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February 2013 Blog Posts (194)

एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत

एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत

 

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी

कैसे करूँ कल्पना कोरी, होय नहीं समता भी थोरी

 

अधरों में रस भर, लाज शर्म धर, नैन झुकाए, मुस्काती

सकुचाती काया, लगती माया, दूर खड़ी हो, इठलाती

मन आह भरे है, चाह करे है, चंचल मन अस, उकसाती

हर रात जगे हम, भर भर कर दम, चैन नहीं है, दिन राती

 

अंतर्मन की जोरा जोरी, कहूँ दशा क्या तुमसे गोरी

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 17, 2013 at 6:00pm — 11 Comments

"स्वर्ग इसी धरा पर ही है"

मंद -मंद बयार का झोका ,
पेड़ की टहनियों का झुकना!
झरने से निकलती कल-२ ध्वनि ,
दिनकर का बदली में छुपना!


प्रसून से निकलती सुगंध,
वृक्षों का आलिंगन करना !
चिड़ियों का मधुर गुनगुनाना ,
खुशियों भरा सुन्दर बहाना !


नदियों वृक्षों संग गुज़ारा ,
प्रकृति का अनुपम खज़ाना !
स्वर्ग इसी धरा पर ही है ,
सभी प्राणियों को बतलाना !


राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 17, 2013 at 12:13pm — 11 Comments

मिला राज्य सम्मान

मिला राज्य सम्मान- (दोहे)

-लक्ष्मण लडीवाला

तामस सात्विक राजसी, तीनो ही अभिमान, 

रावण और कुम्भ करण, तामस राजस जान।

सात्विक मन से आदमी, करे प्रभु गुणगान,

देख विभीषण को जरा, वे इसके  प्रतिमान ।

कुम्भ करण सोता रहा, दिल में भरा प्रमाद, 

अहंकार था तामसी, जीवन भर अवसाद ।

राजसी अहंकार वश, आजाये अभिमान,

अभिमानी…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 17, 2013 at 12:00pm — 28 Comments

ढपोरशंख (लघुकथा) / संजीव ’सलिल’

सामयिक लघुकथा:

ढपोरशंख                                                                             '

                                                                                       *

कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.



 आज राहुल के किशोर होते ही उसके पिता आतंकवादियों द्वारा मारे गए. राहुल की माँ ने उसे…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 17, 2013 at 10:00am — 16 Comments

पर्वत पिघलने से रहा

यहां कोई क्रांति नहीं होने वाली

लाख हो-हल्ला हो

धरने और अनशन हों

 

क्रांति की सामग्री मौजूद नहीं यहां

जाति, धर्म, क्षेत्र में बंटे

लोग क्रांति नहीं करते

अपने पेट की फिकर में…

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Added by बृजेश नीरज on February 17, 2013 at 9:48am — 10 Comments

चिल्लाओ कि जिंदा हो

आखिरी बार कब चिल्लाए थे तुम

याद है तुम्हें?

 

जब पैदा हुए थे

तब शायद

गला फाड़कर

पूरी ताकत के साथ

चीखकर रोए थे तुम

क्योंकि तब…

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Added by बृजेश नीरज on February 17, 2013 at 8:56am — 16 Comments

प्रियतम मेरे

प्रियतम मेरे 

फिर वही शाम वही तन्हाई 
दिल में मेरे वही दर्द ले कर आई 
....................................
प्रियतम मेरे 
ढूँढ़ रही है बेचैन निगाहें 
कहाँ खो गये दुनिया की भीड़ में
......................................
प्रियतम मेरे
मजनू बना प्यार में तेरे 
आईना भी नही पहचानता मुझे
.....................................
प्रियतम मेरे 
दर्देदिल…
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Added by Rekha Joshi on February 16, 2013 at 11:30pm — 21 Comments

गीत : ... सच है संजीव 'सलिल'

*

कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.

फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...

*

ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.

शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..

मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.

मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..

ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-

दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..



कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 16, 2013 at 7:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कागज

कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|

आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)



मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|

शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||



भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|

मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||



टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|

कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||



फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|

कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||



रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…

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Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments

"इस दर्द से उबार दो "

ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !


नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!


ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!


काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!


राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments

आराधना

एक शक्ति

जागृत हो

आराधना

करनी चाहियें

ईश्वर…

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Added by Tushar Raj Rastogi on February 16, 2013 at 1:00pm — 8 Comments

जिंदगी इतने गम क्यूँ देती है ?

ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है

गम के संग आंसू भी देती है

आंसुओं संग दर्द भी देती है

दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है

तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……

फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी

हर पल हर किसी को जीवन की…

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Added by Parveen Malik on February 16, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

"बसंत"

"बसंत"

मैंने देखा है 

आज दीवार के पीछे से 

*ढूंक रहा था 

कहीं कोई देख न ले 

उसको ऐसे नग्न 

इस बार प्रेम की 

तेज हवाएं 

उतार के ले गयीं 

उसके पीले वस्त्र 

और 

बदले में दे गयीं थी 

कुछ ताज़ा गुलाब 

जिनकी पंखुड़ी पंखुड़ी …

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 12:00pm — 12 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : उत्प्रेरण / गणेश जी बागी

"माँ टिफिन बैग में रख दी हो ना",  पूछते हुए राहुल बैग लेकर स्कूल निकल गया। कालोनी के आठ-दस लड़के एक ही स्कूल में पढ़ते थे। साथ ही स्कूल जाते थे।

इधर राहुल में एक बदलाव मैंने नोट किया था । टिफिन ले जाने में आनाकानी करने वाला राहुल जो मुश्किल से दो पराठे लेकर जाता, अब तीन पराठे लेकर जाने लगा था । दोपहर में पडोसी मिसेज गुप्ता मिल गई थी बताने लगी कि राहुल और उसका ग्रुप आज कल समाज सेवा में लगा है । …

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2013 at 10:38pm — 28 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मनमीत तेरी प्रीत

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे

हर भाव को सामर्थ्य दे

विह्वल हृदय में गूँजती

मृदुनाद सी सुरधीत है....

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

सूर्यास्त नें चूमा उदय

दे हस्त…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments

GAZAL-हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले ! SALIM RAZA REWA

                ||ग़ज़ल|

हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !

साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !

इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !

ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !

जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में…

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Added by SALIM RAZA REWA on February 15, 2013 at 7:00pm — 13 Comments

सोच

निशा की आँखे  दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये ..  . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ गयी ..  आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने…

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Added by Neelima Sharma Nivia on February 15, 2013 at 6:30pm — 9 Comments

"माँ शारदा स्तुति" बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

सभी आदरणीय सदस्यों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं 

"माँ शारदा स्तुति" 



दोहा-

विद्या दाती शारदे, दो विद्या का दान 

मोह लोभ का नाश हो , मिटे दंभ अभिमान 



चौपाई- 

वागीश्वरि माँ शारद प्यारी|  पूजें तुमको सब नर नारी ।।

माँ सब तुमसे वाणी पाते|  देव दनुज नर सारे ध्याते ।।

श्वेत वर्ण सम चन्द्र सुशोभित| चार भुजा मुख मंडल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 15, 2013 at 4:00pm — 8 Comments

करूँ किस मुख से...

रहमत तेरी,ग़ुरबत तेरी.

करुणा निधान माया तेरी.

करूं गुणगान किस मुख से

कैसे करूँ बखान हस्ती तेरी... 

मै नादान, माया तेरी

समझ न पाई छाया तेरी

कण कण तू, ज़र्रे ज़र्रे तू 

है पत्ते पत्ते झांकी तेरी...

भवरा भी तू,और  फूल भी 

जीवन बगिया महकी मेरी 

कर नूर तेरे की बारिश से 

तर…

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Added by Aarti Sharma on February 15, 2013 at 2:00pm — 14 Comments

माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प।

माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प

कल की पयस्विनी पय को भटक रही,

ममता की मारी माँ मय को गटक रही।

आँचल में दूध नहीं पानी आँख का गया,

सहरी सैलाब में सील वो सटक रही।

खिलने दिया नहीं वो बीज ही मसल दिया,

बागवां खामोश सब कलियाँ चटक रही।

दूध में ही पी के दर्द भर लिया कलेजे में,

कदर कोई नहीं बात ये खटक रही।

पूजनीया देवों की अब लूट नीया हो गई,

बच्चों की जमात भी कितना…

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Added by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 11:00am — 12 Comments

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