आदरणीय साथिओ,
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अपने चिरपरिचीत अंदाज में लिखी एक और बढ़िया लघुकथा आदरणीय सुधीर जी। अगर अंत में फोन उठाना और गैराज वाले संवाद को पत्नी की बजाय पति के कर दिए जाएं तो ज्यादा बढ़िया लगेंगे क्योंकि पहिये वाली बात पति को समझ आनी चाहिए तभी उसके मन की शंका का समाधान होगा और पत्नी के चेहरे पर मुस्कान आएगी।
तस्वीर का यह दूसरा रुख बहुत ही सुन्दरता से उभर कर सामने आया है भाई सुधीर द्विवेदी जीI लघुकथा प्रभावशाली और मर्मस्पर्शी होने के साथ साथ प्रदत्त विषय के अनुकूल भी है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
भले ही कुछ समय के लिए सामाजिक तानों के चलते रिश्ते में कुछ खटास आई हो किन्तु वास्तविकता तो दूसरी ही होती है पति पत्नी के रिश्ते की डोर इतनी कच्ची नहीं होती तस्वीर के दोनों पहलुओं पर प्रकाश डालती प्रदत्त विषय को सार्थक करती सुन्दर लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आद० सुधीर द्विवेदी जी
बहुत भावपूर्ण और प्रभावी रचना लिखी है आपने विषय पर, पति पत्नी दोनों ही गृहस्थी के दो पहिये होते हैं| बहुत बहुत बधाई आपको
//"सब मेरी खिल्ली उड़ाते हैं।" ठुनकते हुए पति अचानक सब्ज़ी कतरने लग गया।// ये खूब रही ..तस्वीर के ये रूप कम हैं पर हाँ हैं तो सही .. बहुत बढ़िया कथ्य और सम्प्रेषण ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुधीर जी
आ० सुधीर जी , बढ़िया कथा , अंत में थोड़ा विस्तार दिखा जो यदि कम होता तो और अच्छा होता मेरी मति में -पत्नी ने नजरें झुका लीं और फ़टाफ़ट रसोई में जा घुसी। पति भी उसके पीछे-पीछे------- सादर .
मुहतरम जनाब सुधीर साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ----
आदरणीय सुधीर जी, दाम्पत्य जीवन में आपसी सामंजस्य को शाब्दिक करती इस शानदार और सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
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