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उपलब्धियों के मंच पर 

जब भी  कोई तुमसे पूछता कि 
तुम्हारी सफलता के पीछे किसका हाथ है 
तुम हमेशा मुझको अपनी ताकत 
बताते रहे |और उसके बाद
करतल ध्वनी 
की गूंजती आवाज से 
मेरा वो प्रेम का एहसास 
और बुलंद और गर्वित होता चला गया|
याद आया है वो हमारे मिलन का पहला दिन 
जब तुमने मेरे हाथ को थामते हुए कहा था 
कि मेरे अस्तित्व को आज पंख 
मिल गए |
और उसके बाद हम स्वछन्द 
परिंदों कि तरह उन्मुक्त गगन में 
साथ- साथ उड़ते हुए ना जाने कितनी 
नीचाइयों और ऊँचाइयों को छूते हुए
 बहुत दूर निकल गए |
शनै- शनै तुम्हारे पंख 
मेरे पंखों का सहारा लेने लगे 
मेरी चेतना तब धरातल पर लौटी 
जब मैंने महसूस किया कि 
मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी उड़ान 
में वो आत्मविश्वास नहीं रहा 
 तुम मुझ पर आश्रित होने लगे
यह मैंने कभी नहीं सोचा था 
जिस प्यार को मैं तुम्हारी ताकत
समझ रही थी 
वो ही तुम्हे कमजोर कर देगा 
तुम तो टूट ही जाओगे मेरे बिना 
आज इतिहास में लिखी 
हाडा रानी के मन कि दुविधा 
और दूरदर्शिता समझ में आ रही है 
जिसने प्यार के वशीभूत हुए 
राजा राव रतन सिंह को 
युद्द  में  जाते हुए कोई 
प्यार कि भेंट  मांगने पर 
अपने शीश को थाली में 
सजा कर भेज दिया था ,
क्यूंकि वो अपने प्यार को 
अपने पति कि पराजय का कारण नहीं 
बनाना चाहती थी |
कितना मुश्किल हुआ होगा 
उसके लिए ये फेंसला लेना |
किसी को प्यार  और सहारा इतना भी मत दो
 कि वो अपना आत्मविश्वास ही खो दे| 
जीवन भी एक जंग ही है 
और मैं भी नहीं चाहती कि 
तुम इस जंग में मेरे ही कारण 
टूट जाओ |
फिर से दूर क्षितिज तक 
विस्तृत गगन में मेरे बिना उड़ान भरो 
मैं अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा तुम्हारे साथ हूँ 
अब मैं तुम्हारी प्रेरणा बनना चाहती हूँ 
कमजोरी नहीं |
क्यूँ  कि  कल का क्या पता 
मैं रहूँ या ना रहूँ |
 
  

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Comment

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Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 11:45am
जीवन भी एक जंग ही है
और मैं भी नहीं चाहती कि
तुम इस जंग में मेरे ही कारण
टूट जाओ |
फिर से दूर क्षितिज तक
विस्तृत गगन में मेरे बिना उड़ान भरो
मैं अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा तुम्हारे साथ हूँ
अब मैं तुम्हारी प्रेरणा बनना चाहती हूँ
कमजोरी नहीं |
क्यूँ कि कल का क्या पता
मैं रहूँ या ना रहूँ |------ भाव विभोर करती हुई पंक्ति दर पंक्ति , कितनी दूर तक लेकर गई आप इन शब्दों के पंखों पर बिठाकर और अंततः लेकर आई यथार्थ के जमीन पर शनैः शनैः । अद्भुत संप्रेषण है यह आपका आदरणीया राजेश कुमारी जी । हृदय से बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 29, 2012 at 2:31pm

Seema ji haardik aabhar aapka meri rachna aapke antahkaran ko choo saki.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2012 at 10:52am

हार्दिक आभार योगराज  जी आपकी कसौटी पर मेरी रचना खरी उतरी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:34am

वाह वाह वाह - बहुत ही सुन्दर काव्यअभिव्यक्ति आदरणीया राजेश कुमारी जी. बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 1:20pm

Ganesh lohani ji aapki parkhi drashti se meri rachna kratagya hui.haardik aabhar.

Comment by ganesh lohani on March 2, 2012 at 1:17pm

DSC04841आदरणीया बहुत सुंदर रचना . शुभकामना भाव बिह्वल कर दिया प्रेनादायक  .

नीचाइयों और ऊँचाइयों को छूते हुए

 बहुत दूर निकल गए |
शनै- शनै तुम्हारे पंख 
मेरे पंखों का सहारा लेने लगे 

 और ये भी

किसी को प्यार  और सहारा इतना भी मत दो
 कि वो अपना आत्मविश्वास ही खो दे| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 1:08pm

aap sahi me kavita ke paarkhi hain jo rachna ke mukhya bhaav ko grahan kiya.hardik aabhar Rakesh ji

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 12:59pm
किसी को प्यार  और सहारा इतना भी मत दो
 कि वो अपना आत्मविश्वास ही खो दे|
bahut bankpan aur sookshm najar se aapne ye bhav likha hai.
saadar Badhai.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 12:05pm

bahut bahut aabhar dr,prachi ji meri rachna ke tatthya ko baakhoobi samjha .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 11:50am

rachna ka jo nishkarsk aapne nikala uske liye bhi aabhari hoon.

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