For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

January 2013 Blog Posts (174)

दो निरे ....

एक बच्चा था, अबोध, हमारे यहाँ की भाषा के उसे निरा कहते है| निरा अबोध बच्चा, अक्ल से कच्चा, दिल से सच्चा| एक दिन खेलते खेलते जाने कहाँ आ पहुचा, उसे नहीं पता था, उसने देखा कुछ लोग थे , अजीब दाड़ी टोपी लगाए, हँसते हुए, बांस की पंचटो के ढाँचे पर आटे की लेई से पतंगी कागज चिपकाते हुए| उसने देखा, कुछ बच्चे उस जैसे ही, निरे अबोध बच्चे, मदद कर रहे है अजीब दाड़ी टोपी वाले लोगे की, वो देखता रहा, बहुत देर तक देखता रहा, उसका दिल रंगीन कागजों में अटक गया था, वो चिपकाना चाहता था उस पतंगी कागज को, बांस की…

Continue

Added by अमि तेष on January 11, 2013 at 11:11pm — 4 Comments

एक बेटी सो गई

सांस उसकी थम गई

एक बेटी सो गई।

पर अब जागा हिंदूस्तां

हर आंख नम हो गई।।

मैं सजा दिलाना चाहती हूं

उन दरिंदों को मां।

ताकि अपवित्र ना हो

फिर कोई दामिनी मां।।

हौंसला बुलंद देखा

कुछ पलों के होश में।

देशवासी न्याय मांगे

हर कोई आक्रोश में।।

तेरा बलिदान हमेशा याद रहेगा

अब मेरा हिंदूस्तां नहीं सहेगा।

यू हीं घूमते रहे गर दरिंदे

तो आक्रोश यूं ही कायम रहेगा।।

चिंगारी जो जल चुकी है

अब नहीं बुझने देना।

बेटी की मौत औ

अपमान का…

Continue

Added by chandramauli pachrangia on January 11, 2013 at 8:33pm — 4 Comments

गजल -- हो रहा है फिर उजाला इस शहर में !!!

हो रहा है फिर उजाला इस शहर में,
जल उठी है मोमबत्ती मेरे घर में ।

आँधियों के पैर कतराने लगे हैं,
है समंदर आस का अब हर नजर में ।

देखकर कोंपल नयी खुश हो गये हम,
शेष है आशा घनी बूढ़े शजर में ।

शाम से महसूस होती है थकावट,
लौट आती है जवानी, नव सहर में ।

यूँ मिला किरदार जीवन का 'सलिल' को,
गीत गम का गुनगुनाया भी बहर में ।

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 11, 2013 at 6:32pm — 8 Comments

डा . तुकबंद की तबाहियां

डा . तुकबंद की तबाहियां

------------------------------

निकला मेरा जनाजा उनके इश्क की छाँव में

फूल बिछाए हमने बिखेरे कांटे उन्होंने राह में

भूल गए वो कि जनाजा तो काँधे पे जाएगा

गुजरेंगी इस राह से कोई बहुत याद आएगा

---------------------------------------------------------

आशिक और शायरों की है अलग पहचान

जानते हैं सब फिर भी बनते हैं अनजान

आशिकी में आशिक बस करते हैं आह आह

पढ़े गजल शायर लोग करते हैं वाह…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 11, 2013 at 5:57pm — 9 Comments

"ग़ज़ल"जिसे देखा नहीं हमने उसे भगवान बोलेंगे

===========ग़ज़ल=============

बहर-ए-हजज मुसम्मन सालिम 

वजन- 1222 / 1222 / 1222 / 1222 



गरीबों का दमन करके जो सीना तान बोलेंगे 

झुकाए सर उन्ही को आप तुर्रम खान बोलेंगे 



सिपाही काठ के पुतले बने फिरते हैं राहों में 

कसम खाई वो करने जो…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 11, 2013 at 3:30pm — 8 Comments

मेरे सपने में

बह रही थी एक नदी मेरे सपने में
रह गयी फिर भी प्यासी सपने में

जी रही थी इस दुनिया में मगर
देखती थी दूसरी दुनिया सपने में

करती थी इंतेजार उसका दिनभर
आता था जो आंसू पोछने सपने में

यकीन था आएगा वो पूरा करने
कर गया था वादे, जो सपने में

ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में
बस गया था अक्श जिसका सपने में

काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में

Added by shubhra sharma on January 11, 2013 at 10:00am — 17 Comments

कलम की नॊंक सॆ

कलम की नॊंक सॆ

===========

फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम,गर्दन का दान दिया करतॆ हैं,

गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी,जीवन-दान दिया करतॆ हैं,

क्षमाशीलता का जब कॊई, अपमान किया करता है,

अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है,

भारत की पावन धरती नॆं, ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं,

मातृ-भूमि कॆ चरणॊं मॆं, जिननॆ निजशीश चढ़ायॆ हैं,

दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !!

कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2013 at 8:30pm — 16 Comments

दीवाने कहाँ जायें

अफ़सोस है दुनिया में दीवाने कहाँ जायें.

शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.



यातना वंचना असह्य हो,

सहचरी वेदना बनी सदा.

निर्जन पथ निर्मम मीत मिला,

व्याकुल करती मदहोश अदा.

उलझन में पड़ा जीवन सुलझाने कहाँ जायें.

शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.



पल में विचलित कर देती हैं,

ये प्यार मुहब्बत की बातें.

नयनों मे कोष अश्रुओं का,

क्यूँ काटे नहीं कटती रातें.

राँझा की तरह बोलो मिट जाने कहाँ जायें..

शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ…

Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 10, 2013 at 8:00pm — 10 Comments

हाइकु मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

हाइकु मुक्तिका:संजीव 'सलिल'

*

जग माटी का

एक खिलौना, फेंका

बिखरा-खोया.

फल सबने

चाहे पापों को नहीं

किसी ने ढोया.

*

गठरी लादे

संबंधों-अनुबंधों

की, थक-हारा.

मैं ढोता, चुप

रहा- किसी ने नहीं

मुझे क्यों ढोया?

*

करें भरोसा

किस पर कितना,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल : नाव ही नाख़ुदा हो गई

राहबर जब हवा हो गई
नाव ही नाखुदा हो गई

प्रेम का रोग मुझको लगा
और दारू दवा हो गई

जा गिरी गेसुओं में तेरे
बूँद फिर से घटा हो गई

चाय क्या मिल गई रात में
नींद हमसे खफ़ा हो गई

लड़ते लड़ते ये बुज़दिल नज़र
एक दिन सूरमा हो गई

जब सड़क पर बनी अल्पना
तो महज टोटका हो गई

माँ ने जादू का टीका जड़ा
बद्दुआ भी दुआ हो गई

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 10, 2013 at 4:30pm — 20 Comments

जाने कौन कहां से आकर

जाने कौन कहां से आकर

मुझको कुछ कर जाता है

मेरी गहरी रात चुराकर

तारों से भर जाता है

जाने कौन.........



देख नहीं मैं पाउं उसको

दबे पांव वह आता है

और न जाने कितने सपने

आंखों में बो जाता है

जाने कौन.......



एक दिन उसको चांद ने देखा

झरी लाज से उसकी रेखा

मारा-मारा फिरता है अब

दूर खड़ा घबराता है

जाने कौन....



चैताली वो रात थी भोली

नीम नजर भर नीम थी डोली

वही तराने सावन-भादो

उमड़-घुमड़ कर गाता है …

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 10, 2013 at 3:00pm — 6 Comments

मौन का,इम्तिहान न लो ..!!

नोंच डालो ,

अस्मिता को ,बेच डालो ,

हम यही कहते रहेंगे

मौन का ...

इम्तिहान न लो ..!!

सूरज से युद्ध 

करने का  दुस्साहस

करता जुगनू प्रतिदिन

आकाश बँधाता ढाढस

ज़ुल्म हम सहते रहेंगे ,

हम यही कहते रहेंगे

शौर्य का

अनुमान न लो ..!!

चीखती रह जाएँगीं

विधवा घाटियाँ

जर्जर सी छत की

छूट गईं लाठियाँ

प्रतीक्षारत ,आक्रमण का

अनुचित परिणाम न हो

हम यही कहते रहेंगे ,

हौसले का ,

अनुमान न लो ..!!

मौन का,इम्तिहान न…

Continue

Added by भावना तिवारी on January 10, 2013 at 2:30pm — 5 Comments

हाथ मिलाते रहिये

दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये,

प्यार की रस्म को आगे बढ़ाते रहिये |



अंधेरों मे ही ना गुजर जाय जीवन का सफ़र,

प्यार की शमा को दिल मे जलाते रहिये |



रहता यूँ चमन मे बिजलियों के गिरने का डर,

चाहत के फूलों को दिल मे खिलाते रहिये |



रोने गाने मे हो ना जाएँ सारी उमर तमाम,

उलफत के जाम को खुद पीकर पिलाते रहिये |



चले है जब तो मिल ही जाएगी मंज़िल हमको

अलबिदा कहते हुए हाथ हिलाते रहिये |

  • Dr.Ajay Khare…
Continue

Added by Dr.Ajay Khare on January 10, 2013 at 2:30pm — 3 Comments

प्रहार

प्रहार 

दहक उठे अंगारे धरती हुई रक्त से फिर पग पग  लाल 

जूझ पड़े वीर बाँकुरे झुके नहीं हँस  कटा दिए निज भाल
माँ  के लहराते आँचल में कायर  अरि  कंटक नित फंसाते 
धन्य है  भारत वीर भूमि जहाँ  बलिदानी पलकन चुनते जाते 
अरि मर्दन करने को खड़े रहते सीमा  पर प्रहरी  सीना  ताने 
हर बार लड़े  हर बार मिटे…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 2:01pm — 6 Comments

मुक्तिका: क्या कहूँ?... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'

*

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.

बिन कहे भी रहा नहीं जाता..



काट गर्दन कभी सियासत की

मौन हो अब दहा नहीं जाता..



ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,

ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.



सब्र की चादरें जला दो सब.

ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..



हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.

सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..



देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.

कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??



सर न हद से अधिक उठाना तुम…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:30am — 5 Comments

मुक्तिका : संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

नया आज इतिहास लिखें हम

संजीव 'सलिल'


*

नया आज इतिहास लिखें हम.

गम में लब पर हास लिखें हम..



दुराचार के कारक हैं जो

उनकी किस्मत त्रास लिखें हम..



अनुशासन को मालिक मानें

मनमानी को दास लिखें हम..



ना देवी, ना भोग्या मानें

नर-नारी सम, लास लिखें हम..



कल की कल को आज धरोहर

कल न बनें, कल आस लिखें हम..

(कल = गत / आगत / यंत्र / शांति)



नेता-अफसर सेवक…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:00am — 4 Comments

कट गई है लहर

                           कट  गई  है  लहर

            जाने क्यूँ कुछ ऐसा-ऐसा लगता है

            कि  जैसे  कट  गई  लहर  नदी  से,

            वापस न लौट सकी है,

            और ज़िन्दगी इस कटी लहर में धीरे-धीरे

            तनहा  तिनके  की  तरह …

Continue

Added by vijay nikore on January 9, 2013 at 6:00pm — 7 Comments

कभी तो पास में आकर सदा सुनो दिल की

==========ग़ज़ल===========

कभी तो पास में आकर सदा सुनो दिल की
ज़रा सी चाह और ये इल्तजा सुनो दिल की

कहीं भी आप रहो हो न कोई दर्दो गम
जुबाँ से मेरे निकलती दुआ सुनो दिल की

छलक गए है जो प्याले निगाह मिलते ही
यूँ ले रही है नज़र क्या रजा सुनो दिल की

ग़ज़ब हुनर जो लिए खेलते हो तुम दिल से
कभी कभी ही सही बेबफा सुनो दिल की

अगर मगर तो हमेशा बजूद में होगा
कभी तो "दीप" यूँ ही बेवजा सुनो दिल की

संदीप पटेल"दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 4:27pm — 7 Comments

दामिनी के नाम

आदिकाल से नारी स्वयं में है पहचान,
क्यों कर अबला बनी है सर्वशक्तिमान,
दुर्गा अहिल्या शबरी सावित्री रूप भाता,
दुष्ट दलन श्रृष्टि कर्ता दुःख भंजन माता,
बहना बेटी भार्या बन परिवार में आती,
उड़ेल स्नेह कई रूपों में संस्कार जगाती,
धरती सा सीना इसका वात्सल्य की मूर्ति,
त्याग समर्पण स्नेह से करती इच्छा पूर्ति,
नाहक पुरूष पुरुषार्थ दिखाते लज्जा न आती,
न कोई और रिश्ता हो ये माता तो कहलाती|

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
९-१-२०१३

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 9, 2013 at 4:00pm — 10 Comments

सुन ले कायर पाकिस्तान

सुन ले कायर पाकिस्तान

नहीं झुकेगा हिन्दुस्तान



बात से पहले समझायेंगे

तुम क्या हो ये बतलायेंगे

भारत के वीरों का गहना 

संयम शांति जतलायेंगे 



अगर समझ फिर भी न पाया 

मारें थप्पड़ खींचें कान ....................... 



गीदड़ की न चाल चलो तुम 

छुप छुप कर न वार करो तुम 

शेरों से लड़ने के खातिर

कुछ हाथी तैयार करो तुम 



बच्चा बच्चा वीर यहाँ का

हमको है खुद पर अभिमान .................................



घुसपैठी को आज तजो…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 3:54pm — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
9 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service