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अफ़सोस है दुनिया में दीवाने कहाँ जायें.
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.

यातना वंचना असह्य हो,
सहचरी वेदना बनी सदा.
निर्जन पथ निर्मम मीत मिला,
व्याकुल करती मदहोश अदा.
उलझन में पड़ा जीवन सुलझाने कहाँ जायें.
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.

पल में विचलित कर देती हैं,
ये प्यार मुहब्बत की बातें.
नयनों मे कोष अश्रुओं का,
क्यूँ काटे नहीं कटती रातें.
राँझा की तरह बोलो मिट जाने कहाँ जायें..
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.

विधु रश्मि शूल सी लगती है,
उर अबुध शलभ सम छला गया.
मन व्यथित थकित तन मूक नयन
मनमीत निठुर हो चला गया.
क्रन्दन जो करे सरगम फिर गाने कहाँ जायें..
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें...
*************************************************************
शैलेन्द्र सिंह “मृदु”

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 12:24pm

आदरणीय आशीष नैथानी 'सलिल' जी प्रयास को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 12, 2013 at 12:02pm

वाह सुन्दर रचना भाई !!!

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 12:01pm

आदरणीया Anwesha Anjushree मैम सराहना हेतु कोटिशः आभार

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 12:00pm

आदरणीय PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA सर स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 11:58am

आदरणीय SANDEEP KUMAR PATEL जी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 11:56am

आदरणीया प्राची मैम सराहना हेतु आभार

लिख डाली थी प्रेम कहानी कभी बड़े अरमानों से.

नहीं क्लेश किंचित था मुझको विस्फोटी सामानों से.

              और अब आपके बहुमूल्य सुझाव पर एक कविता आक्रोश..................अगली ब्लॉग पोस्ट

देश व्यथित हो गया आज जब अपनों औ बेगानों से.

टीस उठी तो कलम उठाई निकले तीर कमानों से..

                 सादर

Comment by Anwesha Anjushree on January 11, 2013 at 7:02pm

Virah ki vedna....achchha prayas...likhte rahe

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 11, 2013 at 4:09pm

स्नेही मृदु जी,

सादर 

सुन्दर भाव , रचना हेतु बधाई. 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 11, 2013 at 3:51pm

बहुत सुन्दर बंधुवर म्रदु जी बधाई हो इस रचना के लि


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2013 at 12:32pm

भावों को सुन्दर अभिव्यक्ति शैलेन्द्र जी ....इस हेतु हार्दिक बधाई.

पर आज विश्व के साथ साथ देश जिन ज्वलंत समस्याओं से जूझ रहा है उसमें दीवानगी को एक सही दिशा देने की जरूरत है, न कि परवानों की तरह शम्मा के पीछे भटकते रहने की.

यदि युवा शक्ति इन व्यर्थ बातों में अपना कीमती वक़्त और ऊर्जा जाया न कर इसे सही दिशा दे, तो निश्चय ही प्रवाह की दिशा उलट दे.

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