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तालाब में मगरमच्छ

शिकार की तलाश में हैं

गिरगिट अपना रंग बदले

दबे पाँव जमे हैं

मकड़ियाँ जाल बुनने में

व्यस्त हैं ।

इन सबके बीच

फूलों को  फर्क नहीं पड़ता

वे पहले की तरह

अपनी ख़ूबसूरती

बिखेर रहे हैं

ख़ुशबू फैला रहे हैं

महकना

उनकी पहचान है

खुशियाँ  फैलाना

पैगाम है

फिर हम क्यों परेशान हैं

अपना धोर्य

खोते जा रहे हैं

अगर कुछ लोग

अपनी आदतें

नहीं छोड़ना चाहते

हम क्यों

अपनी पहचान खोएँ  

उन लोगों मे शामिल हो जाएँ  

जिन्हें हम ख़ुद

पसंद नहीं करते

ये तो सृष्टि का नियम है

सबके सब

अपने कामों में  

व्यस्त हैं

वे हैं, तो हम हैं

हम हैं, क्योंकि वे हैं

और हमें तो

जमे रहना है

मज़बूती के साथ

अधिक दृढ़ता से

ताकि वे

हावी न हो सकें

कमज़ोर पड़ जायें

बुराई डरती रहे

मिसालें कायम रहें

संतुलन बना रहे

धोर्य बरकरार रहे

बुराई हावी न हो सके

अच्छाई पर

सच की जीत जरूरी है

और हमें

जमें रहना है

और अधिक

दृढ़ता के साथ ।

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 14, 2012 at 5:09pm

हमें तो जमे रहना है मजबूती से जमे रहकर  

धैर्य नहीं खोना है औरों  के कृत्य देखकर
यही सिखाती है प्रकृति हमें सब को देखकर - 
बहुत अच्छी बात कही आपने बधाई नादिर खान भाई  

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2012 at 12:20pm

आदरणीय नादिर साहब, अच्छी रचना, प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती रहती है, यह अलग बात है कि हम उसे कितना समझ पातें हैं , सभी लोग यदि अपना अपना कर्म करते रहे तो स्वयम बहुत कुछ बदल जायेगा | बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

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