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हमारे देश के मौसम हमें वापस बुलाते हैं ( फिल्बदीह हिंदी ग़ज़ल/गीतिका 'राज ')

१२२२  १२२२   १२२२  १२२२

जहाँ श्री राम की मूरत वहीं सीता बिठाते हैं

जपें जो नाम राधा का वहीं घनश्याम आते हैं

 

करें पूजन हवन जिनका करें हम वंदना जिनकी

वही दिल में हमारे ज्ञान का दीपक जलाते हैं

 

लिए विश्वास के लंगर चलें जो पोत के नाविक

समंदर के थपेड़ों से नही वो डगमगाते हैं

 

पराये देश में जाकर भले दौलत कमाएँ हम

हमारे देश के मौसम हमें वापस बुलाते हैं

 

भरे हम  बैंक कितने भी मगर क्या बात गुल्लक की

वहीँ बचपन मिले सिक्के जहाँ भी खनखनाते हैं

 

विटप की छाँव में पलकर जहाँ सपने युवा होते

उसी को पंख आने पर परिंदे छोड़ जाते हैं

 

धुला सच्चे सलिल से जो भरी हो भावना निर्मल

उसी निःस्वार्थ अम्बर में सितारे जगमगाते  हैं

 

करे जो बात अब झुकके उसे समझें निरा दुर्बल

बहुत हैं मूर्ख दुनिया में हँसी उसकी उड़ाते हैं

 

अँधेरे में जहाँ छुपकर कहीं  संवेदना सोई

उठा अपने  कलम लेखक उसे फिर से जगाते हैं 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 29, 2016 at 9:54pm

आद० सुरेश कुमार कल्याण जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 29, 2016 at 9:54pm

प्रिय प्रतिभा जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 29, 2016 at 6:25pm
वाह वाह बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया राजेश कुमारी जी । बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by pratibha pande on August 29, 2016 at 9:27am

अँधेरे में जहाँ छुपकर कहीं  संवेदना सोई

उठा अपने  कलम लेखक उसे फिर से जगाते हैं ......  प्रेरक भावों से भरी ग़ज़ल   हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 28, 2016 at 8:43pm

आद० समर भाई जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी ग़ज़ल पर दाद मिली मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया आपका|  

Comment by Samar kabeer on August 28, 2016 at 2:38pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत सुंदर अहसासात से सजी इस शानदार और मुरस्सा ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Mahendra Kumar on August 27, 2016 at 8:52pm
इस ज्ञानवर्धन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय राजेश मैम, सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2016 at 8:32pm

आद० महेंद्र कुमार जी, ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक और दाद के लिए दिल से बहुत बहुत आभार | फिल्बदीह को तुरत फुरत भी  कहें तो चलेगा अर्थात दी हुई  बह्र पर कुछ मुक़र्रर वक़्त में ही पूरी ग़ज़ल कहनी होती है उस आयोजन को फिल्बदीह आयोजन कहते हैं | 

Comment by Mahendra Kumar on August 27, 2016 at 8:28pm
वाह! वाह!! वाह!!! किस शेर के तारीफ़ करूँ आदरणीया राजेश मैम सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं। सभी के लिए एक साथ दाद क़ुबूल फरमाएँ।

एक जिज्ञासा है, ये फ़िल्बबदीह ग़ज़ल क्या होती है? सादर!

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