कुछ खरी-खरी
Added by rajesh kumari on April 27, 2012 at 12:00pm — 14 Comments
मैं हूँ स्वछन्द ,नीर की बदरी, जहां चाहे बरस जाऊँगी …
ContinueAdded by rajesh kumari on April 26, 2012 at 9:00am — 13 Comments
पृथ्वी दिवस हाइकु
Added by rajesh kumari on April 22, 2012 at 2:30pm — 10 Comments
मोहब्बत के फ़न…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 22, 2012 at 8:43am — 11 Comments
तुम हर पल क्यूँ सजग रहे
कौन व्यथा है दबी हिय में
किस अगन में संत्रस्त रहे |
घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु
कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे
दावानल से केश खुले क्यूँ
तन से शोले भड़क रहे |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 12, 2012 at 6:30pm — 19 Comments
हर मजहब के दुःख -दर्द एक सामान होते हैं
फिर क्यूँ पराई पीर से हम अनजान होते हैं
क्यूँ फेंकते पत्थरों को हम उनके घरों पर
जब खुद के भी तो शीशों के मकान होते हैं
उन लोगों की कम सोच का क्या करियेगा
जिनकी वजह से रिश्ते कुछ बेजान होते हैं
बन जाते हैं वो सफ़र में मुसीबतों के सबब
कई दफह जब रास्ते बेहद सुनसान होते हैं
मत छूना कभी जो लावारिस पड़े हैं राह में
मुमकिन हैं छुपे मौत का वो सामान होते हैं
मिलके गले वो घोंप दे खंजर ये क्या पता…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 5, 2012 at 11:30am — 16 Comments
तीन वर्ण और
एक मायावी शब्द ,
Added by rajesh kumari on April 4, 2012 at 10:31am — 10 Comments
कुछ पल मेरी छावं में बैठो तो सुनाऊं
हाँ मैं ही वो अभागा पीपल का दरख्त हूँ
जिसकी संवेदनाएं मर चुकी हैं
दर्द का इतना गरल पी चुका हूँ
कि जड़ हो चुका हूँ !
अब किसी की व्यथा से
विह्वल नहीं होता
मेरी आँखों में अश्कों का
समुंदर सूख चुका है |
बहुत अश्रु बहाए उस वक़्त
जब कोई वीर सावरकर
मुझसे लिपट…
Added by rajesh kumari on April 1, 2012 at 8:00am — 11 Comments
Added by rajesh kumari on March 28, 2012 at 7:55pm — 16 Comments
भावनाओं का दमन,
संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं
आदान-प्रदान सब गौण हुए
अब ऐसा चलन देख रहे हैं |
स्वार्थ के बढ़ते दाएरे,
जन- जन को छलते देख रहे हैं
हिंद का वैभव स्विस बेंकों में
हक को जलते देख रहे हैं |
भ्रष्टाचारी को जीवंत,
संत ज्ञानी को मरते देख रहे हैं
अगन उगलते सूरज में,
नम धरा झुलसते देख रहे हैं |
दूध की नदियाँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 26, 2012 at 10:30am — 10 Comments
आज मन में क्यूँ उठी मेरे लहर
चाँद जाने दे गया कैसी खबर
चलो घर को अपने करीने से सजा लूँ
किसको साथ लाती है मेरी सहर
बहकी बहकी सी फ़िजा लगती है
कौन जाने है ये किसका असर
वो तो समझो है शाइस्तगी मेरी
वर्ना हक़ से कहती अभी और ठहर
आजकल दरवाजे उनके बंद रहते हैं
चुपचाप ना जाने वो गए किधर
रुसवाइयों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता
कसम से हैं वो बड़े बेखबर
रास्ता शायद वो दरिया भूल गया
मुड़ गया इस और जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 21, 2012 at 2:09pm — 20 Comments
वो टूटा फिर से सितारा मोहब्बत की खातिर
देख लो तुम भी नजारा मोहब्बत की खातिर
आ जाओ तसव्वुर में घडी दो घडी
ये वक़्त न मिलेगा दुबारा मोहब्बत की खातिर
लोग तो इश्क में जीवन ही लुटा देते हैं
दे दो बाँहों का सहारा मोहब्बत की खातिर
छूट गई है मेरे हाथों से पतंग की डोर
थाम लो इसका किनारा मोहब्बत की खातिर
खुशियों की ये दौलत मुझसे छीन ना लेना
ग़ुरबत में जीवन है…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 9, 2012 at 9:17am — 9 Comments
उपलब्धियों के मंच पर
Added by rajesh kumari on February 29, 2012 at 1:52pm — 14 Comments
लघु कथा
अरे भाई हँसमुख जी, आज क्यूँ उदास हो, क्या हुआ ? क्या बताऊँ मैं आज बहुत परेशां हूँ, आप ही बताओ आप को कैसा लगेगा यह जान कर कि आप जिस घर में पिछले दस साल से अकेले रहते हो, उसमे आप के अलावा कोई और भी अचानक आकर रहने लगे !! कल रात कुछ लोग अचानक मेरे घर में मेरे ही सामने मेरे घर में डेरा डाल कर बैठ गए और अपना आधिपत्य जताने लगे और मैं कुछ न कर सका | जी में तो आया कि एक एक को उठाकर फेंक दूं पर क्या करे हमारी भी कुछ अपनी…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 25, 2012 at 10:00am — 14 Comments
यह कविता उन व्यक्तियों ,महिलाओं के सन्दर्भ में है जो कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भागीदार हैं इसके खिलाफ लड़ाई में मेरा यह छोटा सा प्रयास है !मेरी यह कविता QAWWA(मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स )
Added by rajesh kumari on February 23, 2012 at 8:36pm — 11 Comments
फर्ज के अलाव में कब तक जलो
Added by rajesh kumari on February 23, 2012 at 9:05am — 11 Comments
Added by rajesh kumari on February 14, 2012 at 10:00am — 3 Comments
बिखरे हुए हैं गेसू इस इन्तजार में
Added by rajesh kumari on February 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments
अभी तक गई नहीं तुम्हारी आदत
Added by rajesh kumari on February 2, 2012 at 11:39am — 11 Comments
चुन चुन कर जमा किये थे
Added by rajesh kumari on January 31, 2012 at 11:00am — 2 Comments
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