1. लच्छो
लच्छो तेरा प्यार अब, रग दौड़े बन खून ।
हृदय की तू ही कंपन, तुझ बीन सब शून ।।
तुझ बीन सब शून, प्यार जीवन संवारे ।
तू प्यार की मूरत, प्रेम का मै मतवारे ।।
तन तेरा चितचोर, मन की तुम तो सच्चो ।
तू जीवन संगनी, मेरी दुलारी लच्छो ।
2. नेता कहे
सारे नेता कह रहे, अब ना होंगे दीन।
मिट जायेंगे दीनता, हम से रहो न खिन्न ।।
हम से रहो न खिन्न, कुर्सी हमको दिलाओ ।
मुफ्त में सब देंगे, कटोरा तुम ले आओ ।।
करना मत कुछ काम, आओ तुझे संवारे ।
मुफ्तखोर हो दीन, प्रयास करेंगे सारे ।।
3. भाग्य चमकाओ
अपना अपना भाग्य है, काहे कोई रोय ।
ऐसे भाग्यशली तो, कोई कोई होय ।
कोई कोई होय, जो बीन मांगे पाये ।
समय अर्थ सम्मान, छप्पड़ फाड़ के आये ।।
स्वार्थ की राजनीति, दिखाये ऐसा सपना ।
रहो सदा अनुकूल, भाग्य चमकाओ अपना ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
छंदों पर प्रयास करना सही है... पर शिल्प निभाते हुए शब्दों और भाषा व्याकरण पर भी ध्यान देना ज़रूरी है
कुण्डलिया छंद तो ओबीओ के सर्वप्रिय छंदों में से एक है, आपको मंच पर कई उन्नत उदाहरण व आलेख मिलेंगे इस छंद पर..उन सबको ध्यान से देखते चलें...
छंद पर इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय बधाई आपको///सादर
आदरणीय रमेश जी, कुण्डलिया छंद विधान पर पुन: दृष्टिपात करें.शेष आदरणीय सौरभ जी ने कह ही दिया है............
आप इस मंच पर एक अरसे से हैं अब. कई छंदोत्सव आयोजन सम्पन्न हो चुके हैं आपके सामने न !
आप छंद पर काम कररहे हैं यह देख कर आत्मीय सुख हुआ है. लेकिन छंदो के नियम पर आग्रही बनना पड़ेगा.
शुभकामनाएँ
chauhan jee
aap se bhavanugaminee shilp kee apechcha hai ssneh
आदरणीय रमेश जी सादर
आपकी इस प्रस्तुति के भाव पक्ष के लिए बहुत बहुत बधाई
किन्तु शिल्प की दृष्टि से बहुत त्रुटियाँ हैं
गुरुजन इस पर अपनी राय अवश्य रखेंगे
सादर शुभकामनाएं
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