For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ग़ज़ल" बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ

========ग़ज़ल=========

बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ
वजन- १ २ २ - १ २ २ -१ २ २ - १ २

मुहब्बत है तो फिर जताओ जरा
ये पर्दा हया का उठाओ जरा

अजी मुस्कुराते हो क्यूँ आह भर
है क्या राज दिल में बताओ जरा

लबों पे गुलों सी हसीं चोट दे
सनम को कभी आजमाओ जरा

है वीरान तुम बिन गुलिस्ताँ मेरा
हँसो फूल बन खिल-खिलाओ जरा 

हुई आज फीकी मेरी जिन्दगी
नए रंग आकर चढाओ जरा

ये हर्फे-मुहब्बत कहे हैं सुनो
ग़ज़ल की तरह गुनगुनाओ जरा

हमें दूर से ही न तरसाओ यूँ
कभी पास आकर सताओ जरा

तेरे नर्म हाथों से बिखरा है गुल
ये जुल्फों में फिर से सजाओ जरा  

पिघल जाए बर्फाब सा मेरा दिल
गले से हमें यूँ लगाओ ज़रा

है तुम बिन अँधेरे मेरे रात दिन
कोई "दीप" आकर जलाओ जरा


संदीप पटेल "दीप"

संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा, जबलपुर (म.प्र.)

Views: 577

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 11:02am

रिवायती रंगत में मलबूस यह ग़ज़ल प्रभावित कर गई भाई संदीप पटेल जी, ढेरों ढेर बधाई.

Comment by MARKAND DAVE. on October 12, 2012 at 9:17am

लबों पे गुलों सी हसीं चोट दे 
सनम को कभी आजमाओ जरा|

 

Very Nice Shri Patel sahab,

Comment by AVINASH S BAGDE on October 11, 2012 at 11:52pm

बहुत खूब संदीप जी मुहब्बत है तो फिर जताओ जरा 
                              ये पर्दा हया का उठाओ जरा ...umda..बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 11:04am

आदरणीय नादिर साहब, आदरणीय हसरत साहब , आदरणीय वीनस सर जी , आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी, आदरणीया राजेश कुमारी जी
आप सभी को सादर प्रणाम सहित बहुत बहुत  धन्यवाद जो आपने नाचीज की ग़ज़ल को न केवल वक़्त दिया बल्कि हौसलाफजाई भी की
अपना ये स्नेह अनुज पर यों ही बनाये रखिये सादर आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2012 at 10:15am

वाह वाह वाह क्या रंगीली  मखमली ग़ज़ल लिखी है अति सुन्दर ये अंदाज़ बनाए रखिये यही वक़्त है तुम्हारा गोड ब्लेस


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 11, 2012 at 2:15am

भाई, कमाल ! किसकी बात करूँ ? छोटी-छोटी बातें कहन को क्या से क्या बना देती हैं !

इन अश’आर पर ढेर सारी दाद लीजिये -

लबों पे गुलों सी हसीं चोट दे
सनम को कभी आजमाओ जरा ..
ये हर्फे-मुहब्बत कहे हैं सुनो
ग़ज़ल की तरह गुनगुनाओ जरा ...
हमें दूर से ही न तरसाओ यूँ
कभी पास आकर सताओ जरा ....

इन शेरों में ग़ज़ब की कसमसाहट बयां हुई है. इस चुहल को बचाये रखना.. .  

मक्ता में तख़ल्लुस का बढिया प्रयोग हुआ है.  लेकिन उला में है  की जगह हैं होना चाहिये न, भाई ? 

खैर, यह सब तो मेरी ओर से चलता ही रहेगा.. .  बधाई-बधाई-बधाई !!

Comment by वीनस केसरी on October 11, 2012 at 1:19am

बहुत खूब संदीप जी एक और आपने अपने 'दीवान' में एक और हीरा जड़ दिया

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 10, 2012 at 11:13pm

bahut khoob deep nji kya ghazal kahi he bahut bahut mubarak ho

Comment by नादिर ख़ान on October 10, 2012 at 6:55pm

वाह दीप जी पर्फेक्ट गज़ल है, मज़ा आ गया पढ़कर ।

पर हमारा तो ये आलम है कि

पसीना निकाले है बह्र और वज़न

कभी हमें भी इनसे मिलाओ ज़रा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
7 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
14 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
14 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service