For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,113)

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जाते

हम सुनकर डाँट कभी जिनकी।

नव उमंग भर जाती मन में

चुपके से उनकी वह थपकी ।

 

उस पल जाना ‘प्रेम पिता का’

कितनी…

Continue

Added by Dharmendra Kumar Yadav on December 7, 2024 at 1:55pm — 1 Comment

लघुकविता

वह दरदरी दरी का रंगीन झोला 

डाकिए की तरह कंधे पर लटका कर 

हाथ में लकड़ी की तख्ती लेकर 

विद्यालय जाना 

पुरानी काली कूई पर

तख्ती पोंछकर मुल्तानी मिट्टी मलना 

धूप में सुखाकर सुलेख लिखना 

और वाहवाही लूटना 

मेरे सुखद अनुभव जिनसे 

अगली पीढ़ियाँ अनभिज्ञ रहेंगी। 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 4, 2024 at 2:00pm — 3 Comments

दोहा पंचक. . . . कागज

दोहा पंचक. . . कागज

कागज के तो फूल सब, होते हैं निर्गंध ।

तितली को भाते नहीं, गंधहीन यह बंध ।।

कितनी बेबस लग रही, कागज की यह नाव ।

कैसे हो तूफान में,साहिल पर ठहराव ।।

कागज की कश्ती चली, लेकर कुछ अरमान ।

रेजा - रेजा कर गया , स्वप्न सभी तूफान ।।

कैसी भी हो डूबती, कागज वाली नाव ।

हृदय विदारक दृश्य से, नैनों से हो स्राव ।

कागज पर लिख डालिए, चाहे जितने भाव ।

कागज कभी न भीगता, कितने ही हों घाव ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 3, 2024 at 8:57pm — 4 Comments

कुंडलिया ....

कुंडलिया. . . . 

मीरा को गिरधर मिले, मिले  रमा को  श्याम ।
संग   सूर  को  ले  चले, माधव  अपने  धाम ।
माधव  अपने धाम , भक्ति की अद्भुत  माया ।
हर मुश्किल में साथ, श्याम की चलती छाया ।
भजें  हरी  का  नाम , साथ  में  बजे  मँजीरा ।
भक्ति भाव  में डूब, रास  फिर  करती  मीरा ।

सुशील सरना / 1-12-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 1, 2024 at 9:10pm — 4 Comments

दोहा सप्तक. . . विरह

दोहा सप्तक. .. . विरह

देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।

गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।

चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।

आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।

जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।

जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।

तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।

आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।

पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।

पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।

बड़ा अजब है…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — 2 Comments

दोहे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।

राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।

*

जो आगन को लड़  रहे, भाई से हर शाम

कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम।।

*

सूपनखा की कट गयी, लछमन हाथों नाक

बनी रही फिर भी वही, तीन पात का ढाक।।

*

जनमर्यादा  को  करे, कौन  राम सा त्याग

ढूँढा करते किन्तु सब, राम काज में दाग।।

*

दण्ड लखन को मृत्यु का, सीता को वनवास

सहा न क्या-क्या राम…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2024 at 8:57am — No Comments

मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कितना भी दुविधा का क्षण हो

मन   में   केवल   रामायण  हो।।

*

बनना जितना राम असम्भव

उससे बढ़कर भरत कठिन है।

जीवन  में  चहुँ   ओर  मंथरा

जब उकसाती हर पलछिन है।।



कलयुग के सिर दोष न मढ़ना

देख स्वयम् को निज दर्पण हो।।

*

इच्छाओं     के     कुरुक्षेत्र में

भीष्म सरीखा जब हो घायल।

और ज्ञान के नभ मण्डल में

शंकाओं   के   छायें  बादल।।



पर तुम विचलित कभी न होना

आस-पास  कितना  भी रण हो।।

*

गोवर्धन  नित  पड़े …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2024 at 12:21pm — 4 Comments

दोहा सप्तक. . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविध

मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।

कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।

जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।

अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।

मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।

निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।

किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।

अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।

अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।

आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता  अर्थ ।।

कल ही कल की सोच में,…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — 2 Comments

सावन

घोर घटा घन नाच नभ, मचा मनों में शोर।

विरह विरहणी तड़पती, सावन चंद चकोर।।

सुरेश कुमार 'कल्याण' 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 21, 2024 at 3:09pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .शीत

दोहा पंचक. . . . शीत

अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।

बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।

धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।

हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।

शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।

गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।

शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।

शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।

धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।

पहन चुनरिया ओस की,  भोर  करे शृंगार ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .मतभेद

दोहा पंचक. . . . मतभेद

इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।

चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।

मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।

एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।

रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।

सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।

मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।

सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।

जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।

जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।

सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 2 Comments

तिश्नगी हर नगर की बुझा --लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२/२१२/२१२/२१२

कह रही है बहुत  ये  हवा आग से

तिश्नगी हर नगर की बुझा आग से।१।

*

जागते  लोग  बाधा  सियासत कहे

चैन की नींद सब को सुला आग से।२।

*

ईश  औषध   बना  बोल  देते  रहे

लोग चलने लगे विष बना आग से।३।

*

दूर से हाथ जोड़ो कि सपनों छिपा

जब पड़े  आप का वास्ता आग से।४।

*

जल गये हाथ  बच्चे  के बूढ़ा कहे

खुश हुआ दोस्ती कर युवा आग से।५।

*

भूप अंधा  हुआ  आग हाथों में ले

झोपड़ी को भुला खेलता आग से।६।

*

इश्क…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2024 at 4:10am — No Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — 2 Comments

तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं

तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं,

बदन मिल जाना ही इश्क़ की राह नहीं।

जिस्म का क्या है, मिट्टी में मिल जाएगा,

हाँ, मगर रूह को कोई परवाह नहीं।

लबों ने लबों को तो बाद में छुआ,

पहले तू रूह से हमारा हुआ।…

Continue

Added by AMAN SINHA on November 10, 2024 at 7:59am — No Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविध

देख उजाला भोर का, डर कर भागी रात ।

कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।

गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।

सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।

धर्म - कर्म  ईमान सब, बेमतलब की बात ।

क्षुधित उदर को चाहिए, केवल रोटी भात ।।

आँधी आई अर्थ की, दरकी हर दीवार ।

अपनी ही दहलीज पर, रिश्ते सब लाचार ।

नवयुग के परिवेश में, प्यार बना व्यापार ।

प्यार नहीं है  जिस्म को, जिस्मानी दरकार ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 9, 2024 at 3:30pm — 4 Comments

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार।

लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।।

मिले नहीं आधार, सत्य के बिन उद्घाटन।

शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, मूल्य पर भी हो चिंतन।।

बिना ज्ञान-विज्ञान, न वर्णन है प्रासंगिक।

विषय सृजन की रहें, विषमताएँ सामाजिक।।1।।

सुनिए सबकी बात पर, रहे सहज अभिव्यक्ति।

तथ्यपरक हो दृष्टि भी, करें न अंधी भक्ति।।

करें न अंधी भक्ति, इसी में है अपना हित।

निर्णय का अधिकार, स्वयं सँग रखें सुरक्षित।।

कुछ करने के पूर्व, उचित को हिय…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on November 4, 2024 at 8:00pm — 9 Comments

एक ही सत्य है, "मैं"

एक ही सत्य है, "मैं"

एक ही सत्य है, "मैं"

श्वेत हूँ मैं ,

और श्याम भी मैंं ।

मैं ही क्रोध हूँ,

और काम भी मैं।

उस ईश्वर का

मैं रूप नहीं,

स्वयं ईश्वर हूँ,

मैं दूत नहीं।

एक ही सत्य है, "मैं"

कर्म भी मैं हूँ,

और फल भी मैं,

धर्म भी मैं,

और अधर्म भी मैं।

कर्ता भी मैं,

और कांड भी मैं,

विपत्ति भी मैं,

और समाधान भी मैं।

तुम जितना

मुझमें समाओगे,

उतना ही

मुझको…

Continue

Added by AMAN SINHA on November 2, 2024 at 5:56am — No Comments

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२



और कितना बता दे टालूँ मैं

क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)

छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को

ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)

तू मुझे क़ैद करके मानेगा

क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)

ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे

ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)

ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं

मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)

पाँव में एक दिन जगह देगा

क्यों न सर पे उसे…

Continue

Added by सालिक गणवीर on October 31, 2024 at 4:35pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212 

 

इस तमस में सँभलना है हर हाल में 

दीप के भाव जलना है हर हाल में

  

हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं

एक विश्वास पलना है हर हाल में 

   

एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे

इन चरागों को जलना है हर हाल में 

   

निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये 

मन से मन तक टहलना है हर हाल में 

   

देह को देह की भी न अनुभूति हो

मोम जैसे पिघलना है हर हाल में 

    

अल्पनाओं सजी गोद में बैठ कर

दीप को मौन बलना है…

Continue

Added by Saurabh Pandey on October 29, 2024 at 9:30pm — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service