२२१ २/१२२ /२२१ २/१२२
.
मेरा जह्न बुन रहा है, हर रब्त रब्त जाले,
पढता ग़ज़ल मै कैसे, लगे हर्फ़ मुझ को काले.
...
मेरी धडकनों का मक़सद मेरी जिंदगी नहीं है,
के ये जिंदगी भी कर दी किसी और के हवाले.
...
मेरी नाव डूबती है, तेरे साहिलों पे अक्सर,
मुझे काश इस भँवर से तेरी आँधियाँ निकाले.
...
अगर आ सके, अभी आ, तुझे वास्ता ख़ुदा का,
मेरा दम निकल रहा है, मुझे गोद में समा ले.
...
रहा देर तक भटकता किसी छाँव के लिए वो,…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on November 19, 2013 at 3:25pm — 24 Comments
जन्मदिन पर सबसे विगत में हुई भूलों के लिए क्षमा मांगते हुए "दोहे पुष्प" समर्पित है
अडसठ बसंत में मुझे,मिला सभी का प्यार,
गुरुवर अरु माँ-बाप का, वरदहस्त आधार |
सद्गुरु को मै दे सकूँ, ऐसी क्या सौगात,
चरण पखारूँ अश्क से,इतनी ही औकात |
समर्पण निःशेष रहे, तुम मेरे आधार,
तुमसे तुमको मांग लू,करे अगर स्वीकार |
जन्म दिवस पर दे रही,माँ मुझको आशीष
सद्कर्मी पथ पर चलूँ, भला करे जगदीश |
घर पर सब…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2013 at 10:30am — 39 Comments
गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
मेरी चिरैया कितना उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 19, 2013 at 10:30am — 47 Comments
सैलाब
अश्कों के बहते सैलाब से जूझते
जब-जब उस आख़री खत को पढ़ा
बेचैन दुखती आँख से मेरी , हर बार
काँपता आँसू वह तुम्हारा था टपका ...
कहती थी, खुदा से बात की है तुमने
सुख-दुख हमेशा साझा रहेगा हमारा
अच्छा था फ़ैसला यह तुम्हारे खुदा का
खुश हूँ, तुम्हारा दुख तो अब मेरा रहेगा।
कितनी बातें थीं बाकी अभी तो करने को
सिर्फ़ मौसम पर बातें करने के अलावा
दुहरा दिया क्यूँ यादों ने वह किस्सा…
ContinueAdded by vijay nikore on November 19, 2013 at 7:00am — 26 Comments
झाड़
खामोश और बेकार
न पौधा न पेड़
न छाया न आराम न हवा
सिवाय जंगली छोटे कसैले- खटमिट्ठे फल
जो भूख नही मिटाते इंसान की
और पशु की भूख
वह कभी मिटती नहीं
झाड़
एक आस जरूर देता है
काँटे सी चुभती आस
किसी के पुकारने की
उलझा है दुपट्टा काँटे मे रात -दिन
उफ ये रात
सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा
घूरता हुआ दिन
भभकता हुआ सूरज
धकेलता है दिन अकेला
कोई तो रास्ता हो
तर्क-…
ContinueAdded by वेदिका on November 19, 2013 at 12:25am — 32 Comments
फ़ुर्कत की आग दिल में लिए जल रहा हूँ मैं।
यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं॥
आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,
इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥
संजीदा कब हुआ है मुहब्बत में तू मेरी,
हरदम तेरी नज़र में तो पागल रहा हूँ मैं॥
तू तो भुला के मुझको बहुत दूर हो गया,
तन्हाइयों के बीच मगर पल रहा हूँ मैं॥
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 18, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
1. लच्छो
लच्छो तेरा प्यार अब, रग दौड़े बन खून ।
हृदय की तू ही कंपन, तुझ बीन सब शून ।।
तुझ बीन सब शून, प्यार जीवन संवारे ।
तू प्यार की मूरत, प्रेम का मै मतवारे ।।
तन तेरा चितचोर, मन की तुम तो सच्चो ।
तू जीवन संगनी, मेरी दुलारी लच्छो ।
2. नेता कहे
सारे नेता कह रहे, अब ना होंगे दीन।
मिट जायेंगे दीनता, हम से रहो न खिन्न ।।
हम से रहो न खिन्न, कुर्सी हमको दिलाओ ।
मुफ्त में सब देंगे, कटोरा तुम ले आओ ।।
करना…
Added by रमेश कुमार चौहान on November 18, 2013 at 10:30pm — 7 Comments
लाल लहू से अपने जिसने,देश की धरती कर दिया
नित्य नई खोजों में,जीवन के सुख छोड दिया
वेा भारत का वीर सपूत,गुमनामी में खो गया
देश को दे कर नये आयाम वेा बेनाम हो गया
शिकार राजनीति का, भारत रत्न हो गया।
ध्यानचंद जैसा जादूगर, आज बेनाम हो गया
विदेशी धरती पर जो हुआ विजेता, कपिल गुम हो
खेलों के कितने मसीहा का दीपक अब बुझ गया
रत्नो के रत्न कितने,वो गुमनामी में खो गया
शिकार राजनीति का भारत रत्न होगया।
आजादी…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 18, 2013 at 9:00pm — 7 Comments
छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए
जी ना सकेंगे अब हम किसी के लिए
तेरा मिलना बिछड़ना तो एक ख्वाब था
हम तो तरसते रहे तेरी हंसी के लिए
तेरी जुदाई से बढ़कर कोई गम नहीं
जख्म काफी है ये ही मेरी जिंदगी के लिए
जिसे खुदा माना उसी ने ना समझा अपना
अब कोई खुदा नहीं यहाँ बंदगी के लिए
बहुतो को क़त्ल होते देखा उसके हाथों तो जाना
बहुत नाम कमाया है उसने अपनी दरंदगी के लिए
फिर आज एक हसीं को…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:00pm — 10 Comments
एक शाम खड़ा था अपने घर के बाहर तभी एक गाड़ी मेरे घर के करीब आ रुकी, मेरे पडोसी कि गाड़ी थी ,अभी कल ही उनके घर में उनकी एक घनिष्ठ रिश्तेदार जो उनके यहाँ रहकर ही अपना इलाज करा रही थीं उनका निधन हो गया था जिसकी सूचना मुझे भी मिली थी , खैर कार का दरवाज़ा खुला और वो लोग बाहर निकले अपने हालचाल को व्यवस्थित किये हुए और मुझे देख कर हलकी सी मुस्कान में मुस्कराये मैंने पूछा ," कहीं बाहर गए थे आप लोग ? "
उन्हों ने कहा ," तनाव बहुत ज्यादा हो गया था तो सोचा चलो फ़िल्म देख कर आते हैं ।…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on November 18, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
पार गगन
पंक्षी सा उड़ जाऊं
पंख पसार ...(१)
मीठी वानी
कुटिल सयानी सी
मन की काली...(२)
है मतवाली
फिरती डाली डाली
कोयल ये काली ...(३)
------अलका गुप्ता -----
नोट - यह मेरी स्व रचित मौलिक रचना है
Added by Alka Gupta on November 18, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
आता रहे
जीवन में यह
दिन बार बार
स्वप्न करे साकार
महका हो हर आज
आदरणीय योगराज
आपके विकास में
भव्यता विलास में
बूँद बने सागर
सबके प्रिय प्रभाकर
मैं और क्या कहूं ?
भावना में क्या बहूँ ?
खुशिया हज़ार हो
शांति भी अपार हो
मै निहारता रहूँ
या पुकारता रहूँ
स्वामी जो जगत के
प्रभु जो प्रणत के
उनकी जय जय करू
और यह विनय करू
आता रहे जीवन में
यह…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:16pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम
***********************************
तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम
तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम
बहुत ठोकर मिली…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 1:30pm — 42 Comments
1212 1122 1212 22
...
किसी के दिल से, निगाहों से जो उतर जाए,
भला वो शख्स अगर जाए तो किधर जाए.
...
बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,
कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.
...
सुलग रहे है जुदाई की आग में हम तुम,
इस आरज़ू में जले है, ज़रा निखर जाए.
...
पता नहीं हैं हुई क्या हमारी मंज़िल अब,
निकल पड़े हैं जिधर लेके रहगुज़र जाए.
...
सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से,
कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 18, 2013 at 8:38am — 17 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
---------
याँ जो बंदे ज़हीन होते हैं
क्यूँ वो अक्सर मशीन होते हैं
बीतना चाहते हैं कुछ लम्हे
और हम हैं घड़ी न होते हैं
प्रेम के वो न टूटते धागे
जिनके रेशे महीन होते हैं
वन में उगने से, वन में रहने से
पेड़ खुद जंगली न होते हैं
उनको जिस दिन मैं देख लेता हूँ
रात सपने हसीन होते हैं
खट्टे मीठे घुलें कई लम्हे
यूँ नयन शर्बती न होते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2013 at 10:52pm — 34 Comments
बेटी..रजनी ! तुम्हारे मामाजी के लड़के से, तुम्हारी ननद याने अपनी गायत्री की शादी, तय हो ही गई, मैं बहुत खुश हूँ, बस..! उन लोगो से लेनदेन की बात संभाल लेना, तुम तो जानती ही हो. आजकल महंगाई आसमान छू रही है.......सुलोचना जी ने अपनी बहु को बेटी बनाकर, बड़े ही प्यार से कहा..
जी हाँ..! माँ जी..महंगाई तो पिछले वर्ष भी आसमान से टिकी हुयी थी, जब आपने मेरे मायके वालों से लाखों का सोना और पूरी गृहस्थी का सामान मांग लिया था..खैर,…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on November 17, 2013 at 9:28pm — 38 Comments
11212- 11212- 11212- 11212
मेरी चाहतें यूँ निखार दे, मेरी शाम कोई सँवार दे
सरे बाम चाँदनी है खिली, मेरे दिल पे कोई उतार दे
करे रौशनी इन अँधेरो मे, ये चिराग यूँ जले उम्र भर
वो ज़िया सा ताब दे ऐ खुदा, उसे चाँद सा तू वक़ार दे
उसे देखता हूँ चमन-चमन, कि रविश-रविश मैं करूँ कियाम
कभी खुश्बुएँ वो बिखेर दे, मुझे शबनमी सी फुहार दे
वो खुली ज़मीन खिला चमन, वो हवा, महकती हुई फ़िज़ा
वही साअतें करे फिर अता, मुझे फिर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 17, 2013 at 6:06pm — 38 Comments
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम,
मदरसा बना या मदीना बना दे,
मुझे कीमती इक नगीना बना दे,
बिना मय के जैसे तड़पता शराबी,
समंदर सा प्यासा हसीना बना दे,
मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,
अगर हो सके वो महीना बना दे,
सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,
मरीना = मुलायम कपडा
लिखा हो जहाँ नाम तेरी कहानी,
ह्रदय की धरा को सफीना बना दे....
सफीना : किताब
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 4:30pm — 17 Comments
देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया
कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया
इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया
मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया
देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे
बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया
वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले
दीप जलाकर प्रेम का…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 17, 2013 at 2:13pm — 17 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on November 17, 2013 at 1:30pm — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |