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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 110 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-111

विषय - "भ्रम जाल"

आयोजन की अवधि- 11 जनवरी 2020, दिन शनिवार से 12 जनवरी 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 जनवरी 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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       ग़ज़ल

         ***

कान कौवे ले गए
वो गए रे, ये गए।1


नागरिकता की हवा
में उड़े ठिगने गए।2


कुछ उठा झंडे यहां
'जय व भय' कहते गए।3


आंख मूंदे आदमी
नाव को खेते गए।4


जो 'हिजाबों ' में रहे
वे 'खुदा ' बन के गए।5


गर्दभों का दौर में
हंस कब आगे गए?6
"मौलिक व अ प्र का शि त"

समसामयिक माहौल पर तंज करती शानदार रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।

आभार आदरणीया।

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। वर्तमान परिद्रिश्य को उभारती सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई ।

आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। समसामयिक विषयों के अनुरूप विषयानुकूल अच्छी रचना प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिए।

आदरणीय मनन सिंह जी, सादर बधाई विषयानुरूप गजल के लिए।

भ्रम जाल

राजनीति ने फैलाये भ्रम जाल बहुत है
नारों और वादों का शब्दजाल बहुत है
**
प्यार और सद्भाव का माहौल कहीं नहीं
हर किसी की ज़िन्दगी में जंजाल बहुत है
**
आम आदमी को मिलता इलाज कहीं नहीं
वो कहते है वतन में अस्पताल बहुत है
**
खुशहाली आई वतन में उछल कर ऐसी
दिखते हमको आदम के कंकाल बहुत है
**
नफरत फैली है वतन में सुनामी जैसी
‘मेठानी’ राजनीति में चांडाल बहुत है
**
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी

आद0 दयाराम मैठानी जी सादर अभिवादन,, विषयानुकूल बेहतरीन रचना पर बधाई स्वीकार कीजिए।

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। विषयानुरूप सुंदर रचना हुई है ।हार्दिक बधाई ।

आदरणीय दयाराम जी

सही सीख .......... इस जाल बचना जरूरी है।

हृदयतल से बधाई इस प्रस्तुति पर

हार्दिक बधाई आदरणीय मैथानी जी

द्वितीय प्रस्तुति (छप्पय छःन्द)

माँग रही है भीख, कहीं बैठी सच्चाई
बेच रहा जो झूठ, करे दिन रात कमाई
धर्म ग्रंथ हर लेख, सत्य की बात बताते
पर जो बोले झूठ, वहीं अब मौज उड़ाते
साथ अगर सच आपके, मुश्किल है पग डोलना
कुछ कड़वी सच्चाइयाँ, झूठ सिखातीं बोलना।।1

किसको आती याद, द्रुमों की अब मृदु छाया
अर्थ-तंत्र का जाल, मनुज चहुँओर बिछाया
धरे हंस का वेश, यहाँ पर बगुला ज्ञानी
रात लोरियों संग, सुलाये ना अब नानी
माँ बाप पढ़ाये जिसे, पाई -पाई जोड़ के
वो जा बसे विदेश में, रिश्ते नाते तोड़ के।।2

कहने को संसार, मगर सब कुछ क्षणभंगुर
सबको होना नष्ट, उगा जो भी नव अंकुर
किसके सिर पर ताज, रहा है यूँ चिर स्थायी
राजा हो या रंक, हुए है सब भू शायी
भौतिक सुख संसार के, इन्हें निर्रथक जान लें
होगा बेड़ा पार यदि, हम निज को पहचान लें।।3

कल तक था वो पेड़, मग़र अब सूखी लकड़ी
तन का भी यह हाल, बात यह हमने पकड़ी
फिर क्यों करें गुमान, रखें क्यों मय को अंदर
रहता सम ता-उम्र, यहाँ पर कौन सिकन्दर
त्याग करें भ्रम का अगर, सच का फिर दीदार हो
लोभ क्रोध शंशय मिटे, सुंदर यह संसार हो।।4

मौलिक व अप्रकाशित

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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