लघु कथा
अरे भाई हँसमुख जी, आज क्यूँ उदास हो, क्या हुआ ? क्या बताऊँ मैं आज बहुत परेशां हूँ, आप ही बताओ आप को कैसा लगेगा यह जान कर कि आप जिस घर में पिछले दस साल से अकेले रहते हो, उसमे आप के अलावा कोई और भी अचानक आकर रहने लगे !! कल रात कुछ लोग अचानक मेरे घर में मेरे ही सामने मेरे घर में डेरा डाल कर बैठ गए और अपना आधिपत्य जताने लगे और मैं कुछ न कर सका | जी में तो आया कि एक एक को उठाकर फेंक दूं पर क्या करे हमारी भी कुछ अपनी सीमायें हैं | क्या करूँ कौन से तंत्र मंत्र का सहारा लूं कि वो भाग जाएँ, पर सोचता हूँ कि इसमें इनका क्या दोष, दोष तो मेरे ही अपनों का है जिन्होंने मेरे हाथो से बनाए हुए दिनरात मेहनत करके बनाए हुए मेरे इस आशियाने को दूसरों को बेच दिया | कल वो मेरा श्राद्ध दूसरे देश में मना रहे हैं, अपना देश अपना आशियाना छोड़ कर इतनी दूर कैसे जाऊं इसी लिए मैं आज बहुत दुखी हूँ मित्रो |
Comment
बहुत बहुत आभारी हूँ आ० कांता जी मेरी इस भूली बिसरी लघु कथा को रीफ्रेश करने के लिए पोस्ट पर लेट पँहुचने के लिए खेद है |
बहुत बहुत आभार सौरभ जी आपने इस कहानी के मर्म को महसूस किया
बहुत-बहुत बधाई, राजेशकुमारी जी. इस सार्थक प्रयास को देख कर एहसास हुआ कि वास्तव में विलम्ब से इस पन्ने पर आ पाया.
bahut bahut aabhar Ajay kumar ji aapne is laghu katha ko dil se mehsoos kiya.
dil ko chhoo lene wali kahani...
जी आशा जी जिस आशियाने मे तुम्हारी आत्मा बसी हो वो कहाँ छूट ता है आभार |
waaaaaah kitni marmsprshi kahani hai .. jade nahi chhoti .. jivan chhotne ke baad bhi yah katu saty hai
Nazeel ji shukriya.
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