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"इस दर्द से उबार दो "

ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !


नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!


ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!


काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!


राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Parveen Malik on February 18, 2013 at 11:53am

बहुत सुन्दर ..

Comment by Tushar Raj Rastogi on February 17, 2013 at 8:40pm

बेहद शानदार रचना |

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 17, 2013 at 6:13pm
भाई रामशिरोमणि पाठक जी!थोड़े से और संयत प्रयास से यह रचना एक सुन्दर गजल या गीत बन सकती है।उन्नत भावों के लिये।हार्दिक बधाई।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on February 17, 2013 at 11:47am

बहुत सुन्दर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 17, 2013 at 10:02am

प्रिय राम शिरोमणि जी,

आपकी इस रचना में आपकी ही अन्य रचनाओं से इतर एक ख़ास बात है, की आपने हर द्वीपदी के अंत में तुक का मिलान किया है. इस प्रयास के लिए आप बधाई के पात्र हैं.

धीरे धीरे ही सतत प्रयास से लेखन को आप और साधते चलेंगे ऐसी अपेक्षा है.

सस्नेह.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 17, 2013 at 9:16am

भाई, ऐसी भावनाओं को शास्त्रीय विधाओं में बाँधने का प्रयास करें. इन शब्दों के सही मायना क्या होंगे ?

शुभेच्छाएँ.. .

कृपया ध्यान दे...

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