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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 75 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-76

विषय - "झुग्गियाँ"

आयोजन की अवधि- 10 फरवरी 2017, दिन शुक्रवार से 11 फरवरी 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 10 फरवरी 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

//कई गुणीजन अपनी बात कह चुके हैं,लेकिन किसी ने भी इस तरफ हल्का सा इशारा भी नहीं किया //

हुज़ूर! आपको याद होगा कि रेडिओ कमेंट्री के ज़माने में 2-2, 3-3 कमेंटेटर पूरा दिन टेस्ट मैच का आँखों देखा हाल सुनाया करते थेI लेकिन दिन या सेशन का खेल खत्म होने के बाद लाला अमरनाथ या चंदू सरवटे जैसे एक्सपर्ट कमेंटेटर पूरे दिन के खेल पर तब्सिरा पेश किया करते थे, और खेल-खिलाड़ियों की वह बारीक से बारीक बातें उभार कर लाया करते थे जो सामन्य कमेंटेटरज़ को दिखाई ही नहीं देती थींI अब ओबीओ में ऐसी बारीकियाँ तो आप सरीखा कोई लाला अमरनाथ ही पकड़ सकता है न बंदा परवर?  :))))     

जी,हुज़ूर-ए-वाला,इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार है ये नाचीज़ ।

मुह्तरमा मंजू साहिबा , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ --
ग़ज़ल में क़ाफियों पर ज़रूर गौर फरमाइए
(१ ) सहती ,ढहती ,बहती ,कहती
(२ ) हँसती
(३ ) लड़ती
(४ ) बढ़ती
(५ ) रखती
शुक्रिया

पैबंद सी हैं महलों के चाहे लिबास पर
अपने वुजूद के लिए लड़ती हैं झुग्गियाँ.........वाह ! बहुत खूब.

आदरणीया मंजू कछावा जी सादर, प्रदत्त विषय पर सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

एक असरकारक गजल से ओबीओ परिवार में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
रेल की पटरी हो या सड़क का किनारा
मैले कुचैले विषैले शीलन भरे वीराने में
नागफनी सी अक्सर अपना अस्तित्व
पा ही जाती हैं झुग्गियाँ।

ओस की बूंदों में ठिठुरती जिन्दगी
बारिस में टपर-टपर टपकती
लू के थपेड़ों को सहन करती
मौन रह कर भी बहुत कुछ
कह जाती हैं झुग्गियाँ।

समेटे हुए अपनी अजीब संस्कृति को
फटे महीन मोमजामे के पीछे
अपनी अस्मत को छुपाकर बचाने की कोशिश
समाज की सोच और नीयत
दर्शा जाती हैं झुग्गियाँ।

नंग धड़ंग मलंग बालपन
आज यहाँ कल वहाँ जाने कहाँ-कहाँ
भविष्य भूल कूड़ा बीनते बच्चे
साहबों को स्कूल के नाम पर कमीशन
दिलवा जाती हैं झुग्गियाँ।

कीमती जमीन पर टकटकी साहूकार की
झुग्गीमुक्त शहर और सरकार की नीतियाँ
झांक कर कौन देखें इनके अन्तर्मन में
आग का शिकार होती हैं कभी
पीले पंजे की चपेट को भी चुपके से
सह जाती हैं झुग्गियाँ।

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय सुरेश कुमार जी  प्रदत्त विषय पर अच्‍छी कविता लिखी है आपने बधाई स्‍वीकार करें

आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना अनुमोदन के लिए कोटि-कोटि आभार।सादर।

आद० सुरेश कुमार भैया ,प्रदत्त विषय पर बहुत सुन्दर प्रभावशाली प्रस्तुति दी है झुग्गियों  को हर द्रष्टिकोण से शाब्दिक किया है दिल से बधाई स्वीकारें 

आदरणीया राजेश कुमारी जी,रचना को मान-सम्मान प्रदान कर हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार। सादर।
आदरणीय सुरेश जी आदाब, बहुत ही प्रभावशाली कविता कही आपने । पूरा झुग्गी जीवन ही साकार कर दिया आपने । बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय मो.आरिफ साहब रचना पर प्रस्तुत हो अपने कीमती विचारों से प्रशंसा कर हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार।सादर।

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