रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब
माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब
लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ
सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब
वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए
यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब
बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें
याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब
नेताओं की सुहबत का असर उनपे देखिये
देकर जबान वो भी पलटने लगे हैं अब
मशरूफ “दीप” सब हैं क्या…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 24, 2013 at 9:07pm — 13 Comments
सुनो उससे कहना...
ठंड आ गई है ...
जरा मेरे अहसासों को
धूप दिखा दें ....
और ख्यालों को भी
सूखा दें ...
ठंड आ गई है ...
रिश्तों की गर्माहट
बहुत जरूरी है ...
गुलाबी मौसम की तरह ...
जिंदगी भी हँसेगी ...
ठंड आ गए है...
जरा अहसासों को धूप दिखा दो...
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Amod Kumar Srivastava on November 24, 2013 at 8:50pm — 12 Comments
बेघर हुए हैं ख़्वाब धमाकों के साथ साथ।
वहशत भी ज़िंदा रहती है साँसों के साथ साथ॥
जब रौशनी से दूर हूँ कैसी शिकायतें,
अब उम्र कट रही है अँधेरों के साथ साथ॥
दरिया को कैसे पार करेगा वो एक शख़्स,
जिसने सफ़र किया है किनारों के साथ साथ॥
वीरान शहर हो गया जब से गया है तू,
हालांकि रह रहा हूँ हजारों के साथ साथ॥
पत्ता शजर से टूट के दरिया पे जो गिरा,
आवारा वो भी हो गया मौजों के साथ…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 24, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
जम्हूरियत के बुर्ज पर
बैठा सियासत का गिद्ध
फेरता है चारो ओर
पैनी निगाह
जो है अप्रेरित
भूख से,
वह ढूंढता नहीं है
लाश,
भिड़ाता है तरकीब
लाश बिछाने की..
सत्ता की अंध महत्वकांक्षा में
ये निगाह रहती है
चिर अतृप्त.
चुनावों के मौसम में बढ़ जाती
आवाजाही गिद्धों की .
.......... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 24, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
दूर बैठे थे उनसे कभी हम आज कितने करीब आ गये
दिल ने किया कब दिल से बाते इससे अंजान हो गये
बातो ही बातो हम एक दूजे की नजरो में खो गये
मगर लगी जो नजर प्यार पर एक दूजे से दूर हो गये
कभी अपने लगते थें जो रास्ते आज बेगाने हो गये
किसकी जुबान से निकला क्या हम ढूढ़ते रह गये
चॉंद ढ़ले तक करते बात जो अब चॉंद निकलते सो गये
एक झलक पाये उनका अब लगता वर्षो हो गये
एक ही तो प्यार था मेरा वो जाने कहॉं अब खो गये
कभी अपने लगते थे जो रास्ते आज बेगाने…
Added by Akhand Gahmari on November 24, 2013 at 11:38am — 8 Comments
पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |
सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||
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हाय ! कौन आकर्षण में
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से
खेलन लगे हैं रास ||
घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज
गुंफन के सब फांस ||
करने लगे..... झंकृत...…
Added by Alka Gupta on November 23, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
कभी गिरते कभी उठते कभी सभलना सीख जाते हैं ।
मंज़िल उनको मिलती है जो चलना सीख जाते हैं ।
नये हर एक मौसम में नया आगाज़ करते हैं ,
वक्त के साथ जो खुद को बदलना सीख जाते हैं ।
बनके दरिया वो बहते हैं और सागर से मिलते हैं ,
जो बर्फीले सघन पत्थर पिघलना सीख जाते हैं ।
उन्होंने लुत्फ़ लूटा है बहारों कि इबादत का ,
बीज मिट्टी में मिट मिट कर जो मिलना सीख जाते हैं ।
अजब सौन्दर्य झलकाते बिखेरें रंग और खुशबू ,
जो काँटों और…
Added by Neeraj Nishchal on November 23, 2013 at 12:48pm — 22 Comments
भंवरों ने घेरा
पहुंचाया अवसादों की गर्तो में
संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके
उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने
कौन शक्ति? जो हर क्षण
अपनी ही ओर हमें है खींच रही
कल से खींचा,आज छुड़ाया
जो आयेगा वो भी छुटेगा
नश्वरता में इक दिन जीवन ही डूबेगा
क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय
साश्वत खोज में जब भी तड़फा है
मोहवार्तों ने आलिंगन कर
जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।
खार उदधि की हर विंदु…
ContinueAdded by Vindu Babu on November 23, 2013 at 10:30am — 20 Comments
बह्र--222 221 122
लुट लुट कर बदहाल रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ
जीवन से ता उम्र लडा मैं
हथियारों को डाल रहा हूँ
किस्मत ने भी खूब नचाया
मैं पिटता सुरताल रहा हूँ
सब हमको ही बेच रहे थे
सस्ता बिकता माल रहा हँ
मकडी मरती आप उलझकर
खुदको बुनता जाल रहा हूँ
मरजाऊँ तो आँख न भरना
मैं अश्कों का ताल रहा हूँ
कर बैठा मैं प्यार अनौखा
रो रोकर बे-हाल रहा हूँ
मौलिक व…
Added by umesh katara on November 23, 2013 at 9:30am — 12 Comments
ढूँढती है एक चिड़िया
इस शहर में नीड़ अपना
आज उजड़ा वह बसेरा
जिसमें बुनती रोज सपना
छाँव बरगद सी नहीं है
थम गया है पात पीपल
ताल, पोखर, कूप सूना
अब नहीं…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on November 23, 2013 at 6:28am — 35 Comments
मासूम सी हूँ मैं .... नाजुक सी |
अभिलाषा भी .... एक नन्हीं सी |
जीवन ये जो ...दिया विधाता ने |
जियूँ ना जीवन क्यूँ अधिकारी सी|| (1)
लगा था मुझे .. मैं भी .. इक इन्सान हूँ |
डूबी जिन्दगी क्यूँ आँसुओं में .. हैरान हूँ |
बता दो कोई .. इस दर्द की दवा क्या है ?
या मैं सिर्फ .. हवस का एक सामान हूँ || (2)
मिल ना पाए सजनी कोई…
Added by Alka Gupta on November 22, 2013 at 10:50pm — 4 Comments
अब ये तन्हाइयाँ हमें डरातीं हैं,
अक्सर तुम्हारी याद दिलातीं हैं।
ये होंठ ख़ामोश रहते हैं अब तो
और आँखें बस आँसू बहातीं हैं।
तुम मुझसे इतने दूर हो गए क्यूँ
कि न ख़बरें तुम्हारी पास आतीं हैं।
यूँ तो कुछ भी नहीं रहा पहले-सा
जाने क्यूँ तुम्हारी यादें सतातीं हैं।
हर दिन बीतता है तेरे इंतज़ार में,
न तू और न हिचकियाँ ही आतीं हैं।
तुझे देखे हुए,सुने हुए अरसा बीता,
पर तेरी बातें मुझे अब भी रूलातीं हैं।
अपनी मुहब्बत का यकीं दिलाऊँ तुझे कैसे,
ये…
Added by Savitri Rathore on November 22, 2013 at 8:21pm — 5 Comments
एक सिवा मै प्रेम के , करूँ न दूजी बात ।
प्रेम मेरी पहचान हो , प्रेम हो मेरी जात ।
आती जाती सांस में , आये जाये प्रेम ।
प्रेम हो मेरी साधना , प्रेम बने व्रत नेम ।
प्रेम कि लहरें जब उठें , बहे अश्रु की धार ।
प्रेम की वीणा जब बजे , जुड़े ह्रदय के तार ।
प्रेम कि पावन धार में, मेरा मै बह जाय ।
मेरी अंतरआत्मा , प्रीतम से मिल जाय ।
नाची मीरा प्रेम में , प्रेम में मस्त कबीर ।
प्रेम खजाना जब मिला , हुए फ़कीर…
Added by Neeraj Nishchal on November 22, 2013 at 8:13pm — 7 Comments
वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं
दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं
चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है
विरह की आग में जलने के बाद आते हैं
न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों
तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं
हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद
हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं
तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से
तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 22, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
शरीर तोड़ श्रम के बाद
थक-हार लेट गया
खेत की मेढ में पड़ी,
टूटी खटिया पर..
सर्द हवाओं के बीच
गुनगुनी धूप से तन को राहत मिल रही थी..
पर मन को सुकून नही
वो गुनगुना स्पर्श नही
जो कभी किसी स्पर्श से मिलता था..
सोचा..उठूँ, थोडा और श्रम करूँ
फिर बेजान हो इक लाश की तरह घर पहुँच कर,
बिस्तर पर छोड़ दूंगा
जो कल भोर होते ही
फिर से जी उठेगा...
चल घर तक चल..
घर राह तक रही है तेरी बूढी…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on November 22, 2013 at 1:30pm — 29 Comments
आह ! वह सुख ----
पावसी मेह में भीगा हुआ चंद्रमुख I
यौवन की दीप्ति से राशि-राशि सजा
जैसे प्रसन्न उत्फुल्ल नवल नीरजा I
मुग्ध लुब्ध दृष्टि ----
सामने सदेह सौंदर्य एक सृष्टि I
अंग-प्रत्यंग प्रतिमान में ढले
ऐसा रूप जो ऋतुराज को छले I
नयन मग्न नेत्र------
हुआ क्रियमाण कंदर्प-कुरुक्षेत्र I
उद्विग्न प्राण इंद्रजाल में फंसे
पंच कुसुम बाण पोर-पोर में धंसे I
वपु धवल कान्त…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 1:06pm — 32 Comments
कालीदास
मौन शास्त्रार्थ में
खुले पंजे के जवाब में
मुक्का दिखाते हैं
विद्वान अर्थ लगाते हैं
उन्हें ख़ुद पता नहीं
वो शास्त्रार्थ जीत जाते हैं…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 1:00pm — 28 Comments
प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।
सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।
कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।
अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।
प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 12:58pm — 13 Comments
आँख से आँख वो ऐसे कुछ लड़ा गयी ।
नज़र पे अज़ीब सी कशिश वो चढ़ा गयी ।
झोकें सी गुज़री जब मेरे करीब से ,
साँसों को थामकर धड़कनें बढ़ा गयी ।
आरज़ू बड़ी थी पर कुछ भी न कह सका ,
बोलने के वक्त आवाज़ लड़खड़ा गयी ।
के घायल खड़ा रहा बनके शिकार मै ,
तीरे नज़र मेरे जिगर पे गड़ा गयी ।
लगा एक पल जैसे कयामत करीब हो ,
मेरी बायीं आँख तभी फड़फड़ा गयी ।
मुड़ के मेरी ओर फिर यूँ मुस्करायी ,
ज्यूँ मेरी बेबसी हंसी में उड़ा…
Added by Neeraj Nishchal on November 22, 2013 at 11:30am — 4 Comments
बताओ तो, कि कैसा लगता है ...
किसी अंजान जगह पर
किसी अंजान सफर पर
किसी अंजान का साथ
खुशी के वो अंजान पल
साथ गुज़ारना, साथ चलना
वो एहसास, वो पल
बताओ तो, कि कैसा लगता है ....
और फिर अचानक ...
एक दिन
किसी अंजान का बिछड़ जाना
किसी अंजान बातों पर
किसी अंजान कारणो पर
फिर लौट कर न आना
सिर्फ इंतज़ार रह जाना
किसी से कुछ न कह पाना
सिर्फ और सिर्फ यादें रह जाना
बताओ तो, कि…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on November 21, 2013 at 8:17pm — 8 Comments
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