For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत कुछ सुना पर सीख न पाया
बहुत कुछ सूझा पर लिख न पाया

बहुत कुछ हुआ मेरे पीठ पीछे
मुडके देखा
तो कुछ और ही पाया

नमक के जैसी थी प्रकृति मेरी
पानी में घुला पर मिट न पाया

बन बोछार जब छलका में
चिकने घड़ों पे टिक न पाया

घूमता हूँ छुपाये कितने मोती में
खारा समुन्दर हूँ छुप न पाया

तंग होकर जब खुद को बेचने चला बाज़ार में
निष्फल था सो बिक न पाया

Views: 427

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Bhasker Agrawal on May 10, 2011 at 5:41pm
धन्यवाद अरुण कुमार जी
Comment by Abhinav Arun on May 9, 2011 at 11:18am
बन बोछार जब छलका में
चिकने घड़ों पे टिक न पाया
 खूबसूरत बिम्बों की कविता निश्छल भाव बधाई भास्कर जी @|
Comment by Bhasker Agrawal on January 1, 2011 at 5:07pm
शुक्रिया लता जी
Comment by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 3:47pm

नमक के जैसी थी प्रकृति मेरी
पानी में घुला पर मिट न पाया

इन पंक्तियों का सौंदर्य ही अलग है..अदभुत :) 

Comment by Bhasker Agrawal on December 28, 2010 at 7:48pm
धन्यवाद मनीष जी
Comment by Manish Kumar on December 28, 2010 at 5:37pm
bahut sunder rachna bhasker ji , impressive......
Comment by Bhasker Agrawal on December 28, 2010 at 11:03am
बहुत धन्यवाद गणेश जी..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2010 at 10:31am
निष्फल था सो बिक न पाया.....
वाह क्या बात कही है, बहुत खूब साथ मे नमक जैसे घुलना और पीठ पीछे भी देखने का प्रयत्न अद्भुत है , बहुत बहुत बधाई भाष्कर बाबू इस अनुपम काव्यकृत के लिये ...
Comment by Bhasker Agrawal on December 27, 2010 at 11:38pm
धन्यवाद नवीन जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
17 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service