क तो इनका मकां है साथियो

ना यहाँ है ना वहाँ है साथियो
आजकल इंसां कहाँ है साथियो

आम जनता डर रही है पुलिस से
चुप यहाँ सब की जबाँ है साथियो

पार्टी में हाथ है हाथी कमल
आदमी का क्या निशां है साथियो

लीडरों का एक्स-रे कर लीजिए
झूठ रग रग में रवाँ है साथियो

ये उठा दें रैंट पर या बेच दें
मुल्क तो इनका मकां है साथियो

Added by Arun Chaturvedi on November 10, 2010 at 5:44pm — 4 Comments

पिघला था चाँद

शब-ए-अमावस को चिढ़ाने कल निकला था चाँद

काली चादर ओढ़कर भी कितना उजला था चाँद



खूब कोशिशों पर भी कुछ समेट ना पाया आसमाँ

सुबह होते ही बुलबुले सा फूटकर बिखरा था चाँद



दिखती है दरिया में कैद आज तलक परछाई

उस रोज़ कभी नहाते वक़्त जो फिसला था चाँद



क्या पता रंजिश थी या जमाने का कोई दस्तूर

रोज़ की तरह आज भी सूरज निगला था चाँद



दोनों जले थे रात भर अलाव भी और चाँद भी

तेरे लम्स के पश्मीने में भी… Continue

Added by विवेक मिश्र on November 9, 2010 at 12:23pm — 4 Comments

तुम दीप जला-के तो देखो... डॉ नूतन गैरोला

तुम दीप जला-के तो देखो... डॉ नूतन गैरोला







हमने अँधेरा देखा है



एक अहसास बुराई का



ये दोष अँधेरे का नहीं



ये दोष हमारा है





हमने क्यों मन के कोने में



इक आग सुलगाई अँधेरे की



खुद का नाम नहीं लिया हमने



बदनाम किया अँधेरे को.......





एक पक्ष अँधेरे का है गुणी



कुछ गुणगान उसका तुम करो



अँधेरा है तो दीया भी… Continue

Added by Dr Nutan on November 8, 2010 at 7:34pm — 4 Comments

बाल कविता: अंशू-मिंशू संजीव 'सलिल'

बाल कविता:



अंशू-मिंशू



संजीव 'सलिल'

*

अंशू-मिंशू दो भाई हिल-मिल रहते थे हरदम साथ.

साथ खेलते साथ कूदते दोनों लिये हाथ में हाथ..



अंशू तो सीधा-सादा था, मिंशू था बातूनी.

ख्वाब देखता तारों के, बातें थीं अफलातूनी..



एक सुबह दोनों ने सोचा: 'आज करेंगे सैर'.

जंगल की हरियाली देखें, नहा, नदी में तैर..



अगर बड़ों को बता दिया तो हमें न जाने देंगे,

बहला-फुसला, डांट-डपट कर नहीं घूमने देंगे..



छिपकर दोनों भाई चल दिये हवा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 8, 2010 at 6:14pm — 5 Comments

तलब तेरी ,इश्क तेरा ,मुहब्बत का असर तेरा .



तलब तेरी ,इश्क तेरा ,मुहब्बत का असर तेरा .



हुई मुद्दत कहा तू ने ,है सब कुछ ये सनम तेरा .



हवा तेरी महक लाये ,फिजा तेरा पता लाये ;



धनक तेरी ,उफक तेराललक तेरी अहम तेरा .



जिस्म तेरा ,अमानत है किसी का, तो रहे होकर;



सुमन तेरा ,महक तेरी , मगर ,तेरा चमन मेरा .



हमारी आस को विश्वास है तेरी मुहब्बत का ;



रहे बन के सनम मेरे ,रहूँ में ही बलम तेरा .



सुरीली तुम ही सरगम हो… Continue

Added by DEEP ZIRVI on November 8, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

खाब की ताबीर होने से रही

खाब की ताबीर होने से रही
ऐसी भी तकदीर होने से रही


पहले सी झुकती नहीं तेरी नज़र
अब कमां ये तीर होने से रही

चाहे जितने रंग भर लो खाब के
पानी मे तस्वीर होने से रही

कर लो पैनी ' फ़िक्र' जितनी तुम कलम
जौक, ग़ालिब, मीर, होने से रही 

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on November 8, 2010 at 10:25am — 3 Comments

तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



कुछ घाव हरे कर गए है..

तुम्हारे ये दो आँसू मेरी..

संवेदना को गहरा कर गए हैं..

किसी पुराने जख्म का रिसना..

और भर-भर कर उसका..

रिसते चले जाना..

नियति बन गया है अब..



तुम्हारे मन की पीड़ा..

आँसू की पहली बूँद से..

उजागर हो रही है..

एक ह्रदय से दूसरे तक..

क्यों इस पीड़ा का गमन..

हो रहा है निरंतर..



सतत अविरल बहते आँसू..

मेरे… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 8, 2010 at 12:38am — No Comments

हौसला

दीपक की देखी बाती

तेल में डूबी निज तन जलाती

महा तमस में अकेले ही

उजियारा फैलाती

सबका हौसला बढाती

देखी दीपक की बाती...

एक सैनिक

जो युद्ध-भूमि में पड़ा है

मातृभूमि के लिए

आखिरी साँस तक लड़ा है

उसके सीने में देशभक्त का

गौरव जड़ा है ....



हम युद्ध जीतेंगे हर बार

दुश्मन से भी और

बुराइयों से भी...

ऐ मेरे रहबर !

समझौते की मेज़ पर

अपना मनोबल न गिराना

खुद के आत्म सम्मान के लिए

देश को दांव पर न… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 7, 2010 at 11:00pm — No Comments

राजनीति की निराली कहानी

अभी हाल ही में मुझसे एक पुराने जान-पहचान का अरसे बाद मिला। बरसों पहले जब मैं उससे मिला करता था तो उसके पास खाने के लाले पड़े थे। वह कुछ एक आपराधिक कार्यों में भी लिप्त था। कई बार जेेेल की हवा भी खा चुका था। कल तक जो पूरे मोहल्ले को फूटी आंख नहीं सुहाता था, आज वही लोगों की आंख का तारा बना हुआ है। जब वह मुझे मिला तो मैंने उससे कुषलक्षेम पूछा। उसने बताया कि वह इन दिनों राजनीति में खूब कमाल दिखा रहा है। मैंने कहा कि ऐसा कर लिया, जो बिना किसी योग्यता के, नाम भी कमा लिया और पोटली भी भर ली, वह भी ऐसे,… Continue

Added by rajkumar sahu on November 7, 2010 at 2:49pm — No Comments

विकास पथ पर छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़, देश का 26 वां राज्य है और यह प्रदेश 1 नवंबर सन् 2000 में अस्तित्व में आया। मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद बहुमत के आधार पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता मिली और राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बने। 2003 में जब छग में पहला विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा, सत्ता में आई तथा डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने। इसके बाद दोबारा विधानसभा चुनाव 2008 में हुए, इस दौरान भाजपा फिर सत्ता में काबिज हो गई। इस तरह डा. रमन सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बने।

अभी हाल ही में 1 नवंबर, 2010 को छत्तीसगढ़ ने 10 बरस… Continue

Added by rajkumar sahu on November 7, 2010 at 2:15pm — No Comments

गहन तमसा में खिली एक ज्योत्सना है

मधु गीति सं. १५०२ दि. ४ नवम्बर, २०१०



गहन तमसा में खिली एक ज्योत्सना है, ज्योति की वह क्षीण रेखा उन्मना है;

नहीं अपना नजर उसको कोई आता, जोड़ पाती ना प्रकाशों से है वो नाता.



प्रकाशों की नाभि से वह निकल आयी, स्रोत के उस केंद्र से ना जुड़ है पायी;

खोजती रहती वही निज स्रोत सत्ता, दीप लौ बन खोजती है बृहत सत्ता.

अंधेरों से भिड़ प्रकाशों को संजोये, वाती जब तब स्वयं भी है झुलस जाए;

घृत प्रचुर दीपक की वाती जब न पाये, उर दिये का भी कभी वाती… Continue

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 1:05pm — 3 Comments

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