For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यूं ही तोड़ लिया था उस दिन,
एक सफ़ेद गुलाब बागीचे से,
मैंने तुम्हारे लिए/
कि सौंप कर तुम्हें..
तुमसे सारे भाव मन के
कह दूंगा,
नीली नीली स्याही सा
कोरे कागज़ पर बह दूंगा/
हो जाऊँगा समर्पित ,
पुष्प की तरह/
फिर तुम ठुकरा देना
या अपना लेना/
मगर फिर तुम्हारे सामने...
शब्द रुंध गये/
स्याही जम गयी/
धडकनें बढ़ गयीं/
सांस थम गयी/
मैं असमर्थ था ..
तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों,
का उत्तर देने में/
या कि उस लिखे हुए उत्तर के लिए,
सवाल गढ़ने में/
लौट आया,
और दफ्न कर दिया फिर उस सफ़ेद गुलाब को,
डायरी के दो पृष्ठों के बीच/
वहीँ उड़ेल दी स्याही, सारे भाव,
सारे शब्द/
तब से अब तक
वो दौर जारी है,
रोज़ एक सफ़ेद गुलाब दम तोड़ता है
मन के दो पृष्ठों की बीच/
और फैलती है...स्याही आज भी/
बहते हैं भाव आज भी/
मगर असमर्थ हैं,
इस अकेलेपन के पृष्ठों को रंगने में/
आज भी...अतृप्त है कुछ....


-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 662

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seema agrawal on October 12, 2012 at 11:30pm

तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों, 
का उत्तर देने में/
या कि उस लिखे हुए उत्तर के लिए,
सवाल गढ़ने में/......बहुत खूब .....भावपूर्ण प्रस्तुति ..बधाई पुष्यमित्र जी 

Comment by Rekha Joshi on October 12, 2012 at 10:08pm

मगर फिर तुम्हारे सामने...
शब्द रुंध गये/
स्याही जम गयी/
धडकनें बढ़ गयीं/
सांस थम गयी/
मैं असमर्थ था ..,सुंदर भाव पुष्यमित्र जी ,बधाई 

Comment by Pushyamitra Upadhyay on October 12, 2012 at 7:39pm

प्रभाकर सर, पाण्डेय सर, अविनाश सर...आप सभी का आशीष पाकर बहुत प्रसन्न और गौरवान्वित अनुभव आकर रहा हूँ...आपके मार्गदर्शन का ह्रदय से आभारी हूँ पाण्डेय सर...आशीष बनाये रखिये अनुज पर

Comment by AVINASH S BAGDE on October 12, 2012 at 7:10pm

तब से अब तक
वो दौर जारी है,
रोज़ एक सफ़ेद गुलाब दम तोड़ता है
मन के दो पृष्ठों की बीच/
और फैलती है...स्याही आज भी/...bhaw poorn.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2012 at 1:56pm

रोज़ एक सफ़ेद गुलाब दम तोड़ता है
मन के दो पृष्ठों की बीच/
और फैलती है...स्याही आज भी/
बहते हैं भाव आज भी/
मगर असमर्थ हैं,
इस अकेलेपन के पृष्ठों को रंगने में/
आज भी...अतृप्त है कुछ....

सही है, भाई. शाब्दिकता को थोड़ा कम करें. भाव-प्रधान रचना हेतु बधाई.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 10:55am

पुष्यमित्र उपाध्याय जी सुन्दर अभिव्यक्ति है - बहुत खूब बधाई स्वीकार करें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 12, 2012 at 9:19am

कोमल भावनाओं से युक्त एक अच्छी रचना, बधाई पुष्यमित्र जी |

Comment by Pushyamitra Upadhyay on October 11, 2012 at 4:59pm

sandeep ji..........rajesh didi....aapka aashish paakar abhibhut hain...truti ke liye kshama chahta hoon ... :)

aasheesh bnaaye rakhiye

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 12:32pm

आदरणीय पुष्यमित्र जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति रची है आपने ह्रदय से बधाई स्वीकारें

मैं भी आदरणीया राजेश कुमारी जी से सहमत हूँ बस वहीँ इक पल था जब पढने में थोडा खटका
बाकी तो रचना के हर प्रष्ठ ने अंत तक बांधे रखा
बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2012 at 10:01am

नीली नीली स्याही सा
कोरे कागज़ पर बह दूंगा/-----क्यूंकि ऊपर के सन्दर्भ को देखते हुए बात अपने विषय में कर रहे हैं तो बह दूंगा नहीं बह लूँगा आएगा 

प्रथम प्रेम निमंत्रण की झिझक हया और पश्चाताप के  सम्मिलित भावों को बड़ी खूबसूरती से उभारा है  आपने इस रचना में बहुत अच्छी लगी बहुत बहुत बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service