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October 2012 Blog Posts (167)

सांस के क़दमों से पूछियें .......

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कितनी ख़ास ओ आम ज़िन्दगी 

पेट  की  ग़ुलाम  ज़िन्दगी
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मिल गयी तो  सुबह हो  गयी 
खो गयी तो शाम ज़िन्दगी 
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हर गरीब अमीर के लिए 
बन गयी इक काम ज़िन्दगी
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सांस…
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Added by ajay sharma on October 12, 2012 at 5:21pm — 3 Comments

जमें रहना है

तालाब में मगरमच्छ

शिकार की तलाश में हैं

गिरगिट अपना रंग बदले

दबे पाँव जमे हैं

मकड़ियाँ जाल बुनने में

व्यस्त हैं ।

इन सबके बीच

फूलों को  फर्क नहीं पड़ता…

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Added by नादिर ख़ान on October 12, 2012 at 4:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल"बह्र ए खफीफ"

======ग़ज़ल=======

बह्र ए खफीफ

वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २



यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी 

इक मुलाक़ात की दुआ कैसी



जख्म दिल के हमारे भरने को

चश्म छलका रहे दवा कैसी



रात…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 3:38pm — 9 Comments

नेता है तो देश है..!

नेता है तो देश  है..!

 

(courtesy Google…

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Added by MARKAND DAVE. on October 12, 2012 at 9:00am — 6 Comments

कुरंग (बैरवे) पर एक प्रयास.

देख पिया को सम्मुख,मन हर्षाय,

देखे मुख को गौरी,नयन घुमाय/

 

पागल प्रेम दिवानी,पिया रिझाय,

सुधबुध खोकर अपनी,झूमति जाय/

 

हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,

बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय/

 

मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,

व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/

 

प्रेम पगे दिल आयी,मिलन कि चाह,

प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह/

Added by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 11:14pm — 17 Comments

ग़ज़ल

(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन

फाइलातुन फइलातुन फइलातुन  फेलुन.

२१२२     ११२२     ११२२    २२)

 

जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं

हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं

 

देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं

जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं

 

प्यार  है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही

हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं

 

माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को

रिश्तेदारों के…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 11:00pm — 22 Comments

हाइकु

दस हाइकु 
***********
जहर धीमा 
परोसते चेनल 
चरम सीमा 
-------------
चपलता है 
तन-मन स्वस्थ है 
सफलता है 
--------------
चेहरा भाव 
मन की परिस्थिती 
हंसते घाव 
--------------
जंगली फूल 
लान  की हरियाली 
क्यूँ प्रतिकूल ?
--------------
बहती नदी 
कटते यूँ किनारे 
यही है…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 11, 2012 at 8:36pm — 17 Comments

मुक्तिका; बेवफा से ... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका;

बेवफा से ...

संजीव 'सलिल'

*

बेवफा से दिल लगा के, बावफा गाफिल हुआ। 

अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।



तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।

हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?



कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।

फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।



हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-

ख्वाब था दिलकश,  हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।



'सलिल' ने माना था भँवरों को  कँवल का मीत पर-

संगदिल…

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Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2012 at 7:59pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अनसुलझी पहेली

रोज की तरह मंदिर के सामने वाले पीपल के पेड़ की छाँव में स्कूल से आते हुए कई बच्चे सुस्ताने से ज्यादा उस बूढ़े की कहानी सुनने के लिए उत्सुक  आज भी उस बूढ़े के इर्द गिर्द बैठ गए और बोले दादाजी दादा जी आज भूत की कहानी नहीं सुनाओगे ?नहीं आज मैं तुम्हें इंसानों की कहानी सुनाऊंगा बूढ़े ने कहा-"वो देखो उस घर के ऊपर जो कौवे मंडरा रहे हैं आज वहां किसी का श्राद्ध मनाया  जा रहा है, उस लाचार बूढ़े का जो पैरों से चल नहीं सकता था पिछले वर्ष उसकी खटिया जलने से मौत हुई थी उसकी खाट के पास उसकी बहू ने…

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Added by rajesh kumari on October 11, 2012 at 11:10am — 28 Comments

सफ़ेद गुलाब

यूं ही तोड़ लिया था उस दिन,

एक सफ़ेद गुलाब बागीचे से,

मैंने तुम्हारे लिए/

कि सौंप कर तुम्हें..

तुमसे सारे भाव मन के

कह दूंगा,

नीली नीली स्याही सा

कोरे कागज़ पर बह दूंगा/

हो जाऊँगा समर्पित ,

पुष्प की तरह/

फिर तुम ठुकरा देना

या अपना लेना/

मगर फिर तुम्हारे सामने...

शब्द रुंध गये/

स्याही जम गयी/

धडकनें बढ़ गयीं/

सांस थम गयी/

मैं असमर्थ था ..

तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों,

का उत्तर देने में/

या कि उस लिखे हुए उत्तर के…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on October 11, 2012 at 9:12am — 10 Comments

गज़ल

गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !

 

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

जरा  खबर  ना  हुई  बड़ा  लम्हा गुज़र गया !

 

अमृत  ही  पाने  को निकला था सफर पे मै !

पीछे  मधु  की  बूंदों  के  सारा  सफर गया !

 …

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Added by पीयूष द्विवेदी भारत on October 10, 2012 at 10:30pm — 18 Comments

तेरी यादों का श्रृंगार सजा

तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.

वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.

कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.

मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!

Added by Raj Tomar on October 10, 2012 at 7:22pm — 12 Comments

"ग़ज़ल" बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ

========ग़ज़ल=========



बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ

वजन- १ २ २ - १ २ २ -१ २ २ - १ २



मुहब्बत है तो फिर जताओ जरा

ये पर्दा हया का उठाओ जरा



अजी मुस्कुराते हो क्यूँ आह भर

है क्या राज दिल में बताओ जरा…



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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 1:55pm — 9 Comments

राष्ट्रीय दामाद से पंगा? (व्यंग गीत)

In practice, a banana republic is a country operated as a commercial enterprise for private profit, effected by the collusion (मिलीभगत) between the State and favoured monopolies, whereby the profits derived from private exploitation of public lands is private property, and the debts…

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Added by MARKAND DAVE. on October 10, 2012 at 1:36pm — 6 Comments


प्रधान संपादक
शक्ति पूजा (लघुकथा)

गाँव की विधवाओं को सरकार की ओर से सहायता राशि वितरित की जा रही थी. तभी एक नौजवान विधवा अपने हिस्से की धनराशि लेने मंच की ओर बढ़ी, जिसे देख नेता जी ने सरपंच के कान में धीरे कहा,

"ये लड़की कौन है ?"

"
ये नंदू लुहार की बहू है नेता जी."

"अरे भई इसको तो बाकियों से ज्यादा पैसा मिलना चाहिए था."

"वो क्यों नेता…

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Added by योगराज प्रभाकर on October 10, 2012 at 10:00am — 34 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
सप्त पदी को पार करेंगे

सप्त पदी को पार करेंगे (०९-१०-२०१२)

 

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

चंचल चित्त माधुरी शोखी

और कभी गहरी ख़ामोशी,

प्रिय की हर इक भाव लहर से

अपना नव शृंगार करेंगे...

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

प्रिय के हिय में मुस्काएंगे

नयन प्रीति भर इतरायेंगे,

कर्म क्षेत्र में…

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Added by Dr.Prachi Singh on October 9, 2012 at 10:00pm — 34 Comments

कैसे कह दूं

कैसे कह दूं हिंद हूं मैं

चीन हूं या अमरीका हूं

यूरोप शुष्क भावों की धरती

या अंध देश अफ्रीका हूं

प्रिय विछोह के विरह ताप से

सहस्‍त्र युगों तक तप्‍त रही मैं

निर्जनता के दु:सह शाप से

सदियों तक अभिशप्‍त रही मैं

लखकर तब मेरे विषाद को

दृग केशव के भर आए थे

असंख्‍य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर

अश्रु के अर्ध्‍य चढ थे

मुरली से फिर जीवन फूटा

उल्‍लासित दशों दिशाएं थी

ओढ ओस की झीनी…

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Added by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 3:58pm — 9 Comments

ग़ज़ल"कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे"

===========ग़ज़ल===========

बहरे- हजज

वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २

सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे

कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे



गरीबी ने मिटा डाला…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 2:30pm — 19 Comments

कुछ भी हो सकता है

कुछ भी हो सकता है

जंगल राज है कुछ न कहो

ख़ामोशी अपनाओ

बापू के तीन बंदरों जैसे

ज्ञानी बन जाओ

अच्छा देखो न बुरा ही देखो

न ही सुनो न कहो

सुखी जो रहना चाहते हो

मूक दर्शक बन जाओ

वर्ना कुछ भी हो सकता है

सब कुछ लुट सकता है

मौत से डर नहीं लगता तो

हरगिज़ न घबराओ

फैसला आपके हाथ में है

कैसे जीना चाहते हो

इज्जत अगर है प्यारी

मेरे साथ आओ

मेरे साथ आ....…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 9, 2012 at 1:17pm — 6 Comments

"ग़ज़ल"(बहरे- हजज)

===========ग़ज़ल===========

बहरे- हजज

वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २



सुबह भी स्याह जिसकी वो सुहानी शाम क्या देखे

वो मारा फुर्कतों का रात का अंजाम क्या देखे



लगा कर हौसलों के पर परिंदा इश्क का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 12:30pm — 14 Comments

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