For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                           कट  गई  है  लहर

            जाने क्यूँ कुछ ऐसा-ऐसा लगता है

            कि  जैसे  कट  गई  लहर  नदी  से,

            वापस न लौट सकी है,

            और ज़िन्दगी इस कटी लहर में धीरे-धीरे

            तनहा  तिनके  की  तरह  बहती

            कुछ  कहती  चली  जा  रही  है ...

            " व्यर्थ है, सब व्यर्थ,

              जो भी बोया, जो भी पाया,

              व्यर्थ है सब ..."

 

             हर सोच में है तिरोहित आशंका

             हर साँस में है थिरती उसाँस निराशा की

             पूर्णिमा का चाँद भी थिरकता है कुछ ऐसे

             कि मानो धरती भी स्वयं में सिमटती-सी,

             अनासक्त,

             अपरिचित-सी  मुँह  फेर  लेती  है  उससे ।

 

             इस पर भी क्यूँ लौट आई हैं आज

             लावारिस आकांक्षायों में लिपटी

             वही  पुरानी  प्यासी  प्रत्याशाएँ ?

             इनको तो मैं कब से बहुत पुराने

             कटु अनुभवों के मलबे के ढेर के नीचे

             अतीत  की  गहरी

             लम्बी काली कुहरीली सुरंग की दरारों के बीच

             दबा-दबा  कर, ठूँस-ठाँस  कर  छोड़  आया था,

             उस सुरंग के सारे दरवाज़े भी मैं, सोचा तो था,

             हमेशा-हमेशा  के  लिए  बंद  कर  आया  था...

 

             ऐसे में कैसे  कोई आया,  कब आया,  क्यूँ आया  ?

             किसने आकर झटके से तोड़ दीं यह सांकलें सारी ?

             मुझको सहने दो, यहीं रहने दो,

             नदी से कटी इस लहर में अकेले तिनके-सा बहने दो,

             स्वयं से निसम्बन्ध अभी,

             "उस" कम्पनमय मार्मिक चोट से अवचेतन रहने दो ।

                                        ---------

                                                          विजय निकोर

                                                          vijay2@comcast.net

Views: 458

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 1:03pm

क्या कहने है आ० विजय निकोर जी, बहुत ही सारगर्भित कविता रची है.  रचना और रचनाकार दोनों को नमन.

Comment by vijay nikore on January 25, 2013 at 2:10pm

आदरणीय अशोक जी:

कविता की सराहना के लिए धन्यवाद और आभार।

विजय  निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 25, 2013 at 2:06pm

सुन्दर भाव प्रस्तुत करती रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय निकोर जी.सादर.

Comment by vijay nikore on January 10, 2013 at 7:08pm

आदरणीय प्रदीप जी,

कविता के भाव आपको अच्छे लगे, इस सराहना के लिए मैं आपका आभारी हूँ।

विजय निकोर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 4:04pm

 ऐसे में कैसे  कोई आया,  कब आया,  क्यूँ आया  ?

             किसने आकर झटके से तोड़ दीं यह सांकलें सारी ?

             मुझको सहने दो, यहीं रहने दो,

             नदी से कटी इस लहर में अकेले तिनके-सा बहने दो,

             स्वयं से निसम्बन्ध अभी,

             "उस" कम्पनमय मार्मिक चोट से अवचेतन रहने दो ।

             आदरणीय विजय जी, 

सादर 

सुन्दर भाव की रचना 

बधाई. 

Comment by vijay nikore on January 10, 2013 at 2:30pm

आदरणीय गणेश जी,

इस कविता के लिए आपने उदार सराहना दे कर मुझको संबल दिया है,

और  "और भी"  अच्छा लिखने का प्रोत्साहन दिया है। आपका शत-शत धन्यवाद।

विजय निकोर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2013 at 2:15pm

बिम्ब और प्रतीकों के मध्य रचना एक नया आयाम बनाती हुई प्रतीत होती है, शब्द संयोजन और भावों का निरूपण रचना को एक अलग उचाई प्रदान करते हैं |

इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय विजय निकोरे साहब |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service