For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ 

गाँव से आकर नगर में फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं

ईंट गारे के महल में गाँव का घर ढूँढते हैं

 

रौशनी देने सभी को मोम पिघला भी, जला भी  

पूजना हो यदि कभी तो लोग पत्थर ढूँढते हैं  

 

दौरे हुए जब साहबों के, वो चुनावी दौर था   

गाँव वाले अब नगर में रोज दफ्तर ढूँढते हैं

 

जुल्म सहने की हमें यूँ हो गईं हैं आदतें कुछ  

रहजनों के तम्बुओं में रोज रहबर ढूँढते हैं

 

खूब सारा दर्द देकर हो गया ओझल नजर से

क्या करें हम फिर वही प्यारा सितमगर ढूँढते हैं

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 3, 2018 at 12:49pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी का हृदय से आभार
Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 3, 2018 at 12:48pm
आदरणीय राज़ नवादवी जी आपकी बारीक नजर को सादर नमन
आदरणीय समीर कबीर जी का सुझाव अनुकरणीय है, मैं सुधार कर पुनः प्रस्तुत करता हूँ, मार्गदर्शन के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय sushil sarna जी का हृदय से आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2018 at 9:08pm

आ. भाई बसंत जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on July 1, 2018 at 8:20pm

'साहिबों के जब हुए दौरे चुनावी दौर था वो'

Comment by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:42pm

बधाई हो जनाब बसंत कुमार जी. मेरा इक प्रश्न है: क्या ये मिसरा बह्र में है?

"दौरे हुए जब साहबों के, वो चुनावी दौर था "

ग़ज़ल इस बह्र में है: २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ 

सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 1, 2018 at 6:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी। लाज़वाब गज़ल।

खूब सारा दर्द देकर हो गया ओझल नजर से

क्या करें हम फिर वही प्यारा सितमगर ढूँढते हैं

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 1, 2018 at 10:03am

बहुत खूब वाह,,,,,

Comment by Mohammed Arif on June 30, 2018 at 5:37pm

आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब,

                               उम्दा सामयिकता का पुट लिए ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 30, 2018 at 1:43pm

रहजनों के तम्बुओं में रोज रहबर ढूँढते हैं...वाह आदरणीय शर्मा जी क्या ही खूब ग़ज़ल कही...

Comment by Shyam Narain Verma on June 30, 2018 at 11:45am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
11 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
17 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।  किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितनेख़मोश रात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"इतने वर्षों में आपने ओबीओ पर यही सीखा-समझा है, आदरणीय, 'मंच आपका, निर्णय आपके'…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service